Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

आध्यात्म

हम क्यों निगलेक्ट कर रहे हैं अपनी ही बेशकीमती धरोहर?

Published

on

गुरू जी की शिक्षाओं की अत्यधिक आवश्यकता, परमाहंस योगानन्द जी, गिरजाघरों में इसाई धर्म की व्याख्या, मृणालिनी माता

Loading

एन.एस. गौतम
कृपया इस पैरा को ध्यान से पढ़ें और विचार करें –

”भारत में गुरू जी की शिक्षाओं की अत्यधिक आवश्यकता है, हम उस भूमि को अपनी शिक्षाओं और साधना के स्रोत के रूप में देखते हैं, और फिर भी वहाँ के अधिसंख्य लोगों को अपनी स्वयं की धरोहर का ज्ञान नहीं है। जिस प्रकार गुरू जी जब गिरजाघरों में इसाई धर्म की व्याख्या करते थे, और लोग कहते थे ‘ओह, इन गूढ़ बातों का सही अर्थ मैंने पहले कभी नहीं समझा था,’इसी प्रकार जब दया माता जी भारतीयों के बीच गईं , और उनका दर्शन उन्हें ही समझाया, तो यह एक दिव्य आलोक उनके बीच फैलने जैसा था। हमें बारंबार यही बात सुनने को मिली:

‘आपको अमेरिका से यहां भारत आना पड़ा कि हम अपने तत्‍व-ज्ञान, स्वयं अपनी प्राचीन संस्कृति एवं सत्यों को समझ सकें और इसका आदर कर सकें।’“ यह पैरा मृणालिनी माता के उस लेख से लिया गया है जो हाल ही में उन्होंने, दया माता द्वारा 1961 में की गई भारत यात्रा, के बारे में लिखा है। दया माता जी एक अमेरिकन महिला थी जो 20वीं सदी के महान योगी परमहंस योगानन्द की शिष्या तथा स्वयं में एक पहुंची हुई योगी थीं। मृणालिनी माता भी एक अमेरिकन महिला हैं। नाम भारतीय परम्पराओं के आधार पर हैं। गुरूजी से तात्पर्य परमाहंस योगानन्द जी से है,यह सच है: इन महान लोगों द्वारा दी गयी शिक्षा भारत की अद्भुत धरोहर है और हमारी वास्तविक एवं सांइटिफिक संस्कृति, जिसको यदि हम ठीक प्रकार समझें और सांइटिफिकली सीखें तो न सिर्फ हम स्वयं के जीवन को तनावमुक्त, सुन्दर एवं खुशहाल बना सकते हैं, बल्कि अपने परिवार, विभाग/कार्यस्थल, देश और समाज की ढेर सारी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, एक सुन्दर समाज की रचना कर सकते हैं। यह ”मानव जीवन का विज्ञान” है, जीवन की सच्चाई है, जीवन की शिक्षा है। इसे हमें अपनाना ही होगा, इसका कोई विकल्प नहीं है। इसमें किसी भी समस्या का समाधान मौजूद है। जिन लोगों ने इस विज्ञान को समझा और अमल किया वह न सिर्फ एक सुन्दर जीवन जीते रहे हैं, जी रहे हैं बल्कि अपने चारों ओर हर क्षेत्र में एक असैट साबित हुए हैं।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है: इस देश के अच्छे पढ़े लिखे, शिक्षाव्दि, उच्च पदों पर आसीन एवं जिम्मेदार तथा देश को चलाने वाले लोग भी अपनी ही बेशकीमती धरोहर से अनभिज्ञ हैं, उसको निगलेक्ट करते हैं, सम्मान नहीं कर पाते तथा उसकी अद्भुत शक्ति में विश्वास नहीं कर पाते। अज्ञान की पराकाष्ठा: सारी समस्याओं तथा भारत में इस महान विज्ञान के प्रति जागरूकता का अभाव, का कारण अज्ञान है। स्थिती यहाँ तक सोचनीय है कि जब लोगों को इस आधार पर ट्रेनिंग दी गई और उससे प्रभावित होकर उन्होंने सभी को इस ट्रेनिंग की सिफारिश की और उनके इन विचारों को उच्चाधिकारियों तक भेजा गया, जिनमें उनके अपने विभागों के अधिकारी भी शामिल हैं, तो उनमें से अधिकतर इस पर विश्वास ही नहीं कर पाये या फिर ध्यान ही नहीं दिया। सच्चाई यह है कि इस दुनिया में जो कुछ भी हम करते हैं वह इस जीवन के लिए ही करते हैं और जो कुछ भी किया जाता
है वह सब कुछ इसी जीवन 1⁄4व्यक्ति1⁄2 के द्वारा ही किया जाता है, लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि अधिकतर लोगों के पास व्यक्तिगत तथा संगठन या विभागों के रूप में उसी जीवन के लिए, उसकी सच्चाईयों को जानने के लिए, उसको इफैक्टिव बनाने के लिए, दुःख और ब्याधियों से दूर रहने के लिए जिस शिक्षा की जरूरत है और जो अति आवश्यक है, उसके लिए ही समय नहीं है।

उसका परिणाम होता है तनाव और बीमारियों से घिरा हुआ निम्न स्तर का जीवन तथा अपने चारों ओर विघटन और बरबादी। सभी महान लोगों ने जिन्होंने समाज में एक शिक्षक का काम किया और जीवन को जीना सिखाया, अज्ञान हटाने को कहा है तथा उसकी शिक्षा दी है। हमें व्यक्तिगत रूप से अपने स्वयं के जीवन तथा एक लीडर या डिसीजन मेकर के रूप में अपने विभाग/कार्यस्थल, अधीनस्थ लोगों तथा समाज की खुशहाली हेतु इस ओर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।

यह शिक्षा दिन प्रतिदिन के वास्तविक जीवन में साधारण तरीके से दी जा सकती है, सीखी जा सकती है। हर व्यक्ति इसको समझ सकता है, सीख सकता है और अपने जीवन में उतार सकता है। चंद दिनों की ट्रेनिंग से बहुत कुछ किया जा सकता है। आप अपनी आँखों के सामने प्रक्टीकल रूप से परिवर्तन देख सकते हैं, ढेर सारी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। ट्रेनिंग आँखें खोलिये, एक कदम आगे बड़ाइये, बहुत कुछ बदल सकता है

 

Continue Reading

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

Published

on

Loading

नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

Continue Reading

Trending