आध्यात्म
उप्र : सावन के पहले दिन शिवालयों में उमड़े श्रद्घालु
लखनऊ| पवित्र सावन महीने का आज पहला दिन है। सावन के शुरू होते ही कांवड़ियों के आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया है। राज्य के कई शहरों में शिव भक्तों की मंदिरों में लंबी-लंबी कतारें देखी जा रही हैं। इस बीच किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए कई जिलों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
सूत्रों के अनुसार, वाराणसी, इलाहाबाद, झांसी, कानपुर, लखनऊ, मेरठ सहित कई शहरों में सुबह से ही लोग शिव मंदिरों के बाहर लम्बी कतारों में लगे हुए हैं। मंदिरों में भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना भी शुरू हो गई है। इस मौके पर आने वाले श्रद्घालुओं की बड़ी संख्या के मद्देनजर मंदिरों में व्यापक तैयारियां की गई हैं।
पुलिस के अनुसार, सावन में मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कि गए हैं। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर, इलाहाबाद में मन कामेश्वर मंदिर के आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं।
पुलिस के एक अधिकरी ने बताया कि सावन महीने की शुरुआत के साथ ही मंदिरों के बाहर सुरक्षा-व्यवस्था बढ़ा दी गई है। पश्चिमी उप्र के कुछ संवदेनशील जिलों में पीएसी की कम्पनियां तैनात हैं।
अधिकारी के मुताबिक, सावन में ही पवित्र कांवड़ यात्रा शुरू होती है और इस दौरान पश्चिमी उप्र के कई जिलों में शांति भंग की आशंका बनी रहती है, लिहाजा संवेदनशील जगहों पर अतिरिक्त पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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