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मुख्य समाचार

‘आडवाणी गुट कर सकता था वाजपेयी सरकार का तख्तापलट’

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vajpayee-advaniनई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 2002 में अपनी पार्टी के अंदर से ही लाल कृष्ण आडवाणी गुट द्वारा तख्तापलट को लेकर सशंकित थे। हाल ही में आई वाजपेयी की एक नई जीवनी में इस बात का खुलासा किया गया है।

पेशे से पत्रकार उल्लेख एन. पी. की पेंगुइन प्रकाशन समूह से प्रकाशित वाजपेयी की जीवनी ‘द अनटोल्ड वाजपेयी : पॉलिटीशियन एंड पैराडॉक्स’ में यह खुलासा हुआ है। 304 पृष्ठों की इस पुस्तक की कीमत 599 रुपये है। पुस्तक के अनुसार, 2002 में आडवाणी के उप-प्रधानमंत्री बनने के साथ ही तख्तापलट जैसी कोशिशें शुरू हो गई थीं।

पुस्तक में एक मंत्री का संदर्भ देते हुए उनके नाम का उल्लेख किए बगैर लिखा गया है, “केंद्रीय मंत्री ने वाजपेयी को इसे लेकर ज्यादा परेशान न होने के लिए कहा था।”

पुस्तक में लिखा गया है, “जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि वह सिर्फ इतना ही कह रहे हैं कि उन्हें खुद को कुर्सी से हाटकर आडवाणी को बिठाने की साजिश के बारे में पता चला है। उन्हें नहीं पता कि इसके पीछे कौन है, लेकिन उन्हें पक्का पता है कि ऐसी कोई साजिश है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आडवाणी को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपकर खुद राष्ट्रपति बनने के लिए कहा था।”

लेखक ने अपनी पुस्तक में यह भी दावा किया है कि वाजपेयी ने 1975-77 में आपातकाल के दौरान ‘समझौते की एक योजना’ तैयार की थी, जिसके तहत आरएसएस की विद्यार्थी इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकताओं से सरकारी संपत्ति को हुई क्षति की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा था, जिससे कि विपक्ष सरकार से समझौता रद्द कर सके।

मशहूर पत्रिका ‘ओपन’ के कार्यकारी निदेशक उल्लेख ने पुस्तक में लिखा है, “वाजपेयी ने उपद्रवी तत्वों द्वारा देश के अनेक हिस्सों में की गई आगजनी और सरकारी संपत्तियों को हुए नुकसान पर आवाज उठाया था और एबीवीपी के तत्कालीन महासचिव राम बहादुर राय से कहा था कि इससे पहले कि सरकार आपातकाल हटाने के बारे में सोचना शुरू करे, समय आ गया है कि एबीवीपी अपनी गलतियों के लिए सरकार से माफी मांगे।”

पेंगुइन ने पुस्तक को साल की सबसे बड़ी राजनीतिक जीवनी करार दिया है और कहा है कि यह पुस्तक पूर्व प्रधानमंत्री के जीवन को देखने का नया नजरिया पेश करता है।

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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