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आध्यात्म

नवरात्र के इस आठवें दिन मां गौरी की ऐसे करें आराधना, जानें उचित विधियां

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आज नवरात्र का आठंवा दिन है।आज के ही दिन मां गौरी के रूप की साधना की जाती है। बहुत से लोग मां गौरी की पूजा को लेकर भ्रमित रहते है क्योंकि वे लोग पूजा और आराधना की उचित विधियों को नहीं समझ पाते है।

इसीलिए आज हम आपके लिए पूजा की कुछ ऐसी विधियां लेकर आए है। जिसे अगर आप अपने घर के मन्दिर में अपनाएगें तो बेशक ही माँ गौरी आपके प्रयासों से प्रसन्नचित हो जाएंगी।

ऐसे करें माँ की साधना-

सबसे पहले तो आप सामान्य पूजा करें उसके बाद मां गौरी की साधना करें. मां गौरी की पूजा पूरे भाव और श्रद्धा से की जाए तो बहुत लाभदायी फल मिलते है। महागौरी की चार भुजाएं होती है।

इनका वाहन का नाम वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है।

ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। मां गौरी की साधना वि‍शेष समय पर की जाती है।

मां गौरी की साधना रात में की जाती है। दिन के समय मां गौरी की मूर्ति या चित्र के आगे एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करें।

इस दौरान आप सफेद रंग के वस्‍त्र पहनेंगे तो बहुत अच्छा होगा। किसी वि‍शेष पीड़ा से परेशान लोगों को दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करना चाहिए।

इससे आपकी परेशानियों में कमी आएगी। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

 

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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