आध्यात्म
लखनऊ बनेगा गुरु पूर्णिमा पर होने वाली भव्य गोमती महाआरती का साक्षी
लखनऊ। गुरु के प्रति अपने आदर सम्मान को व्यक्त करने के लिए आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार गुरु पूर्णिमा 27 जुलाई 2018 (शुक्रवार) को है। हिन्दू शास्त्रों में गुरू की महिमा अपरंपार बताई गयी है। गुरू बिन, ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है, गुरू बिन संसार सागर से, आत्मा भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती है।
गुरू को भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। चंद शब्दों में गुरू के प्रताप को बताया जाए तो शास्त्रों में लिखा है कि अगर भगवान से श्रापित कोई है तो उसे गुरू बचा सकता है किन्तु गुरू से श्रापित व्यक्ति को भगवान भी नहीं बचा पाते हैं। हर बार की तरह इस बार भी सनातन महासभा द्वारा गोमती नदी पर सनातन घाट झूलेलाल वाटिका में आदि गंगा यानी गोमती की महाआरती का आयोजन गुरु पूर्णिमा पर किया जाएगा।
सनातन महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रवीण ने बताया कि 45वीं आदि गंगा मां गोमती महाआरती 11 मंचों से हरिद्वार की तर्ज पर 21 शंखनाद के साथ ‘स्वच्छ गोमती-स्वच्छ लखनऊ’ विषय को लेकर संकल्पित होगी और 1008 दीपो से रंगोली के साथ संकल्प होगा और फलदार वृक्षों का रोपण भी होगा। साथ ही ‘स्वच्छ गोमती-स्वच्छ लखनऊ’ विषयक निबंध, चित्रकला, रंगोली प्रतियोगिता शाम 4.30 बजे गोमती तट पर होगी।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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