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लखवी की जमानत पर लोकसभा में निंदा प्रस्ताव पारित
नई दिल्ली| लोकसभा में शुक्रवार को 26/11 हमले के मुख्य साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवी को पाकिस्तान में दी गई जमानत पर निंदा प्रस्ताव पारित किया गया और सरकार से मुंबई हमले के कानूनी मामले का संतोषजनक हल निकालने का दबाव पाकिस्तान पर बनाने की मांग की गई।
प्रस्ताव के मुताबिक, “हमने पेशावर में निर्दोष बच्चों और अन्य लोगों की त्रासदपूर्ण हत्या के तुरंत बाद उसी देश द्वारा आरोपी आतंकवादी की जमानत पर रिहाई को लेकर भारत की जनता की चिंता से अवगत कराया।”इसमें कहा गया है, “ऐसा लगता है कि आतंकवादियों के साथ किसी भी तरह का समझौता न करने की सीख से कुछ नहीं सीखा गया है।”इससे पहले सभी पार्टियों के नेताओं ने लखवी की रिहाई की निंदा की।
शून्यकाल के दौरान मुद्दे पर चर्चा करते हुए कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “पाकिस्तान में 132 बच्चों की हत्या के बाद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा था कि आतंकवाद को रोकने के लिए सभी कदम उठाए जाएंगे। लेकिन दो दिन बाद, हमने पाकिस्तान का एक और रूप देखा। एक अदालत ने लखवी को जमानत दे दी।” खड़गे ने कहा, “मैं सरकार से यह पूछना चाहता हूं, इसकी किस प्रकार निंदा की जा सकती है। हम सरकार का रुख जानना चाहते हैं।”
इस्लामाबाद स्थित आतंकवाद निरोधी अदालत ने गुरुवार को लखवी को जमानत दे दी थी। उसके साथ छह अन्य लोग 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की साजिश करने तथा हमलावरों को मदद मुहैया कराने के आरोपी हैं। इस हमले में भारतीय एवं विदेशी नागरिकों सहित 166 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे। लखवी को हालांकि, शुक्रवार को फिर हिरासत में ले लिया गया।
माना जाता है कि 26/11 हमले के दौरान लखवी लश्कर-ए-तैयबा का संचालन प्रमुख था, जिस संगठन पर भारत ने हमले का आरोप लगाया है। खड़गे ने कहा कि प्रधानमंत्री ने भी नवाज शरीफ से बात की थी, “हम जानना चाहते हैं कि उन्होंने क्या कहा था और नवाज ने क्या आश्वासन दिया था। हम मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं चाहते, लेकिन इस पर प्रधानमंत्री का बयान देना ज्यादा उचित रहेगा।”भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने पाकिस्तानी अदालत द्वारा लखवी को जमानत देने पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, “उसे तुरंत भारत के हवाले कर देना चाहिए और कसाब की तरह उसे फांसी दी जानी चाहिए।”मुंबई हमले में एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को फांसी दे दी जा चुकी है। सोमैया ने कहा कि विदेश मंत्री को पाकिस्तान के साथ इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता एम. सलीम ने कहा, “हम पाकिस्तान की घटना की निंदा करते हैं। आतंकवादियों के साथ किसी भी तरह की बातचीत नहीं हो सकती।”
तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस सबूत पर उसे जमानत दी गई, वह पर्याप्त नहीं था। भारत सरकार द्वारा सौंपे गए सबूत का इस्तेमाल नहीं किया गया।
उन्होंने कहा, “यह बेहद गंभीर मामला है और भारत सरकार को पाकिस्तान के सामने इसे उठाना चाहिए।”
नेशनल
लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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