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हेल्थ

डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे भी सीख सकते हैं सामान्य रूप से

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नई दिल्ली, 29 जुलाई (आईएएनएस)| डिस्लेक्सिया दुनियाभर में प्रति 10 में से एक बच्चे को होता है। यह सीखने की अक्षमता वाली स्थिति है। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि यदि तरीका सही हो तो डिस्लेक्सिया वाले बच्चे भी सामान्य रूप से सीख सकते हैं। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार प्रकार के डिस्लेक्सिया से ग्रस्त हैं। हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं हैं, जो स्थिति को और अधिक कठिन बना सकती हैं। यह स्थिति लड़कों व लड़कियों को समान रूप से प्रभावित कर सकती हैं। यदि कक्षा दो तक ऐसे बच्चों की पहचान नहीं हो पाई, तो ऐसे बच्चे बड़े होकर भी इस समस्या से परेशान रह सकते हैं और उस बिंदु पर इसे ठीक नहीं किया जा सकता।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, डिस्लेक्सिक बच्चों का मस्तिष्क मानसिक संरचना और काम के लिहाज से सामान्य मस्तिष्क से भिन्न होता है। ऐसे बच्चों में, मानसिक विकास के लिए जिम्मेदार तंत्रिका तंत्र बचपन से ही अलग प्रकार का होता है। यह भिन्न वाइरिंग ही डिस्लेक्सिया का कारण बनती है। इसी वजह से सीखने व पढ़ने की सामान्य प्रक्रियाएं भी ऐसे बच्चों में लंबा समय ले लेती हैं।

उन्होंने कहा, हमारे देश में इस स्थिति के बारे में दुखद बात यह है कि ऐसे बच्चों को आलसी और कम बुद्धि वाला घोषित कर दिया जाता है। ये बातें उनके व्यक्तित्व को प्रभावित कर सकती हैं और उनका आत्मविश्वास व आत्मसम्मान कम होता जाता है। ऐसे बच्चों की मदद करने में प्रारंभिक पहचान एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। बच्चे के परिवार के इतिहास और अन्य संबंधित जानकारी के सहारे ऐसे बच्चों की मदद की जा सकती है।

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में डिस्लेक्सिया के कुछ आम लक्षण हैं- बोलने में कठिनाई, हाथों व आंख में तालमेल न होना, ध्यान न दे पाना, कमजोर स्मरण शक्ति और समाज में फिट होने में कठिनाई।

उन्होंने बताया, बच्चे की समझदारी का पहला पायदान होते हैं – उसके माता-पिता। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समस्या से भागने की बजाय, वे बच्चे की इस कठिनाई का हल खोजने की कोशिश करें, उसका चेकअप कराएं और उचित इलाज भी करवाने की पहल करें। यदि चिकित्सक बताता है कि बच्चे को डिसलेक्सिया है तो इसे जीवन का अंत न समझें। अपने बच्चे के प्रयासों को समझें, स्वीकार करें और समर्थन करें। धैर्य व समझदारी से इस समस्या का समाधान प्राप्त करने में आसानी हो सकती है।

डिस्लेक्सिक बच्चों को उनकी शिक्षा और समझ संबंधी समस्याएं दूर करने की तकनीक :

* सकारात्मक दृष्टिकोण रखें : बच्चे के साथ सकारात्मक तरीके से संवाद करें और धैर्य रखें। ऐसे बच्चों को चीजों को समझने में समय लगता है।

* डिस्लेक्सिक बच्चे अधिक जिज्ञासु होते हैं। इसलिए, उन्हें तार्किक जवाब देना जरूरी है। उनके संदेह दूर करने में उनकी मदद करें।

* विज्ञान और गणित को टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाने से उन्हें विषयों को समझने में मदद मिल सकती है।

* ऑडियो-विजुअल सामग्री का अधिक उपयोग करें, क्योंकि वे इस तकनीक के साथ चीजों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। छोटे बच्चों के लिए फ्लैश कार्ड का उपयोग किया जा सकता है।

* योग से ऐसे बच्चों में एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है। सांस लेने के व्यायाम और वैकल्पिक चिकित्सा दवाइयों से स्थिति को संभालने में मदद मिल सकती है।

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लाइफ स्टाइल

उम्र बढ़ने का असर नहीं दिखेगा त्वचा पर, बस करना होगा यह काम

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Ageing

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नई दिल्ली। उम्र बढ़ने (Ageing) के साथ ही व्यक्ति को कई तरह की शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। साथ ही उम्र का असर त्वचा पर भी दिखाई पड़ने लगता है। इसकी सबसे बड़ी वजह आपका खान पान है। ऐसे में अगर आप 40, 50 की उम्र में भी 30-35 की नजर आना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने खानपान की ओर ध्यान दें।

बहुत ज्यादा तला-भुना, मिर्च-मसालेदार और जंक फूड के सेवन से त्वचा समय से पहले ही बूढ़ी नजर आने लगती है। उम्र बढ़ने (Ageing) के साथ अपने भोजन में हरी सब्जियों, साबुत अनाज, स्प्राउट्स व डेयरी प्रोडक्ट्स की मात्रा बढ़ाएं साथ ही साथ ड्राई फ्रूट्स की भी।

  1. बादाम

बादाम विटामिन ई का बेहतरीन स्त्रोत होते हैं। जो हानिकारक यूवी किरणों से स्किन की सुरक्षित रखते हैं, स्किन के मॉयस्चर को बना कर रखते हैं साथ ही स्किन टिश्यू को रिपेयर करने का भी काम करते हैं। जवां और खूबसूरत नजर आने में हेल्दी और चमकदार त्वचा का बहुत बड़ा रोल होता है।

  1. काजू

काजू में प्रोटीन और विटामिन-ई की भरपूर मात्रा होती है। ये दोनों न्यूट्रिशन बढ़ती उम्र के असर को कम करते हैं और त्वचा को चमकदार बनाए रखने में मदद करते हैं। तो काजू का सेवन भी करें लेकिन सीमित मात्रा में।

  1. अखरोट

अखरोट में विटामिन-ई और ओमेगा-3 फैटी एसिड्स होते हैं, जो त्वचा को मुलायम बनाते हैं और रंगत सुधारने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा अखरोट में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स फ्री रेडिकल्स के असर को ख़त्म करके एजिंग प्रोसेस को धीमा करने का काम करते हैं।

  1. पिस्ता

पिस्ता में विटामिन ई और दूसरे एंटीऑक्‍सीडेंट्स पाए जाते हैं, जो बॉडी से फ्री रेडिकल्‍स को कम करने और स्किन को सॉफ्ट और ग्लोइंग बनाने में मददगार होते हैं। इसके साथ ही पिस्ता में विटामिन ई होता है जो स्किन को हेल्दी रखता है जिससे उम्र का असर पता नहीं चलता।

Disclaimer: लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

 

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