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लोकतंत्र में भाषाई मर्यादा का सवाल

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देश की सर्वोच्च सत्ता पर विराजमान नेता अपनी गरिमा गिराते जा रहे हैं। अपने चाल और चरित्र से वे परास्त दिखते हैं। भाषाई मर्यादा और उसकी पवित्रता हमें शालीन बनाती है। भाषा हमारी सोच को सामने लाती है।

अमर्यादित बोल वचनों के कारण हामारी जनछवि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हम इस तरह के चुटीले बयानों से तत्कालीन प्रशंसा पा सकते हैं। लेकिन इसका असर खुद की जीवन पर बुरा पड़ता है। जुबान की अपशिष्ट हमारी नीति, नीयत और नैतिकता पर भी सवाल उठाता है।

कहा भी गया है कि बोलने से पहले सौ बार विचार कर बोलो। लिखते वक्त तो इसका कड़ाई से अनुपालन होना चाहिए। कहा गया है, लिखे हुए शब्द पत्थर के लकीर हुआ करते हैं। वहीं कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात वापस नहीं आती है। लेकिन अपनी राजनीतिक भड़ास निकालने के लिए यह राजनीतिक दलों और राजनेताओं की नीयत बन गई है।

कलुषित बोल के मामले में संभत 2014 का लोकसभा चुनाव इसकी मिसाल है। लेकिन अवाम का भरोसा जीत कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली नरेंद्र मोदी सरकार इस चुनौती को संभालने में नाकाम रही है।

मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने बड़बोले बयान का जो रिकार्ड बनाया है संभवत वह अपने आप में मिसाल है। संभवत अब तक केंद्रीय सत्ता की कमान संभालने वाली किसी भी सरकार के मंत्री ने इतने बेलगाम और बेलौस बोल वचनों का प्रयोग नहीं किया होगा।

बिहार से सांसद और केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम राज्यमंत्री गिरिराज सिंह की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी पर जिस तरह रंगभेदी और नस्लीय टिप्पणी की गई, उसे उचित नहीं कहा जा सकता। जिस तरह सोनिया गांधी की गोरी चमड़ी का उपहास उड़ाया गया, यह हमारी सभ्यता और संस्कति पर कुठाराघात है।

जिस स्थान पर मंत्री की ओर से यह विवादित बयान दिया गया, यह कोई उचित प्लेटफार्म नहीं था। वह स्थान राउरकेला के इस्पात संयंत्र का था। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयंत्र की उत्पादन क्षमता के विस्तार का उद्घाटन करने गए थे। वहां भला इस प्रसंग का क्या मतलब था। वह कोई राजनीतिक मंच नहीं था। जहां से इस तरह की टिप्पणी की जाती।

उनकी ओर से दिया गया यह बयान कि राजीव गांधी ने किसी और महिला से शादी की होती और वह सोनिया गांधी की चमड़ी गोरी के बजाय नाजीरियाई होती तो उन्हें कांग्रेसी बतौर अध्यक्ष न स्वीकार करते। गोरी चमड़ी की होने से कांग्रेसियों ने अध्यक्ष बनाया। वहीं इससे से भी उनका जी नहीं भरा उन्होंने राहुल गांधी को भी बख्शा।

बोले, राहुल गांधी मलेशियाई विमान की तरह लापता हो गए हैं, जिसे कोई नहीं खोज पा रहा है। गिरिराज ने इस तरह की बखेड़ा वाली भाषा का क्यों प्रयोग किया। यह तो वही जानें। लेकिन इस बयान से एक बार फिर मोदी और उनकी सरकार की छवि बयानवीरों से धूमिल हुई है।

इस टिप्प्णी पर सोनिया और राहुल गांधी कुछ भले न बोलें, लेकिन मंत्री ने भाजपा को घेरने का एक और मौका दे दिया है। निश्चित तौर पर भाजपा को इस बयान की कीमत चुकानी होगी। इसके पहले भी प्रधानमंत्री अपने बाबाओं के बिगड़े बोल से संसद में माफी मांग चुके हैं।

मोदी टीम के ऐसे नेता उनकी मुसीबत साबित बन रहे हैं। जिस समय यह बयान दिया गया, वहां प्रधानमंत्री मौजूद थे। इस्पात राज्यमंत्री होने के कारण वहां गिरिराज भी मौजूद थे। अगर उन्हें कुछ बोलना था तो इस्तपात के विकास के बारे में बतौर मंत्री अपनी जानकारी रख सकते थे, जिससे कम से कम यह साबित होता कि उन्हें जिस मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है उसके दायित्वों का उन्हें भान है।

इसके पहले प्रधानमंत्री रेलों के बिलंब से चलने पर रेलमंत्रालय और दूसरे मंत्रियों की क्लास ले चुके थे। लेकिन इस तरह का कुछ अलग न कर एक पटाखा फोड़ दिया।

उन्हें लगा होगा कि मोदी जी को सोनिया पर किया गया मेरा हमला अच्छा लगेगा, लेकिन यह तो कोई मोदी से ही पूछे।

सिंह अपने विवादित बयानों से किंग बनाना चाहते हैं। लोकसभा के चुनावों के दौरान भी मोदी को न पचाने वालों को पाकिस्तान जाने की नसीहत दी थी। मोदी सरकार में गलत बयानवीरों की लंबी फेहरिस्त है। जिसमें साध्वी प्राची का पहला स्थान है। वे कभी खानों के पोस्टर जलाने का ऐलान करती हैं तो कभी गांधी जी को अंग्रेजों का एजेंट बताने भी गुरेज नहीं करती। वे अपने आगे गांधी जी को बौना समझती हैं। उनके इस तरह के बयानों से मोदी सरकार कई बार मुसीबत में पड़ चुकी है।

इस्पात मंत्री के इस बयान से जहां महिलाओं का अपमान हुआ है। वहीं रंभभेद और नस्लवाद को लेकर भारत की छवि दुनिया भर में धूमिल हुई है। नाइजीरिया दूतावास ने इस टिप्प्णी पर कड़ा कदम उठाया है। सोनिया गांधी और गिरिराज की राजनीतिक सोच और क्षमता में बड़ा अंतर है। सोनिया गांधी की राजनीतिक कुशलता और कांग्रेस के निर्माण में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। सोनिया गांधी देश की एक कुशल राजनीतिक हस्ती है। अपने राजनीतिक ज्ञान कौशल से उन्होंने दम तोड़ती कांग्रेस को बुलंदियों पर पहुंचाया। प्रधानतंत्री के पद को ठोकर मार दिया।

जब विपक्ष उन पर विदेशी होने का आरोप लगा रहा था उस दौरान 2004 में उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानतंत्री बना अपनी राजनीतिक सोच का परिचय दिया था। वे देश की सभ्यता, संस्कार और उसके रिवाज में पूरा भरोसा करती है। उन्हें खुद भारतीय नारी होने का गर्व है। उन पर की गयी टिप्पणी आहत करने वाली है।

राजनीतिक प्रतिकार किस हद तक गिर सकता है इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। भाजपा के जीत की खुमारी अभी तक उनके दिमाग से नहीं उतरी है। प्रधानमंत्री ने माननीयों को गलत बयानी के खिलाफ कई बार चेताया है। लेकिन माननीय हैं कि बाज नहीं आते।

देश की जनता ने जिस उम्मीद और उत्साह से जाति, धर्म और संप्रदाय से आगे निकल कर इतने बड़े लोकतंत्र की बागडोर सौंपी थी वह महज दस माह में ही धूमिल पड़ने लगी है। इस पीड़ा से खुद हमारे प्रधानमंत्री आहत हैं। संसद में बाबाओं के चुभते बोल से भी संसद की गरिमा को चोटिल कर चुके हैं। हमारे लिए यह सबसे शर्म की बात है।

भारत की परंपरा में महिलाओं का अहम स्थान है। हम वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते हैं, लेकिन हमारे नेताओं की इस तरह की घटिया सोच हमें गर्त में ले जाती है। हालांकि इन बिगड़े बोल से कुछ लोगों को सुखद अनुभव होता होगा। लेकिन हमारी छवि को गहरा धक्का लगता है।

इस गलतबयानी से सोनिया गांधी को कितनी गहरी चोट पहुंची होगी। यह कोई उनके दिल से पूछे। अगर इसी तरह की नस्लभेद की बात जब कोई विदेशी करता है तो हमें कितनी पीड़ा होती है। इसका भी हमें अनुभव करना चाहिए। सवाल उठता है कि आखिर यह सब क्या है? हिंदुत्ववाद का यह कैसा उबाल है!

सार्वजनिक जीवन में होते हुए भी हम इस तरह का अनैतिक आचरण क्यों करते हैं। इसके पहले भी भाजपा के फायरब्रांड नेता योगी जी आजम को पाकिस्तान जाने की सलाह दे चुके हैं। साध्वी निरंजन ज्योति सबसे आगे निकल कर संसद में बाबेला खडा कर चुकी हैं। उनके विचार में हिंदू विचारधारा के हिमायती लोग रामजादे हैं बाकि सब..हैं। साक्षी महराज गोडसे को देश भक्त तक की उपाधि देने से नहीं चूकते। भले ही उन्हें इस प्रलाप के लिए संसद में दो बार माफी मांगनी पडी। इस तरह की बयानबाजी निश्चित तौर पर लोकतंत्र पर काले धब्बे लगाती है। लेकिन इससे प्रधानमंत्री मोदी की छवि पर बुरा प्रभाव पडता है।

सत्ता में आने के पहले उन्होंने विकास के लिए वोट हासिल किया था। लेकिन अपनी टीम के सहयोगियों और बाबाओं से वे खुद आहत हैं। जबकि पीएम मीडिया के माध्यम से और इतर कार्यशाला आयोजित कर सांसदों को गरिमा के अनुसार बोल वचन बोलने का निर्देश् भी दिया था। लेकिन उन पर कोई असर नहीं दिखता है।

इसके पहले उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक की ओर से अयोध्या में राममंदिर के निर्माण वाले बयान ने सियासी गलियारों में खलबली मचायी थी। जबकि राज्यपाल एक संवैधानिक पद है। उसकी गरिमा हर हाल में बनाए रखना होगा। भगवा ब्रांड के बाबा योगी आदित्य नाथ, साक्षी महराज, साध्वी निरंजन ज्योति और चिन्मयानंद के आलवा गिरिराज ने अपने बिगड़े बोल से जहां सियासत का पारा चढ़ा दिया, वहीं मंत्री के बयान ने एक बार फिर नयी बहस पैदा कर दी है।

सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर उलझी हुई है, लेकिन माननीयों को उसकी कोई फिक्र नहीं दिखती है। यहीं नहीं गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर के बयान से भी राजनीतिक भूचाल मचा है। अपनी मांगों के समर्थन में उतरी नर्सों पर यह बयान दे डाला कि वे धूप में प्रदर्शन न करें, वरना काली हो जाएंगी और शादी में परेशानी होगी। अब सीएम को भला कौन बताए। भारतीय राजनीति के लिए यह चिंता और चिंतन का सवाल है। राजनीति के मूल्यों वैसे भी गिरावट आ रही है। अगर हमारे राजनेताओं की सोच यही रहेगी तो देश कहां जाएगा। राजनीति मूल्यों का चरित्र संरक्षण आज का बड़ा सवाल है।

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केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस

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नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की माता व ग्वालियर राज घराने की राजमाता माधवी राजे सिंधिया का निधन हो गया है। उनका इलाज पिछले दो महीनों से दिल्ली के एम्स में चल रहा था। आज सुबह 9.28 बजे उन्होंने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली।

हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया था कि, राजमाता माधवी राजे को सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्हें 15 फरवरी को दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था। इसी साल 6 मार्च को भी उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। उस समय भी उनकी हालत नाजुक थी और उनको लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर रखा गया था।

पहली बार 15 फरवरी को माधवी राजे की तबीयत बिगड़ी थी, उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। उसके बाद से ही उनकी हालत नाजुक बनी हुई थे। वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुछ समय पहले यह जानकारी शेयर की थी।

नेपाल राजघराने से माधवीराजे सिंधिया का संबंध है। उनके दादा शमशेर जंग बहादुर राणा नेपाल के प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया के साथ माधवी राजे के विवाह से पहले प्रिंसेस किरण राज्यलक्ष्मी देवी उनका नाम था। साल 1966 में माधवराव सिंधिया के साथ उनका विवाह हुआ था। मराठी परंपरा के मुताबिक शादी के बाद उनका नाम बदलकर माधवीराजे सिंधिया रखा गया था। पहले वे महारानी थीं, लेकिन 30 सितंबर 2001 को उनके पति और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के निधन के बाद से उन्हें राजमाता के नाम से संबोधित किया जाने लगा।

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