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जब गुलाम दस्तगीर को माना गया संघी

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मुंबई| मुंबई के निचले इलाके वर्ली में एक 80 वर्षीय बुजुर्ग जब भी अपने घर से निकलते हैं तो एक चौंकाने वाला अभिवादन ‘अस्लामुआलैकुम गुरुजी’ सुना जा सकता है। यह कोई और नहीं बल्कि संस्कृत के विद्वान पंडित गुलाम दस्तगीर हैं, जिन्होंने पिछले छह दशकों में शंकराचार्य, दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, आरएसएस नेताओं और इस्लामिक विद्वानों को समान भाव से प्रभावित किया है। इस्लाम और संस्कृत की गूढ़ जानकारी रखने वाले पंडित दस्तगीर किसी भी धर्म के मुद्दे पर बात कर सकते हैं। सोलापुर जिले के चिखाली गांव में जन्मे पंडित दस्तगीर अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी संस्कृत संस्थान से जुड़े।

दस्तगीर ने कहा, “मैं 48 ब्राह्मणों की कक्षा में अकेला मुस्लिम छात्र था। मेरे ब्राह्मण गुरुजी ने मुझमें विशेष पसंद पैदा की और मुझे प्रोत्साहित किया। मैंने धर्म ग्रंथों, वेद और अन्य किताबों को संस्कृत में पढ़ा।” 50 के दशक में वह मुंबई में बस गए और मराठा मंदिर संस्थान के मराठी माध्यम वाले वर्ली हाई स्कूल में सभी कक्षा के संस्कृत के शिक्षक नियुक्त किए गए। दो दशक बाद पेशेवर जरूरत के लिए वह संस्कृत में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने मैसूर विश्वविद्यालय पहुंचे।

आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार के दौरान पंडित दस्तगीर को अचानक निशाना बनाया गया। उन्होंने कहा, “उन्हें संदेह था कि मैं मुस्लिम नाम के साथ संस्कृत के जरिए आरएसएस और जनसंघ की विचारधारा का प्रचार कर रहा हूं। लंबी जांच प्रक्रिया के बाद यह बात गलत साबित हुई।” 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में वापस आने पर उन्हें बुलावा भेजा गया। गांधी को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि पंडित दस्तगीर वास्तव में सैयदवंशी और पैगंबर मोहम्मद के वंशज हैं।

पंडित दस्तगीर ने कहा, “उन्होंने मुझसे कई बार मुलाकात की और संस्कृत के प्रति मेरे लगाव और ज्ञान की सराहना की। 1982 में उन्होंने शिक्षा मंत्री से मुझे राष्ट्रीय संस्कृत प्रचारक नियुक्त करने को कहा।” दो साल बाद उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया और संस्कृत का प्रचार किया। उन्होंने इंदिरा की हत्या के बाद 1984 में यह पद छोड़ दिया।

उन्होंने कहा, “मैंने 1987 में संस्कृत में स्नातकोत्तर किया था, उस वक्त मैं करीब 50 साल का था, जबकि मैं सालों पहले इस भाषा में प्रवीण हो चुका था।” अपनी सेवानिवृत्ति के बाद पंडित दस्तगीर विश्व की सबसे पुरानी और समृद्ध भाषा संस्कृत के विभिन्न स्वरूपों के जरिए इस्लाम और हिंदू धर्म की समानता पर व्याख्यान देते हैं।

उन्होंने कहा, “संस्कृत सिर्फ ब्राह्मणों के लिए नहीं है। लेकिन इस विचार ने लोगों को इसे पढ़ने से रोका। मैंने संस्कृत को लेकर देश की विभिन्न जातियों और धर्मो के बीच जागरूकता फैलाई।” पंडित दस्तगीर कहते हैं कि हिंदू धर्म में धर्मातरण और जाति व्यवस्था के लिए जगह नहीं है।

उन्होंने कहा, “धर्मातरण के मौजूदा जुनून के लिए हिंदू धर्मग्रंथ में जगह नहीं है। इसको मान्यता नहीं है। आप सिर्फ किसी व्यक्ति का नाम बदल सकते हैं, जन्म से उसके धर्म की आत्मा नहीं बदल सकते।” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के चहेते रहे दस्तगीर बिना धर्म बदले संस्कृत को पेशा बनाने में प्रोत्साहन देने का श्रेय इस संगठन को देते हैं। वह मानते हैं कि आरएसएस किसी धर्म के खिलाफ नहीं है।

उन्होंने कहा, “लेकिन अगर कोई हिंदुत्व के लिए खतरा है, तो वह उसका करारा जवाब देते हैं।” दस्तगीर की पत्नी वाहिदा एक सहयोगी पत्नी के रूप में उनका साथ देती है। उनका बेटा बदीउज्जमा संस्कृत का विद्वान है लेकिन वह एक दुकान चलाता है। बड़ी बेटी ग्यासुनिस्सा शेख सोलापुर में संस्कृत शोध केंद्र चलाती हैं जबकि दूसरी बेटी कमरुनिस्सा पाटिल को पिता के शौक से कोई लगाव नहीं है।

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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