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विश्व राजनीति में बढ़ी प्रवासी भारतीयों की धमक
नई दिल्ली| ब्रिटेन में पिछले दिनों हुए संसदीय चुनाव में डेविड कैमरन के नेतृत्व वाली कंजरवेटिव पार्टी की अनपेक्षित जीत के पीछे जिन कारणों को गिनाया गया है, उसमें एक प्रमुख कारण भारतीय मूल के लोगों का उन्हें अपार समर्थन भी शामिल है।
भारतीय मूल के लोगों की एकजुटता और समर्थन के कारण कैमरन की न केवल सत्ता में जोरदार वापसी हुई, बल्कि भारतीय मूल के 10 सांसद भी जीतकर संसद पहुंचने में सफल रहे। किसी पराये देश में परदेशियों की यह उपलब्धि किसी भी रूप में कम नहीं आकी जा सकती।
ब्रिटेन में कुल 4.5 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें से 6,15,000 भारतीय मूल के हैं। इस संख्या बल का ही परिणाम रहा है कि चुनाव के दौरान कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी सहित अन्य कई पार्टियों के छोटे-बड़े नेताओं ने भारतीयों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कैमरन और उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी एड मिलिबैंड को मंदिरों, गुरुद्वारों में मत्था टेकते देखा गया। नेताओं को सिर पर हिंदू पगड़ी बांधे भी देखा गया। राजनीति है ही ऐसी चीज, जिसके लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता। लेकिन इन सबका लाभ मिला सिर्फ कैमरन को, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ सिर पर हिंदू पगड़ी बांधी, बल्कि भारतीय मूल के लोगों की पगड़ी बचाने का वादा भी अपने चुनावी घोषणा-पत्र में किया था।
कैमरन की कंजरवेटिव पार्टी को 650 सदस्यीय संसद में कुल 331 सीटें हासिल हुईं, जबकि मिलिबैंड की लेबर पार्टी को 232 सीटों से संतोष करना पड़ा है। बाकी सीटें अन्य दलों के खाते में गईं।
यही नहीं, इस चुनाव में भारतीय मूल के 10 उम्मीदवार भी संसद पहुंचने में कामयाब रहे हैं। गुजराती मूल की प्रीति पटेल को कैमरन सरकार में रोजगार मंत्री बनाया गया है। यह इस बात का साफ संकेत है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारतवंशियों को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है।
दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन में भारतीय मूल के पहले सांसद थे, जो 1892 के आम चुनाव में जीतकर संसद तक पहुंचे थे। ब्रिटेन में 2010 के चुनाव में भारतीय मूल के आठ उम्मीदवार चुनकर संसद पहुंचे थे।
भारतीय मूल के लोगों की यह धमक यूं ही नहीं बनी है। ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों की संख्या सर्वाधिक है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, ब्रिटेन में भारतीय मूल के 14 लाख लोग हैं, जबकि 1960 में ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की संख्या लगभग पांच हजार ही थी।
एक अध्ययन के मुताबिक, इंग्लैंड और वेल्स में 2001 के बाद अप्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ी है, जिसमें सर्वाधिक संख्या भारतीयों की है।
ब्रिटेन में आप्रवासी भारतीयों की बहुलता के कारण राजनीति की भाषा में उन्हें वोट बैंक समझा जाने लगा है। यही कारण है कि कई भारतीयों को अक्सर विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया है।
आम तौर पर ब्रिटेन का भारतीय समुदाय लेबर पार्टी के पक्ष में वोट करता आया है। ब्रिटेन के तीन बड़े विश्वविद्यालयों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि 1997 में 77 प्रतिशत भारतीय लेबर पार्टी को समर्थन देते थे, लेकिन 2014 में यह संख्या घटकर 14 प्रतिशत रह गई है।
ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि भारतीय मूल के लोगों ने अपने वोट की कीमत समझनी शुरू की, नफा-नुकसान का हिसाब लगाया। और अब 2015 के चुनाव में भारतीय समुदाय ने कंजर्वेटिव पार्टी को चुना।
‘पॉलिसी एक्सचेंज’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक ब्रिटेन की लगभग 30 प्रतिशत आबादी श्वेत नहीं रह जाएगी। मौजूदा समय में यह दर 14 प्रतिशत है।
इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि ब्रिटेन और भारत निवेश की दृष्टि से एक-दूसरे के लिए काफी लाभप्रद हैं। जी-20 समूह के देशों में से ब्रिटेन ही भारत में सर्वाधिक निवेश करता है। साल 2000 से लेकर 2014 तक ब्रिटेन ने भारत में 1.31 अरब रुपये का निवेश किया है।
भारतीय प्रवासियों की यह धमक सिर्फ ब्रिटेन में ही नहीं है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, कनाडा, मॉरीशस, त्रिनिदाद एवं टोबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर जैसे देशों में भी भारतीय मूल के लोगों की राजनीति में अपनी हैसियत है।
भारतीय मूल के बॉबी जिंदल इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के दावेदार हैं। वह पहले से लुसियाना प्रांत के गवर्नर हैं। भारत में अमेरिका के मौजूदा राजदूत रिचर्ड राहुल वर्मा भी भारतीय मूल के हैं।
भारतीय मूल की कमला प्रसाद बिसेसर मौजूदा समय में त्रिनिदाद की प्रधानमंत्री हैं। मॉरीशस मेंशिवसागर रामगुलाम और अनिरुद्ध जगन्नाथ, न्यूजीलैंड में डॉ. आनंद सत्यानंद, गुयाना में छेदी जगन और भरत जगदेव और सिंगापुर में देवन नायर और एस. आर. नाथन, फिजी में महेंद्र चौधरी और मॉरीशस में डॉ. नवीनचंद्र राम गुलाम जैसे भारतीय मूल के लोग सत्ता में उच्च पदों पर रह चुके हैं।
भारतीयों का दूसरे देशों में जाने और वहां बसने का सिलसिला कायदे से 19वीं सदी के प्रारंभ में शुरू होता है। इसका मूल कारण आर्थिक रहा है। कारोबार, नौकरी के लिए भारतीयों ने देश छोड़कर विदेशों में बसना शुरू किया।
बेहतर जिंदगी की तलाश में भारतीयों ने पश्चिमी देशों से लेकर, अफ्रीकी और खाड़ी देशों तक की दूरी नापी है और खाक छानी है। यह सिलसिला आज भी जारी है।
उदारीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति के बाद यह सिलसिला अलबत्ता बढ़ा ही है। जो भारतीय प्रवासी दूसरे देशों में पहले हेय दृष्टि से देखे जाते थे और जिन्हें अश्वेत कहकर दुत्कारा जाता था, आज उनकी हर तरफ पूछ है।
बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में शीर्ष पदों पर कई सारे भारतीय मिल जाएंगे। इंदिरा नूई, विक्रम पंडित, सत्यनारायण नडेला, प्रणव मिस्त्री, सुंदर पिचई जैसे अप्रवासी भारतीय क्रमश: पेप्सिको, सिटी बैंक, माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग और गूगल जैसी प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नेतृत्व कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने और उनके विदेश दौरों से भी देश से बाहर रह रहे भारतीय मूल के लोगों का मनोबल बढ़ा है।
नेशनल
भाजपा का परिवार आरक्षण ख़त्म करना चाहता है: अखिलेश यादव
एटा। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एटा में सपा प्रत्याशी देवेश शाक्य के समर्थन में संविधान बचाओ रैली को संबोधित किया। इस दौरान अखिलेश यादव ने कहा कि संविधान बचेगा तो लोकतंत्र बचेगा और लोकतंत्र बचेगा तो वोट देने का अधिकार बचेगा। अखिलेश यादव ने दावा किया कि ये अग्निवीर व्यवस्था जो लेकर आए हैं इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी तो अग्निवीर व्यवस्था समाप्त कर पहले वाली व्यवस्था लागू करेंगे।
उन्होंने आरक्षण मामले पर आरएसएस पर बिना नाम लिए निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा के साथ एक सबसे खतरनाक परिवार है, जो आरक्षण खत्म करना चाहता है। अब उन्हें वोट चाहिए तो वह कह रहे हैं कि आरक्षण खत्म नहीं होगा।
उन्होंने आगे कहा कि मैं पूछना चाहता हूं अगर सरकार की बड़ी कंपनियां बिक जाएंगी तो क्या उनमें आरक्षण होगा? उनके पास जवाब नहीं है कि नौकरी क्यों नहीं दे रहे हैं? लोकसभा चुनाव संविधान मंथन का चुनाव है। एक तरफ वो लोग हैं जो संविधान को हटाना चाहते हैं। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन और समाजवादी लोग हैं जो संविधान को बचाना चाहते हैं। यह चुनाव आने वाली पीढ़ी के भविष्य का फैसला करेगा। वो लोग संविधान के भक्षक हैं और हम लोग रक्षक हैं।
अखिलेश यादव ने कहा कि एटा के लोगों को भाजपा ने बहुत धोखा दिया है। इनका हर वादा झूठा निकला। दस साल में एक लाख किसानों ने आत्महत्या की है। उनकी आय दोगुनी नहीं हुई। नौजवानों का भविष्य खत्म कर दिया गया है। हर परीक्षा का पेपर लीक हो रहा है।
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