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आध्यात्म

इस साल कब है देव दीपावली? यहां जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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Dev Deepawali 2023

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नई दिल्ली। प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है। हिंदू धर्म में दिवाली की तरह देव दीपावली का भी बहुत महत्व है। इस त्योहार को भी दीपों का त्योहार कहा जाता है। देव दीपावली का यह पावन पर्व दिवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से काशी में गंगा नदी के तट पर मनाया जाता है।

मान्यता है कि इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं और दिवाली मनाते हैं। देवों की इस दिवाली पर वाराणसी के घाटों को मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है। काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन काशी नगरी में एक अलग ही उल्लास देखने को मिलता है। चारों ओर खूब साज-सज्जा की जाती है। शास्त्रों में इस दिन दीपदान का भी महत्व बताया गया है।

कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली तिथि 2023

पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की शुरुआत 26 नवंबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट से हो रही है। इसका समापन अगले दिन 27 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 45 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि को देखते हुए कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी।

इस दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा, पूर्णिमा व्रत, कार्तिक गंगा स्नान-दान करना शुभ होगा, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा तिथि के दिन प्रदोष काल में देव दीपावली मनाई जाती है। इस दिन वाराणसी में गंगा नदी के घाट पर और मंदिर में दीए जलाए जाते हैं। ऐसे में इस बार पंचांग के भेद के कारण देव दिवाली 26 नवंबर को मनाई जाएगी और कार्तिक पूर्णिमा 27 नवंबर 2023 को है।

देव दीपावली पर शुभ मुहूर्त

26 नवंबर को देव दीपावली वाले दिन शाम के समय यानी प्रदोष काल में 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाने का शुभ मुहूर्त है। इस दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दीये बनाकर उनमें तेल डालें और किसी नदी के किनारे प्रज्वलित करके अर्पित करें।

देव दीपावली का महत्व

ऐसी मान्यता है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन ही शिव जी ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर खुशी मनाई थी। कहा जाता है कि इस दिन शिव जी के साथ सभी देवी-देवता धरती पर आते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं, इसलिए काशी में हर साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दिवाली धूमधाम से मनाई जाती है।

देव दीपावली पर दीपदान का महत्व

धार्मिक शास्त्रों में देव दीपावली के दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने से पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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