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ममता का सिर काटने वाले बयान पर सियासी तूफान, भाजपा ने किया किनारा

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अलीगढ़। ममता बनर्जी का सिर कलम करने वाले को 11 लाख रुपये इनाम देने की बात करने वाले नेता से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को किनारा कर लिया। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह इस तरह की धमकियों को आशीर्वाद मानती हैं।

तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं ने संसद में नाराजगी के साथ मुद्दे को उठाया। दोनों पार्टियों ने योगेश वाष्र्णेय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इस पर भारतीय जनता पार्टी ने अलीगढ़ के इस नेता से दूरी बना ली। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों को माफ नहीं किया जा सकता है। सिन्हा ने कहा, “हमें संदेह है कि उनके पास भाजयुमो का नेता होने की विश्वसनीयता है। इस तरह की टिप्पणी का कोई समर्थन नहीं कर सकता। उन्होंने एक जेहादी के तरह बयान दिया है।”

उन्होंने कहा, “हम ममता बनर्जी का राजनीतिक आधार पर विरोध जारी रखेंगे। लेकिन भाजपा घृणा और हत्या की राजनीति को मंजूरी नहीं देती, हालांकि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने इस तरह की टिप्पणी पहले की है।”

इस बीच ममता बनर्जी ने मुर्शिदाबाद में कहा, “मेरी बहुत बार आलोचना की गई है। मैं इसे आशीर्वाद के तौर पर मानती हूं। वे जितना मुझे कोसेंगे उतना ही हम और आगे बढ़ेंगे।” उन्होंने कहा, “अभी हम बंगाल में हैं। धीरे-धीरे हम बिहार, ओडिशा, झारखंड, दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश में जाएंगे।”

लोकसभा में संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने टिप्पणी की निंदा की। उन्होंने कहा, “यह बयान पूरी तरह गलत है। हम इसकी निंदा करते हैं। ममता बनर्जी एक चुनी हुई नेता हैं और उनका आदर किया जाना चाहिए।

भाजपा युवा मोर्चा के नेता योगेश वाष्र्णेय ने पश्चिम बंगाल के बीरभूमि जिले में मंगलवार को हनुमान जयंती के जुलूस में भाग लेने वालों के साथ पुलिस की झड़प के बाद यह बयान दिया।

जुलूस में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस की कार्रवाई का वीडियो देखने के बाद वाष्र्णेय ने कहा, “वह (ममता) मुसलमानों के साथ हैं। क्या हिंदू इंसान नहीं हैं? यदि थोड़ी भी मानवता होती तो वहां हिंदुओं से इतना भेदभाव नहीं किया जाता।” उन्होंने कहा, “यह वीडियो देखने के बाद मेरे मन में सिर्फ एक ही बात आई कि जो भी ममता बनर्जी का सिर कलम करेगा, मैं उसे 11 लाख रुपये इनाम दूंगा।”

वाष्र्णेय की यह घोषणा सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसके बाद उनकी कड़ी आलोचना की गई। इस टिप्पणी को एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री के खिलाफ उकसावे वाली और एक महिला पर हमला बताते हुए विपक्षी नेताओं ने वाष्र्णेय की निंदा की।

तृणमूल महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा कि वाष्र्णेय जैसे लोगों को यह नहीं पता है कि बनर्जी किस चीज से बनी हैं। चटर्जी ने कहा, “उन्हें कोलकाता पुलिस मुख्यालय से बाहर निकाला गया और माकपा के शासन के दौरान राइटर्स बिल्डिंग से खींचकर बाहर किया गया। पुलिस ने सिंगूर भूमि आंदोलन (2006) में उनका बाल पकडक़र खींचा, लेकिन फिर भी उन्हें रोका नहीं जा सका।”

प्रसिद्ध बांग्ला लेखिका नबनीता देब सेन ने कहा, “मुझे बहुत ही नाराजगी है। हम कहां रह रहे हैं? फतवा जारी किए जा रहे हैं और मौत की धमकी दी जा रही है। उसे गिरफ्तार कर दंडित किया जाना चाहिए।” तृणमूल के सौगत राय ने वाष्र्णेय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।सौगत राय का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खगड़े ने कहा कि भाजपा नेता के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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