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सोते वक्त बंद कमरे में कट जाती है चोटी, दहशत में रतजगा कर रहे लोग
नई दिल्ली। दिल्ली एनसीआर इन दिनों एक रहस्यमयी ख़ौफ़ की गिरफ्त में हैं। इस बार वजह बना है- रहस्यमयी चोटी-चोर!
जो घर में घुसकर रहस्यमयी तरीक़े से सोती महिलाओं की चोटियां काट डालता है। जहां ये घटनाएं हुईं, वहां घरों के खिड़की-दरवाज़े बंद थे और घरवालों ने तो क्या, खुद महिलाओं ने भी किसी को वहां आते और जाते हुए नहीं देखा।
आख़िर ये मामला क्या है? आख़िर इन वारदातों के पीछे का रहस्य क्या है? कौन है जो महिलाओं को निशाना बना रहा है? कौन है जो उनकी चोटियां काट कर भाग रहा है?
ये कटे हुए बाल और ये तरह–तरह की कहानियां दिल्ली एनसीआर की फ़िजा में अजीब सा डर घोल रही हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि आख़िर ये माजरा क्या है। दिल्ली एनसीआर में पिछले दो दिनों में चार महिलाओं की चोटियां कट चुकी हैं।
जानकारी के मुताबिक, बीते दिन गुड़गांव में एक 13 साल की लड़की के चोटी काटने का मामला सामने आया था। घटना के समय लड़की सोई थी। सुबह परिवारीजनों को कटी हुई चोटी मिली।
वहीं, मेवात से भी पिछले दो हफ्तों में ऐसी ही 15 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन घटनाओं से लोगों में दहशत हैं। गांव के लोग इन घटनाओं को भूत-प्रेत का असर बता रहे हैं। दिल्ली के छावला स्थित कांगनहेड़ी गांव में डर से बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है।
गांव की महिलाएं खौफ में हैं, उन्हें हर पल चोटी काटने वाले भूत का डर सता रहा है। इसके बाद टीम ने पूरे गांव का दौरा किया। लोगों ने अपने दरवाजो पर नीम के पेड़ की डाल लगाई हुई है। जब इस बारे में पूछा गया तो लोगों ने बताया कि नीम के इस्तेमाल से भूत-प्रेत घर के अंदर नहीं घुसते हैं।
गांव की महिलाएं अपने पतियों के साथ ही बाहर दिख रही हैं। बच्चे रात के समय घर के दरवाजे तक नहीं आ रहे। ऐसे तो गांव के काफी लोग पढ़े लिखे हैं, लेकिन एक साथ तीन महिलाओं के साथ हुई ऐसी घटना ने उन्हें अन्धविश्वासी बना दिया है। लोगों के मुताबिक, तीन महिलाएं झूठ नहीं बोल सकती।
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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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