आध्यात्म
लाखों शिवभक्त करेंगे दूधेश्वर का अभिषेक
गाजियाबाद। भगवान विष्णु को जिस तरह मार्गशीर्ष (माघ) महीना प्रिय है, उसी प्रकार भगवान शिव को श्रावण माह अतिप्रिय है। श्रावण माह में किए गए पूजन, जप व अभिषेक का फल कई गुना मिलता है। इसलिए इस बार भी शिवरात्रि में लाखों शिवभक्त दूधेश्वर शिव का अभिषेक करेंगे। यहां के सिद्धपीठ दूधेश्वर मंदिर में श्रावण मास को लेकर आयोजित प्रेसवार्ता में महंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि श्रावण शिवरात्रि का मुख्य मेला 11, 12 व 13 अगस्त तक रहेगा। शिवरात्रि का व्रत बुधवार 12 अगस्त को होगा। इसी दिन लाखों की संख्या में शिवभक्त कांवड़िये गंगाजल से भगवान दूधेश्वर का जलाभिषेक करेंगे।
उन्होंने बताया कि 12 अगस्त को ही भगवान दूधेश्वर की आठ प्रहर की विशेष पूजा भी शुरू होगी, जो 13 अगस्त तक चलेगी। महंत ने बताया कि संपूर्ण मंदिर परिसर सीसीटीवी कैमरों की जद में रहेगा। इसके अलावा कांवड़ियों के वेश में पुलिस व सिविल डिफेंस के लोग भी मौजूद रहेंगे। गंगाजल की व्यवस्था हर वर्ष की भांति नगर निगम ही करेगा।
मंदिर विकास समिति के अध्यक्ष धर्मपाल गर्ग ने कहा कि मंदिर की तरफ से सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, लेकिन नगर निगम इस कार्य में बिल्कुल रुचि नहीं ले रहा है। चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है। जगह-जगह मांस की दुकानें खुली हुई हैं, जिस कारण कावड़ियों को काफी परेशानी होती है।
उन्होंने कहा कि यदि नगर निगम ने पांच अगस्त तक सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं कीं, तो वह महंत नारायण गिरि के साथ नगर निगम में जाकर भूख हड़ताल करेंगे।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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