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यूपी निकाय चुनाव में झूमकर लहराया भगवा, मेयर की 14 सीटें भाजपा के खाते में

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लखनऊ| उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरह नगर निकाय चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जोरदार जीत हासिल की है। महापौर की कुल 16 सीटों में से 14 भाजपा के पक्ष में, जबकि अलीगढ़ और मेरठ की सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया है। सपा और कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका है। महापौर के अलावा नगर निगम पार्षदों के 1300 पदों में से अब तक घोषित 1005 परिणामों में भी भाजपा 459, सपा 157, बसपा 126 और कांग्रेस 78 सीटें जीत चुकी हैं।

अयोध्या-फैजाबाद नगर निगम मेयर पद पर भाजपा प्रत्याशी ऋषिकेश जायसवाल ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा की गुलशन बिंदु को 3601 मतों से पराजित किया। वाराणसी नगर निगम महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी मृदुला जायसवाल ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की शालिनी को 78,843 मतों से पराजित किया।

सहारनपुर नगर निगम मेयर पद पर भाजपा प्रत्याशी संजीव वालिया ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के फजल उर रहमान को दो हजार मतों से पराजित किया। मुरादाबाद नगर निगम महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी विनोद अग्रवाल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मोहम्मद रिजवान कुरैशी को 21 हजार 635 मतों से पराजित किया।

अलीगढ़ नगर निगम मेयर पद पर बसपा प्रत्याशी मुहम्मद फुरकान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के राजीव कुमार को 10 हजार 11 मतों से पराजित किया। झांसी नगर निगम महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी रामतीर्थ सिंघल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के बृजेन्द्र कुमार व्यास को 16 हजार 373 मतों से पराजित किया।

फिरोजाबाद नगर निगम महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी नूतन राठौर ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी आल इण्डिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन की मसरूर फातिमा को 42 हजार 396 मतों से पराजित किया। नवगठित मथुरा नगर निगम महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी मुकेश ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मोहन सिंह को 22 हजार 108 मतों से पराजित किया।

गोरखपुर नगर निगम महापौर पद पर भाजपा प्रत्याशी सीताराम जायसवाल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के राहुल को 75 हजार 972 मतों से पराजित किया। वर्ष 2012 के नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने 12 में से 10 महापौर सीटें जीती थीं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के नगर निकाय चुनाव में भाजपा को मिली जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति को देते हुए इसके लिए पार्टी के तमाम नेताओं और अपने मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों को धन्यवाद दिया। योगी ने संवाददाताओं से कहा कि प्रदेश नगर निकाय चुनाव में भाजपा को मिली ऐतिहासिक विजय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास के विजन और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीतिक कुशलता का परिणाम है।

उन्होंने कहा कि निकाय चुनावों का परिणाम प्रधानमंत्री द्वारा भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए उठाए गए कदमों पर जनता की मुहर है। उन्होंने कहा, “मैं विश्वास व्यक्त करता हूं कि हम उम्मीदों पर खरा उतरेंगे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा शत प्रतिशत परिणाम पाने के लिए अग्रसर होगी।”

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों एवं उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करिश्माई नेतृत्व की वजह से भाजपा को जीत मिली है। इस जीत से यह साबित हो गया है कि जनता का विश्वास अभी भी भाजपा में कायम है।

लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस एवं सपा को एक बार फिर निराशा हाथ लगी। मेयर के चुनाव में दोनों पार्टियों का खाता नहीं खुल पाया है। हालांकि सपा ने नगर पालिका के चुनाव में ठीक ठाक प्रदर्शन किया है।

गौरतलब है कि प्रदेश के 16 नगर निगमों, 198 नगर पालिकाओं और 438 नगर पंचायतों के लिए तीन चरणों में गत 22, 26 और 29 नवम्बर को कुल करीब 52़5 प्रतिशत मतदान हुआ था। नगर निकाय चुनाव में पहली बार सभी पार्टियों ने अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा है।

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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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