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आध्यात्म

चंद्र ग्रहण 2018: गुरु पूर्णिमा की रात चंद्र ग्रहण, जानिए किनके लिए है फायदेमंद

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सदी का सबसे बड़ा चंद्रग्रहण 27-28 जुलाई को लगने जा रहा है और इस दिन गुरु पूर्णिमा भी है। चंद्र ग्रहण की शुरुआत 27 जुलाई को रात 11 बजकर 54 मिनट 02 सेकेंड पर होगी और पूर्ण चंद्रग्रहण रात 01 बजकर 51 मिनट 08 सेकेंड पर होगा।

साभार – इंटरनेट

चंद्र ग्रहण अष्टांग योग में 104 वर्ष बाद पड़ रहा है और गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण की स्थिति 18 वर्ष बाद बन रही है। इससे पहले गुरु पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण की स्थिति 16 जुलाई 2000 में बनी थी। हिंदू शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के दौरान प्रतिमा स्पर्श, पूजा पाठ के साथ भोजन और शयन करना वर्जित मान गया है।

साभार – इंटरनेट

चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को हो सकता है घटित – चंद्रग्रहण वो खगोलीय स्थिति है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सरल रेखा में होते हैं। चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार और अवधि चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं।

साभार – इंटरनेट

इनके लिए है शुभ ग्रहण  – ये ग्रहण संगीत और साहित्य से जुड़े लोगों के लिए अच्छा है तो वहीं इस ग्रहण से किसानों को भी फायदा मिलेगा।

साभार – इंटरनेट

इनके लिए है अशुभ ग्रहण – मंत्रियों, राजनीतिक लोगों, प्रशासनिक व सरकारी अधिकारियों, कथा वाचकों, ज्योतिषियों, मान्त्रिकों, अग्निहोत्रियों, पुरोहितों के साथ आध्यात्मिक और धार्मिक गुरुओं और कारोबारियों के लिए ये ग्रहण शुभ नहीं है।

 

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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