आध्यात्म
इस गुरू पूर्णिमा पूरी करिए अपनी सभी मनोकामनाएं, शुरू हुआ उत्तर भारत का एकमात्र करोड़ी मेला
मथुरा। मथुरा से जब आप पश्चिम की तरफ बढ़ेंगे तो 21 किलोमीटर के बाद आपको मिलेगा गिरिराज गोवर्धन धाम। यहां पर लगता एक विशेष मेला जो गुरू पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित किया जाता है। इस मेले की खास बात ये है कि यह पूरे उत्तर भारत का एकमात्र करोड़ी मेला है। मतलब इस मेले में करोड़ो की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मेले को ‘मुड़िया मेले’ के नाम से जाना जाता है। यह राजकीय मुड़िया मेला देवशयनी एकादशी सोमवार यानी 23 जुलाई से शुरू हो गया।
मेला 29 जुलाई तक चलेगा। गुरू पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित होने वाले इस मेले में तरह-तरह के रंग देखने को मिल रहे हैं। कोई पुण्य और मोक्ष की कामना के लिए गिरिराजजी की परिक्रमा लगा रहा है तो कोई मानसी गंगा के घाटों के ऊपर लगे फव्वारों में स्नान कर रहा है। गिरिराज जी पर दुग्धाभिषेक कर पूजा-अर्चना की जा रही है। गिरिराजजी की सप्तकोसीय परिक्रमा में मानव श्रृंखला भी बनने लगी है। श्रद्धालुओं की आस्था के आगे मौसम भी हार मान गया क्योंकि सोमवार को कड़ी धूप के बावजूद किसी भक्त की आस्था नहीं डिगी।
दिन में श्रद्धालुओं ने गिरिराजजी की परिक्रमा लगाई और जैसे-जैसे शाम हुई श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफ़ा होता चला गया। नगर के कई प्रमुख मंदिरों को रंग-बिरंगी लाइट्स से सजाया गया है। ऐसी मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा पर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने पर सभी मनोकामना पूरी हो जाती हैं। इसी आस्था और मनोकामना के साथ यहां हर साल श्रद्धालु आते हैं। मेले में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं। जैसे, परिक्रमा मार्ग में जगह-जगह टैंट लग गए हैं, जिन पर शीतल पेयजल, शिकंजी, शर्बत व भोजन की व्यवस्था की गई है, राजस्थान सीमा में चलने वाले भंडारे व प्याऊ के लिए बिना किसी शुल्क के सेवा करने की अनुमति दी गई है।
कई लोग परिक्रमार्थियों की सेवा कर पुण्य कमाने में जुटे हैं। खास अवसर पर आयोजित होने वाले इस मेले में उत्तर प्रदेश के साथ राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के श्रद्धालु आते हैं। मेले की सुरक्षा व्यवस्था छः सुपर जोन, 21 जोन और 60 सेक्टरों में बांटी गई है। 2400 पुलिसकर्मी चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा की कमान संभाल रहे हैं। सीसीटीवी से निगरानी की जा रही है। इस मेले के अवसर पर परिवहन निगम ने ख़ास 1500 बसें चलाईं हैं।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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