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मुरादनगर से हरिद्वार तक चलेगी मेट्रो ट्रेन
परियोजना पर उत्तराखण्ड व यूपी में सहमति
लखनऊ/देहरादून। उत्तराखण्ड़ व उत्तर प्रदेश सरकार में संयुक्त रूप से मुरादनगर से हरिद्वार तक मेट्रो ट्रेन परियोजना बनाने पर सहमति बनी है। जामरानी बांध पर दोनों राज्यों के बीच एमओयू जल्द ही हस्ताक्षरित कर दिया जाएगा। हरिद्वार में गंगा नदी में नालों को टैप कर उन्हें एक समानांतर कैनाल या पाईपलाईन से बाहर ले जाया जाएगा। इसमें यूपी सरकार द्वारा वित्तीय सहयोग दिया जाएगा। मंगलवार को न्यू कैंट रोड़ स्थित मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री हरीश रावत व उत्तर प्रदेश के सिचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव में दोनों राज्यों के आपसी लम्बित मुद्दों पर बातचीत हुई। अधिकांश मामलों को एक टाईमफ्रेम में हल करने पर दोनों के बीच सहमति बनी।
मुख्यमंत्री रावत ने बैठक को बहुत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि दोनों राज्यों के रिश्ते और भी मजबूत होंगे। मिलजुलकर तरक्की की जा सकती है। उन्होंने मुरादनगर से हरिद्वार तक नहर के किनारे-किनारे मेट्रो परियोजना प्रारम्भ करने का सुझाव दिया। यूपी के सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव ने इस पर अपनी सहमति दी। तय किया गया कि एक संयुक्त एसपीवी बनाया जाएगा। इसकी फीजीबिलीटी स्टडी जल्द करवा ली जाएगी। यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड़ एक दूसरे के पूरक हैं। जब केंद्र में हरीश रावत मंत्री थे तो उत्तर प्रदेश सरकार को उनसे काफी सहयोग मिला था। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड़ की मदद के लिए हमेशा तत्पर है।
बैठक में तय किया गया कि जिन बिंदुओं पर सहमति बन चुकी है उन्हें एक निश्चित टाईमफ्रेम में हल कर लिया जाएगा। पुरानी ऊपरी गंग नहर रूड़की में वाटर स्पोर्ट्स के लिए यूपी द्वारा सहमति दी गई। उत्तराखण्ड़ में वर्ष 2018 में होने जा रहे नेशनल गेम्स को देखते हुए यह बहुत महत्वपूर्ण है। यह पहले ही तय किया जा चुका है कि उत्तराखण्ड़ की भौगोलिक सीमा में स्थित उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के नियंत्रणाधीन भवनों में से लगभग 25 प्रतिशत भवनों को उत्तराखण्ड़ राज्य के प्रयोजन के लिए उत्तराखण्ड़ को हस्तांतरित किया जाएगा। इसे 31 मार्च तक कर देने का निर्णय लिया गया।
जिन नहरों के हेड व टेल उत्तराखण्ड़ में है, परंतु स्वामित्व उत्तर प्रदेश सरकार के पास है, उन्हें यूपी सरकार द्वारा जल्द ही उत्तराखण्ड़ को सौंप दिया जाएगा। ऐसी कुल 37 नहरें हैं इनमें से 28 नहरें हरिद्वार जनपद में व 9 नहरें ऊधमसिंहनगर जनपद में हैं। जमरानी बांध के लिए उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड़ में एमओयू हस्ताक्षरित किया जाना है। एमओयू का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। इसे दोनों राज्यों की केबिनेट से जल्द ही अनुमोदित करा दिया जाएगा। इसके बाद इसे केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। तय किया गया कि मार्च माह में एमओयू पर दोनों राज्यों के अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षर कर दिए जाएंगें।
रामगंगा में जल संभरण बढ़ाने के लिए एक योजना तैयार की जाएगी। इसमें गैरसैंण से प्रारम्भ करते हुए अनेक जलाशय बनाए जाएंगे। टिहरी डैम में प्रभावित हो रहे गांवों के पुनर्वास के संबंध में यूपी व उत्तराखण्ड़ मिलकर केंद्र सरकार व टीएचडीसी से अनुरोध करेंगे। इस बात पर भी सहमति बनी कि हरिद्वार में गंगा नदी में नालों को टैप कर उन्हें एक समानांतर कैनाल या पाईपलाईन से बाहर ले जाया जाएगा। इसके लिए यूपी सरकार द्वारा फंडिंग की जाएगी। यूपी सरकार हरिद्वार में ज्ञान गोदड़ी के लिए अपनी स्वामित्व की भूमि भी उपलब्ध करवाएगी। साथ ही आश्रम नगर हरिद्वार में ईसाई कब्रिस्तान के लिए भूमि देने पर यूपी के सिंचाई मंत्री यादव द्वारा सहमति व्यक्त की गई।
यह भी तय किया गया कि उत्तराखण्ड़ की सीमा में यूपी की ऐसी भूमि व सम्पत्ति जो उनके उपयोग में नहीं आ रही है, उत्तराखण्ड़ सरकार को विक्रय कर दी जाएगी या लीज पर दे दी जाएगी। किच्छा नगर क्षेत्र में रोड़वेज बस अड्डे का स्वामित्व सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड़ सरकार को कर दिया जाएगा। बैठक में उत्तराखण्ड़ के सिंचाई मंत्री यशपाल आर्य, मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह, मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव राकेश शर्मा, उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव दीपक सिंघल सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
नेशनल
लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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