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नेशनल

नेपाल, भारत संयुक्त आयोग की बैठक दिल्ली में शुरू

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india-nepal-flagकाठमांडू/नई दिल्ली।  नेपाल-भारत संयुक्त आयोग की बैठक बुधवार को नई दिल्ली में शुरू हुई। यह बैठक गुरुवार को होने वाली मंत्री स्तरीय बैठक की दिशा तय करेगी। संयुक्त आयोग वार्ता में नेपाल और भारत के विदेश सचिव क्रमश: शंकर दास बैरागी और एस. जयशंकर नेपाली और भारतीय प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व कर रहे हैं।

नेपाल और भारत की मंत्री स्तरीय बैठक पहले हुए समझौतों को लागू करने और दोनों देशों में सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर करने पर केंद्रित रह सकती है।

संयुक्त आयोग नेपाल और भारत के द्विपक्षीय तंत्र का सर्वोच्च स्तर है, जो दोनों देशों के बीच के रिश्तों के सारे पहलुओं की समीक्षा करने के लिए और संबंधित अधिकारियों को लंबित मुद्दों के समाधान के लिए निर्देश देने और भविष्य के रिश्ते की रूपरेखा तैयार करने के लिए अधिकृत है।

उन बिन्दुओं पर सहमति बनाने और जिन मुद्दों को निपटाने के लिए और समय की जरूरत है, उसी पर यह बैठक केंद्रित है। इस बैठक में पहले जिन मुद्दों पर सहमति बनी है, उन पर जल्दी अमल के लिए दबाव डाला जाएगा, ताकि निकट भविष्य में नेपाल में भारत के पैसे से चलने वाली परियोजनाओं में वास्तविक प्रगति नजर आए।

भारत दौरे पर रवाना होने से पहले नेपाल के विदेश मंत्री प्रकाश शरण महात ने कहा, “इस बैठक में दोनों देशों के रिश्तों की व्यापक समीक्षा की जाएगी। उन्होंने कहा कि जिन मुद्दों पर दोनों देशों के बीच हाल की उच्चस्तरीय बैठक में सहमति बनी है, उन्हें लागू करने के लिए बढ़ाया जाएगा।”

पहली बार संयुक्त आयोग का गठन 1987 में किया गया था। इसकी तीसरी और अंतिम बैठक 23 वर्ष बाद वर्ष 2014 के मई में हुई थी। इस बैठक में दो वर्ष पहले हुई संयुक्त आयोग की बैठक और अन्य उच्चस्तरीय बैठकों में उठे मुद्दों में क्या प्रगति हुई, इसकी समीक्षा होगी।

मंत्री स्तरीय बैठक का नेतृत्व सुषमा स्वराज करेंगी और इसमें विभिन्न मंत्रालयों के सचिव भी होंगे।

विदेश मंत्री प्रकाश शरण महात ने कहा कि नेपाल और भारत की सीमा पर एकीकृत जांच चौकियों का निर्माण कार्य, महाकाली समझौते पर अमल, सड़कों को जोड़ने, दोनों देशों के बीच पेट्रोलियम पाइपलाइन लगाने का काम, बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा, व्यापार, पारगमन और नेपाल को भारतीय सहायता देने के तौर-तरीके तय करना शामिल है।

सीमा के मुद्दे पर नेपाल और भारत नदी क्षेत्रों में स्थित कुछ खंभों की डिजाइन बदलना चाहेंगे। हालांकि दोनों पक्षों ने सीमा पर खंभे लगाने में प्रगति की है।

नेपाल से भी सनकोशी मोड़ के निर्माण के लिए कहा जाएगा। यह सप्त कोशी बहुद्देश्यीय योजना से ही निकला है।

 

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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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