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केजरीवाल का भ्रष्टाचारमुक्त दिल्ली का वादा, अहंकार पर हिदायत
नई दिल्ली| दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी को देश का पहला भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाने वादा किया और आम आदमी पार्टी (आप) के अपने सहयोगियों से अहंकार न करने की अपील की। रामलीला मैदान में शपथ-ग्रहण के बाद, वहां उपस्थित हजारों की भीड़ को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर भी जोर दिया और कहा कि इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की है।
अपने संबोधन में एक सकारात्मक संदेश देते हुए 46 वर्षीय केजरीवाल ने कहा कि वह दिल्ली के विकास के लिए विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के नेताओं से भी सलाह-मशविरा करेंगे।
हजारों की भीड़ से खचाखच भरे रामलीला मैदान में केजरीवाल को पद एवं गोपनीयता की शपथ उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिलाई। उनके बाद छह अन्य मंत्रियों-मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, गोपाल राय, आसिम मोहम्मद खान, संदीप कुमार और जितेंद्र सिंह तोमर को भी उपराज्यपाल ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
केजरीवाल ने अपने कार्यकाल के पांच वर्षो के दौरान दिल्ली को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने का वादा किया और कहा, “भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के साथ आंदोलन के दौरान जब हम सभी ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ का नारा लगाते थे तो मन के कोने में कहीं न कहीं संशय उठता था कि क्या वास्तव में ऐसा हो पाएगा। लेकिन अब पिछली 49 दिनों की सरकार के अनुभवों के बाद हम आश्वस्त हैं कि दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म कर देंगे।”
दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के नेता केजरीवाल ने अपने मंत्रियों, विधायकों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों से बार-बार अहंकार नहीं करने की अपील की। उन्होंने कहा, “जब इतनी बड़ी जीत मिलती है तो इंसान के मन में अहंकार जागता है। लेकिन जब ऐसा होता है तो सब खत्म हो जाता है। इसलिए हम सब लोगों को, मुझे, मंत्रियों को, सहयोगियों को चौकस रहना पड़ेगा। हमें समय-समय पर अपने भीतर झांकना होगा कि कहीं हमारे अंदर अहंकार तो नहीं जाग रहा। यदि ऐसा हुआ तो हम अपना मिशन पूरा नहीं कर पाएंगे।”
उन्होंने कहा, “दिल्ली चुनाव के बाद हमारे कुछ लोग कह रहे हैं कि हम यहां का चुनाव लड़ेंगे, वहां का चुनाव लड़ेंगे; मुझे इसमें अहंकार नजर आ रहा है। यह ठीक नहीं है।”
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा, “ईश्वर ने हमें आदेश दिया है, दिल्ली के लोगों ने हमें आदेश दिया है कि हम उनकी सेवा करें..आने वाले पांच वर्षो में मैं दिल्ली में रहकर अपनी जिम्मेदारी को पूरे तनमन धन से निभाने की कोशिश करूंगा।”
केजरीवाल ने कहा कि हालांकि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं आती, लेकिन उन्हें यकीन है कि पुलिस के सहयोग से वह दिल्ली को एक सुरक्षित शहर बना सकेंगे, जहां सभी धर्मो एवं समुदायों के लोग खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे।
उन्होंने केंद्र सरकार के साथ रचनात्मक साझेदारी की इच्छा जताते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले। उन्होंने यकीन जताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के बारे में सोचेंगे।
उन्होंने दिल्ली से ‘वीआईपी संस्कृति’ समाप्त करने की बात भी कही। बकौल केजरीवाल, “हम वीआईपी संस्कृति समाप्त करना चाहते हैं। क्या आपको वह स्थिति पसंद आती है जब कोई मंत्री सड़क से गुजरते हैं तो मार्ग बंद कर दिया जाता है और सड़क पर जाम लग जाता है।”
उन्होंने कहा, “यूरोप के देशों में प्रधानमंत्री बस स्टॉप पर खड़े नजर आ जाते हैं। हमें उसी तरह की संस्कृति की आवश्यकता है। इसमें समय लगेगा। लेकिन हम इसे करेंगे।”
केजरीवाल ने दिल्ली के विकास के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता किरण बेदी और कांग्रेस नेता अजय माकन से सलाह-मशविरा लेने की बात भी कही। उन्होंने कहा, “मेरे दिल में किरण बेदी के लिए बहुत इज्जत है। वह मेरी बड़ी बहन की तरह हैं। उन्हें लंबा प्रशासनिक अनुभव है..हम उनसे सहयोग लेंगे। हम समय-समय पर उनसे मशविरा करेंगे।”
केजरीवाल ने कहा कि वह समय-समय पर अजय माकन से भी विचार-विमर्श करेंगे, जिनके पास केंद्रीय मंत्री के रूप में योजनाएं तैयार करने व उन्हें लागू करने का अनुभव है।
केजरीवाल के इस बयान पर माकन ने प्रतिक्रियास्वरूप ट्विटर पर लिखा, “केजरीवाल ने एक सकारात्मक बात के साथ अच्छी शुरुआत की है। उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। दिल्ली के लिए उनको मेरा पूरा सहयोग है।”
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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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