आध्यात्म
महाशिवरात्रि पर इस तरीके से करें भगवान शिव का रुद्राभिषेक, हर हाल में पूरी होगी मनोकामना!
नई दिल्ली। भगवान शिव अपने भक्तों से आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन महादेव को जल्दी प्रसन्न करने का रामबाण तरीका है उनका रुद्राभिषेक।
ज्योतिष की मानें तो सही समय पर रुद्राभिषेक करके आप भोलेनाथ से मनचाहा वरदान पा सकते हैं। रुद्राभिषेक भोलेनाथ को बहुत ही प्रिय है।
कहते हैं कि रुद्राभिषेक से शिव जी को प्रसन्न करके आप असंभव को भी संभव बना सकते हैं। आइए जानते हैं कि इस महाशिवरात्रि किस तरह करें महादेव का रूद्राभिषेक और पाएं अपना मनचाहा वरदान-
– मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना बहुत उत्तम होता है।
– इसके अलावा घर में स्थापित शिवलिंग पर भी अभिषेक कर सकते हैं।
– रुद्राभिषेक घर से ज्यादा मंदिर में, नदी तट पर और सबसे ज्यादा पर्वतों पर फलदायी होता है।
– शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते हैं।
-शिवलिंग पर मंत्रों के साथ विशेष चीजें अर्पित करना ही रुद्राभिषेक कहा जाता है।
– रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं।
– सावन में रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है।
रुद्राभिषेक में मनोकामना के अनुसार अलग-अलग वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। ज्योतिष मनाते हैं कि जिस वस्तु से रुद्राभिषेक करते हैं उससे जुड़ी मनोकामना ही पूरी होती है तो आइए जानते हैं कि कौन सी वस्तु से रुद्राभिषेक करने से पूरी होगी आपकी मनोकामना-
– घी की धारा से अभिषेक करने से वंश बढ़ता है।
– इक्षुरस से अभिषेक करने से दुर्योग नष्ट होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
– शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने से इंसान विद्वान हो जाता है।
– शहद से अभिषेक करने से पुरानी बीमारियां नष्ट हो जाती हैं।
– गाय के दूध से अभिषेक करने से आरोग्य मिलता है।
– शक्कर मिले जल से अभिषेक करने से संतान प्राप्ति सरल हो जाती हैं।
– भस्म से अभिषेक करने से इंसान को मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
– कुछ विशेष परिस्थितियों में तेल से भी शिव जी का अभिषेक होता है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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