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मिथिला के पाग पर डाक टिकट जारी

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नई दिल्ली, 17 अगस्त (आईएएनएस)| मिथिला की संस्कृति को ध्यान में रखकर भारत सरकार के डाक विभाग ने ‘पाग’ पर डाक टिकट जारी किया है। मिथिला की इस सांस्कृतिक धरोहर को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर इतना बड़ा सम्मान दिया गया है। गौरतलब है कि पाग को राष्ट्रीय-अंर्तराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए मिथिलालोक फांउडेशन पिछले कुछ वर्षो से ‘पाग बचाउ’ अभियान चला रहा है। इस अभियान से अब तक लगभग एक करोड़ से ज्यादा मैथिल जुड़ चुके हैं।

पाग डाक टिकट पर प्रतिक्रिया देते हुए मिथिलालोक फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. बीरबल झा ने कहा कि पाग मिथिला की सांस्कृतिक पहचान एवं धरोहर है। भारत सरकार द्वारा इसे मान्यता मिलने से मिथिला को ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति को मजबूती मिली है। हर मैथिल को इस पर गर्व करना चाहिए और पाग की स्मिता एवं महत्व को बढ़ाने के लिए आगे आना चाहिए।

डॉ. झा ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हुए पाग को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग की है।

भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा जारी एक बुकलेट में बताया गया है कि ‘पाग बिहार के मिथिला क्षेत्र के मैथिल लोगों की शिरोवस्त्र का नाम है। पाग आदर-सम्मान का प्रतीक है और मिथिला क्षेत्र के लोग इसे बड़े गर्व से पहनते हैं। पाग के इस्तेमाल की शुरुआत प्रागैतिहासिक काल में हुई। प्रारंभ में इसे पत्तों से तैयार किया जाता था। आधुनिक काल में इसका परिवर्तित रूप देखने को मिलता है। पाग विभिन्न रूप रंगों और आकारों के होते हैं।

डॉ. झा इन दिनों मिथिला पाग पर किताब लिख रहे हैं, जो जल्द प्रकाशित होने वाली है। इस किताब में पाग के इतिहास की चर्चा विभिन्न चित्रों के साथ होगी।

मिथिला की प्रतिष्ठा को पाग से जोड़ते हुए वे बताते हैं कि पाग मिथिला के आन, बान, शान से जुड़ा हुआ है। उन्होंने लोगों से अपील की कि पाग की रक्षा और मिथिला के विकास में हर किसी को अपना योगदान देना चाहिए।

पिछले वर्ष क्राफ्ट म्यूजियम में मिथिलालोक फांडेशन द्वारा पाग प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया था। इसने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था। ‘पाग बचाउ’ अभियान के क्रम में फरवरी, 2016 में हजारों मैथिल मिथिलालोक फांउडेशन के बैनर तले दिल्ली और बिहार में पाग पहनकर ‘पाग मार्च’ निकाला था।

डॉ. झा द्वारा लिखित गीत ‘आउ हम सब मिलि क’ पाग बचाबी’ मैथिल क्षेत्र में सुपर हिट रहा। आज भी यह गीत घर-घर में सुना जाता है। इस गाने के माध्याम से सभी मिथिलावासी से अपील की गई है कि वे जाति-पाति से ऊपर उठकर मिथिला की सांस्कृतिक चिह्न् पाग को बचाने के लिए आगे आएं। पाग से कभी वंचित रहीं महिलाएं भी अब बड़ी संख्या में इस अभियान से जुड़ रही हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने कहा, डॉ. बीरबल झा बिहार में एक्सट्रा ऑर्डिनरी पर्सनालिटी हैं। वे पाग बचाउ अभियान के माध्यम से मिथिला की संस्कृति को मजबूत कर रहे हैं। उनके प्रयास का ही नतीजा है कि मिथिला की पहचान पाग राष्ट्रीय स्तर पर पहुंची है।

बिहार के पूर्व शिक्षामंत्री रामलखन राम ‘रमन’ ने कहा, मुझे यह जानकर खुशी हुई की जिस भूली-बिसरी संस्कृति को मुहिम बनाकर डॉ. बीरबल झा ने पाग बचाउ अभियान चलाया, उस अभियान को अब चतुर्मुखी समर्थन मिल रहा है। सरकार द्वारा पाग पर डाक टिकट जारी किया जाना डॉ. झा की मुहिम की एक बड़ी जीत है।

पिछले वर्ष जून में राम लखन राम ‘रमन’ के नेतृत्व में बिहार के कई विधायक पहली बार पाग पहनकर विधानसभा में पहुंचे थे।

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केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस

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नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की माता व ग्वालियर राज घराने की राजमाता माधवी राजे सिंधिया का निधन हो गया है। उनका इलाज पिछले दो महीनों से दिल्ली के एम्स में चल रहा था। आज सुबह 9.28 बजे उन्होंने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली।

हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया था कि, राजमाता माधवी राजे को सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्हें 15 फरवरी को दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था। इसी साल 6 मार्च को भी उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। उस समय भी उनकी हालत नाजुक थी और उनको लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर रखा गया था।

पहली बार 15 फरवरी को माधवी राजे की तबीयत बिगड़ी थी, उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। उसके बाद से ही उनकी हालत नाजुक बनी हुई थे। वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुछ समय पहले यह जानकारी शेयर की थी।

नेपाल राजघराने से माधवीराजे सिंधिया का संबंध है। उनके दादा शमशेर जंग बहादुर राणा नेपाल के प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया के साथ माधवी राजे के विवाह से पहले प्रिंसेस किरण राज्यलक्ष्मी देवी उनका नाम था। साल 1966 में माधवराव सिंधिया के साथ उनका विवाह हुआ था। मराठी परंपरा के मुताबिक शादी के बाद उनका नाम बदलकर माधवीराजे सिंधिया रखा गया था। पहले वे महारानी थीं, लेकिन 30 सितंबर 2001 को उनके पति और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के निधन के बाद से उन्हें राजमाता के नाम से संबोधित किया जाने लगा।

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