आध्यात्म
जली हुई चिता की राख से यहां लोग खेलते हैं होली, वजह जानकर हैरान रह जाएंगे
एक पुरानी परंपरा के अनुसार भगवान भोलेनाथ जब रंगभरी एकादशी को पार्वती का गौना करा कर जाते हैं, उस दिन वो समस्त देवी देवताओं व काशी वासियों के साथ होली खेलते हैं। वहीं उसके दूसरे दिन उनके गण, भूत, पिचास साधु, सन्यासी भी उनके साथ होली खेलने के लिए उनका इंतजार करते हैं और भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों को बिना इंतजार कराएं अगले दिन पहुंच जाते हैं।
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर चिता की भस्म के साथ होली खेली जाती है। मणिकर्णिका घाट जहां पर भूत प्रेत और साधु सन्यासियों के साथ होली खेलते हैं, वह होती है दुनिया की सबसे अनोखी होली चिता भस्म की होली।
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कहा जाता है ये होली पुरानी परंपरा के साथ चलती चली आ रही है, जहां मणिकर्णिका घाट पर स्थित मणिकर्णिकेश्वर महादेव का सबसे पहले सिंगार किया जाता है ,उसके बाद उनकी आरती के साथ ही चिता भस्म और अबीर गुलाल एक दूसरे पर लोग डालना शुरू कर देते हैं।
मंदिर के बाद ये कारवां चिताओं के बीच में पहुंचता है, जहां डीजे की धुन पर लोग एक दूसरे के ऊपर चिता भस्म की राख को उड़ाते हुए होली का आनंद लेते हैं । वहीं एक तरफ चिता जल रही होती है तो दूसरी तरफ चिताओं की ठंडी राख एक दूसरे पर फेंककर होली का आनंद लिया जाता है और कहा जाता है एक दिन सभी को इसी तरह चिताओं में भस्म हो जाना है, तो फिर क्यों मौत से डरना आज के इस अलौकिक होली में काशी वासियों के साथ विदेशी भी जमकर झूमते हैं और एक दूसरे पर चिता की भस्म को फेंकते हैं।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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