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मुख्य समाचार

भाजपा की समझदारी से टूटेगा संसद का गतिरोध

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संसद के मानसून सत्र का एक-एक दिन तेजी से बीत रहा है और सरकार व विपक्ष के बीच गतिरोध सुलझने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। सत्र के पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि सरकार और विपक्ष के बीच सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान से जुडे़ विवादों को लेकर टकराव होगा। कांग्रेस का साफ कहना है कि जब तक आरोपों से घिरे भाजपा नेता इस्तीफा नहीं देते, संसद नहीं चलने दी जाएगी। उधर सरकार का कहना है कि कोई भी इस्तीफा नहीं देगा और वह किसी अल्टीमेटम के आगे नहीं झुकेगी। लेकिन इस रस्साकशी में संसद का बहुमूल्य समय तेजी से नष्ट हो रहा है और उसकी भरपाई होना लगभग नामुमकिन होगा।

माहौल कुछ ऐसा बन गया है कि विपक्षी दल कांग्रेस आसानी से हाथ लगे मुद्दों को भुनाने की पूरी कोशिश में जुटी हुई है क्योंकि पार्टी ये मानकर चल रही है कि ये मुद्दे उसके लिए संजीवनी बूटी के समान हैं। वहीं भाजपा ने भी अचानक अपने तेवर बेहद तल्ख करते हुए कांग्रेस शासित राज्यों का रिपोर्ट कार्ड खंगालना शुरू कर दिया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत उसी कड़ी में पहला शिकार बने हैं। सुषमा स्वराज ने भी आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने उन पर कोयला घोटाले में आरोपी संतोष बागरोडिया को राजनयिक पासपोर्ट जारी करने के लिए दबाव डाला था। वह सदन में उस कांग्रेसी नेता का नाम लेंगी, जिसने बगरोडिया के लिए पैरवी की थी। भाजपा ने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर भी निशाना साधने का दांव खेला है। भाजपा ने वाड्रा के खिलाफ लोकसभा में प्रिविलेज यानी विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। अगर लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन इसे मंजूर करती हैं तो इस मुद्दे पर संसद में चर्चा हो सकती है।

लेकिन इस पूरे माहौल में भाजपा को ही आगे बढ़कर इस गतिरोध को तोड़ने का हल ढूंढना होगा, क्योंकि यह सिलसिला अगर यूं ही चलता रहा, तो उसी को नुकसान होगा। संसद इसी तरह बाधित होती रही, तो रणनीतिक रूप से कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी विधेयक पारित न होने की स्थिति में जनता के सामने केंद्र की छवि खराब होगी। वैसे भी सरकार के सामने भूमि अधिग्रहण के अलावा जीएसटी, रीयल एस्टेट विधेयक, स्मॉल फैक्टरीज बिल और श्रम सुधार से जुड़े महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने की बड़ी चुनौती है। ऐसे में उसे ऐसी रणनीति बनानी होगी, जिससे संसद का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। कांग्रेस से जंग की बजाय भाजपा को विपक्षी दलों की फूट के बीच अपना रास्ता बनाना पड़ेगा। संसद के मानसून सत्र से पहले हुई सर्वदलीय बैठक में इसके संकेत भी मिले थे जब सपा और बसपा ने सरकार के प्रति नरमी बरती थी।

सरकार को रणनीति बनानी होगी कि वह कांग्रेस को सियासत चमकाने का मौका नहीं दे। वैसे भी इसकी पूरी आशंका है कि कांग्रेस इस पूरे सत्र में कामकाज न होने देने की योजना पर चल रही हो, क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। ऐसे में सत्ता में होने के कारण भाजपा पर यह जिम्मेदारी है कि वह इस गतिरोध का हल ढूंढे।

नेशनल

दिल्ली के स्कूलों की जांच में कुछ नहीं मिला, पुलिस बोली- ई-मेल्स और कॉल्स फर्जी

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नई दिल्ली। दिल्ली के स्कूलों में बम होने के धमकी भरे ईमेल के बाद जांच की गई तो वहां कुछ नहीं मिला। पुलिस अधिकारियों ने भी इसे होक्स ईमेल बताया है, लेकिन उन्होंने कहा कि चेकिंग जारी रहेगी। गृह मंत्रालय ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह फर्जी कॉल है। दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां प्रोटोकॉल के मुताबिक जरूरी कदम उठा रही हैं।

वहीं दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली के कुछ स्कूलों को बम की धमकी वाले ई-मेल मिले। दिल्ली पुलिस ने प्रोटोकॉल के तहत ऐसे सभी स्कूलों की गहन जांच की। कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिल। ऐसा प्रतीत होता है कि ये कॉल्स फर्जी हैं। हम जनता से अनुरोध करते हैं कि वे घबराएं नहीं और शांति बनाए रखें।

स्कूल में आए इस धमकी भरे ईमेल के बाद कई स्कूलों ने बच्चों की जल्द छुट्टी का मैसेज पेरेंट्स को भेज दिया, तो कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल जाकर पहले ही ले आए। इसके अलावा कई स्कूल के प्रिंसिपल ने पेरेंट्स को मैसेज भेज कर कहा कि घबराने की बात नहीं है।

नोएडा में इंद्रप्रस्थ ग्लोबल स्कूल (आईपीजीएस) की प्रिंसिपल निकिता तोमर मान ने बताया, “मैं लोगों से आग्रह करूंगी कि वे अनावश्यक घबराहट पैदा न करें और इस स्थिति को एक परिपक्व वयस्क के रूप में लें। दिल्ली-एनसीआर के जिन स्कूलों को धमकियां मिलीं, उन्हें खाली करा लिया गया है और हमारे सहित बाकी स्कूल सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। कोई धमकी भरा संदेश प्राप्त नहीं हुआ है।”

 

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