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अपना दल बंटा, सांसद अनुप्रिया पार्टी से बाहर

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Anupriya patel, apna-dal

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लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी पार्टी अपना दल में पारिवारिक विवादों के कारण गुरुवार को मिर्जापुर से लोकसभा सांसद अनुप्रिया पटेल को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पार्टी आला कमान ने उन्हें निष्कासित कर दिया है। बताया जा रहा है कि कुछ दिनों पहले उन्होंने लखनऊ स्थित पार्टी दफ्तर में ताला जड़ दिया था। अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल ने गुरुवार को ताला तोड़कर मीटिंग की और सांसद अनुप्रिया को पार्टी से निकाले जाने का ऐलान किया। इस फैसले के बाद अपना दल दो खेमे में बंट गया है। पार्टी के कई नेता कृष्णा और कुछ नेता अनुप्रिया के साथ खड़े दिख रहे हैं।

गौरतलब है कि अपना दल की स्थापना कुर्मी समाज के बड़े नेता सोनेलाल पटेल ने की थी। सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल पार्टी की अध्यक्ष हैं। कृष्णा और उनकी बेटी अनुप्रिया के बीच पार्टी पर अपना वर्चस्व कायम करने को लेकर संघर्ष चल रहा है। पिछले साल अक्टूबर में कृष्णा ने अनुप्रिया पटेल को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया था। अनुप्रिया ने अपनी मां के फैसले पर उंगली उठाते हुए तब कहा था कि यह फैसला असंवैधानिक है।

कृष्णा पटेल ने तब अपने कदम को सही ठहराते हुए कहा था कि पार्टी कार्यकर्ताओं को अनुप्रिया की इच्छा के मुताबिक झुकना पड़ रहा था, क्योंकि उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने नहीं दिया गया तो वह अपना दल का किसी और पार्टी में विलय कर देंगी। कृष्णा पटेल ने तब यह भी कहा था, “पार्टी के कार्यकर्ता चाहते थे कि मैं लोकसभा चुनाव में उतरूं, क्योंकि अनुप्रिया तो पहले से ही विधायक थीं।”

उल्लेखनीय है कि अनुप्रिया सांसद होने से पहले वाराणसी की रोहनिया सीट से विधायक रह चुकी हैं।

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नेशनल

दलित राजनीति का नया ‘नगीना’ बने चंद्रशेखर

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बामसेफ़ से शुरू हुई दलित राजनीति बी एस 4 और बहुजन समाज पार्टी होते हुए लगता है आजाद समाज पार्टी तक जा पहुंची है। दलित राजनीति का जो पौधा कांशीराम ने रोपा था उसे मायावती ने सींचकर बड़ा तो किया लेकिन 2024 आते आते वो पौधा मुरझा गया, लेकिन जहां से मायावती का पतन हुआ वहीं से दलित राजनीति के नए सूर्य का उदय हुआ और वो और कोई नहीं आक्रामक दलित राजनीति का नया चेहरा चंद्रशेखर आजाद है जो 18 वीं लोकसभा में सारे राजनीतिक पंडितों के आँकलन को ध्वस्त करते हुए उस सर्वोच्च सदन में पहुंचे है जहां शायद ही कोई दलित नेता इतनी जल्दी पहुँच पाया हो।

2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर लोगों की निगाहें सबसे ज्यादा टिकी हुई थीं, उनमें से एक पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट भी थी। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के ओम कुमार का सीधा मुकाबला आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद से था। हालांकि ये सीट इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई थी और समाजवादी पार्टी ने मनोज कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था। वहीं, इस सीट पर बीएसपी ने भी सुरेंद्र पाल सिंह को चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए उतारा था.. यानि घेरेबंदी पूरी थी इसके बावजूद चंद्रशेखर ने एक लाख पचास हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से इस सीट को जीत लिया।

यह पर सबसे चौकाने वाला नतीजा मायावती की पार्टी बसपा का रहा जिसके उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहा। यहाँ तक कि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे। मायावती का खिसकता वोट बैंक और चंद्रशेखर की चुनावी कामयाबी बीएसपी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है। आकाश आनंद ने लोकसभा चुनावों की शुरुआत में कुछ माहौल बनाने में कामयाबी हासिल की थी, लेकिन मायावती ने उनके पर ही कतर दिए। आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार चंद्रशेखर ने नगीना सीट पर जितनी बड़ी जीत दर्ज की है, उससे BSP के मतदाताओं को एक मजबूत विकल्प मिल गया है। यूपी में दलित वोट बैंक पर अपना अधिकार जमाए रखने वाली बहुजन समाज पार्टी को अब समझ में आ रहा है कि यह वोट बैंक धीरे-धीरे अब किधर खिसक रहा है। आने वाले दिनों में अगर मायावती ने अपने भतीजे के पर न कतरे तो आकाश आनंद और चंद्रशेखर के बीच दलित वोटों के लिए टकराव देखने को मिल सकता है।

2009 से 2024 के बीच मायावती का वोट बैंक कितनी तेजी से खिसका है, इसका अंदाजा आपको आंकड़े देखकर लग जाएगा

2009 के लोकसभा चुनावों में BSP को यूपी में 27.42 फीसदी वोट मिले थे
2009 में पार्टी ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी
2014 के चुनावों में पार्टी को 19.77 फीसदी वोट लेकिन सीट एक भी नहीं
2019 में मायावती ने सपा के साथ गठबंधन किया और 19.43 फीसदी वोट और 10 सीटों पर जीत दर्ज की
2024 के चुनावों में BSP को महज 9.39 फीसदी वोट मिले पर सीट एक भी नहीं मिली
2019 से लेकर 2024 तक 5 साल में बीएसपी के 10 फीसदी वोटर काम हुए .. आंकड़ों से ये तो साफ हैं कि चुनाव दर चुनाव लगातार मायावती का वोट बैंक दरक रहा है .. ऐसे में उसके कोर वोटर ने नए विकल्प को भी तलाशना शुरू कर दिया है।

इंस्टाग्राम और रील्स के इस युग में अपनी रौबदार मूँछों और कड़क अंदाज में बात करने वाले चंद्रशेखर को संसद भेजकर नगीना ने दलितों के एक नगीना को भी जन्म दे दिया है। आजाद ने सिर्फ दलित वोटरों पर मायावती के गढ़ को ही नहीं तोड़ा बल्कि अखिलेश यादव का पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक के फॉर्मूले को भी नगीना में गलत साबित किया। अखिलेश का यह फॉर्मूला यूपी की करीब 40 से ज्यादा सीटों पर कामयाब रहा था। चंद्रशेखर ने दलित और मुस्लिम वोटरों को लामबंद किया, जिस वजह से सपा प्रत्याशी मनोज कुमार को 10.2 प्रतिशत वोट ही मिले।

2024 में चंद्रशेखर की जीत ने 2027 में होने वाले चुनावों के लिए तमाम दलों में खलबली जरूर पैदा कर दी है हालांकि इस बार आजाद समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में नगीना और दुमरियागंज सीट पर ही चुनाव लड़ा.. डुमरियागंज सीट से पार्टी के उम्मीदवार ने 81 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए हैं। वहीं, बसपा के मोहम्मद नदीम को करीब 36 हजार ही वोट मिले। अब नगीना की लोकसभा सीट पर चंद्रशेखर की जीत ने उन्हें एक बड़ा दलित नेता बना दिया है और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में वह बीएसपी के वोट बैंक में और बड़ी सेंध लगा सकते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती इस संकट के दौर में अपनी पार्टी को एक बार फिर से पहले की तरह मजबूत बना सकती हैं या नहीं।

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