उत्तराखंड
…वो सुबह कभी तो आएगी: मनोज
शहीदों के सपनों पर गंदी राजनीति ने फेरा पानी
सुनील परमार
देहरादून। राज्य निर्माण आंदोलनकारियों ने जिन सपनों को साकार करने के लिए अपना वर्तमान व भविष्य दांव पर लगा दिया, आज वे सपने चकनाचूर हो गये हैं। प्रदेश में लोकतंत्र मजाक बन गया है और जनप्रतिनिधियों के लिए धन कमाई का साधन। आज जनता हाशिये पर है और मूक तमाशा देख रही है। यही समय है जब आंदोलनकारियों व प्रदेश का विकास चाहने वाली ताकतों को एकजुट हो कर एक नया आंदोलन खड़ा करना होगा जो प्रदेश के मुद्दों, सवालों व सरोकारों की बात करे।
नये विकल्प व नई लीडरशिप की जरूरत
यह कहना है उत्तराखंड राज्य निर्माण गोलीकांड सेनानी संगठन के अध्यक्ष मनोज ध्यानी का। मनोज उत्तराखंड राज्य गठन के बाद भी पहाड़ के मुद्दों और सवालों को लेकर अपनी आवाज उठाते रहे हैं। राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति से मनोज व्यथित हैं। वह कहते हैं कि क्या यही लोकतंत्र है? स्वस्थ लोकतंत्र में सरकार चलाने की बात होनी चाहिए न कि गिराने की। सत्ता के मद में सब चूर हैं। राज्य के विकास को दरकिनार कर निजी स्वार्थ के लिए सत्ता हथियाने का प्रयास हो रहा है। यह उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों व शहीदों के सपनों का प्रदेश नहीं है, अलग राज्य की परिकल्पना में लोकतंत्र के केंद्र में व्यक्ति था, उसका विकास था, लेकिन यहां निजी स्वार्थ ही स्वार्थ है।
आंदोलनकारी आज भी हाशिये पर
राज्य आंदोलनकारी मनोज ध्यानी कहते हैं कि पिछले 15 वर्षों के दौरान उत्तराखंड में विभिन्न सरकारें आईं और गईं। लेकिन राज्य की लड़ाई लड़ने वाले आंदोलनकारी हमेशा ही हाशिये पर रहे हैं। उनकी उपेक्षा होती रही हैै। उत्तराखंड आंदोलनकारियों के लिए बनी परिषद के अध्यक्षों पर लाखों रुपये खर्च हुए, लेकिन आंदोलनकारियों को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही। आलम यह है कि राज्य आंदोलनकारियों को पिछले साल जुलाई माह से अब तक पेंशन भी नहीं मिली है। इस संबंध में कई बार शासन-प्रशासन से बात हुई है लेकिन नतीजा सिफर रहा। प्रदेश में 480 राज्य आंदोलनकारियों को पेंशन मिलती है। इनमें से अधिकांश का जीवन यापन भी इसी पेंशन से हो रहा है। पेंशन न मिलने से कई आंदोलनकारियों की आर्थिक स्थिति बदतर हो गयी है। क्या इसी राज्य के सपने देख लोग आंदोलन में कूदे थे।
क्षेत्रीय ताकत नहीं बन सके आंदोलनकारी
एक सवाल के जवाब में ध्यानी ने कहा कि यह आंदोलनकारियों की एक बड़ी भूल थी कि राज्य मिलने के बाद उन्होंने समझा कि अब उनका क्या काम, राज्य तो मिल गया। लेकिन इस गड़बड़ी का राजनीतिक दलों ने लाभ उठाया। हम संगठित होकर क्षेत्रीय ताकत नहीं बन सके, जबकि बड़े दलों ने इस स्थिति का लाभ उठाया। जल, जंगल, जमीन, शिक्षा स्वास्थ्य, रोजगार, पलायन जैसे विषयों पर सवाल पुरजोर तरीके से नहीं उठे। चूंकि क्षेत्रीय ताकतें नहीं थी तो दलों ने सत्ता की आड़ में संसाधनों की लूट-खसोट ही की। कुछ आंदोलनकारी दलों में चले गये तो छोटे दलों में अहंकार व निजी हित बड़े हो गये और राज्य गौण। राज्य आंदोलन से जुड़े संगठन एक मंच पर एकत्रित नहीं हो सके, ऐसे में विकास का पहिया चलने से पहले ही रुक गया।
नई सोच व नयी लीडरशिप की जरूरत
गुटबाजी में फंसी संकुचित राजनीति के कारण आज क्षेत्रीय दल विकल्प नहीं बन सके हैं। यदि हमें भाजपा-कांग्रेस का विकल्प तलाशना है तो एक नई सोच व नई लीडरशिप को विकसित करना होगा। पुरानों को छोड़ना होगा। लीडरशिप के रूप में नये विकल्प के तौर पर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के पीसी तिवारी, मलेथा आंदोलन के प्रणेता समीर रतूड़ी और कमला पंत पर विचार किया जा सकता है। आंदोलनकारियों और उन सभी लोगों को जो प्रदेश का हित चाहते हैं, को नये सिरे से लामबंद होना होगा। एक नया जनांदोलन खड़ा करना होगा जो कि गैरराजनीतिक हो। इसके बाद ही प्रदेश हित के सवाल किये जा सकते हैं।
12 विधानसभा सीटों पर हो फोकस
आंदोलनकारी मनोज ध्यानी का सुझाव है कि क्षेत्रीय ताकतों को एकजुट होकर कुछ सीटों पर ही अपना फोकस करना चाहिए। यदि जोर लगाया जाएं तो एक दर्जन सीटों पर जीत भी हासिल हो सकती है, बशर्ते की सभी ताकतें अपना अहम, स्वार्थ व गुटबाजी को दरकिनार कर राज्य के सवालों को प्राथमिकता दें। यदि ऐसा हो सका तो राज्य में फिर से एक नई सुबह आयेगी।
उत्तराखंड
चारधाम यात्रा में 31 मई तक VIP दर्शन पर रोक, ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन 19 मई तक बंद
हरिद्वार। अगर आप भी चारधाम यात्रा पर जा रहे हैं तो ये खबर आपके लिए काफी अहम है। चारधाम यात्रा में VIP दर्शन व्यवस्था पर रोक लगा दी गई है। लोग 31 मई तक VIP सिस्टम के तहत दर्शन नहीं कर पाएंगे। वहीं ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन भी 19 मई तक बंद रहेंगे। खराब मौसम और श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह फैसला लिया गया है।
चार धाम यात्रा 10 मई को शुरू हुई थी। छह दिन में ही देश-विदेश के 3,34,732 श्रद्धालु इनके दर्शन के लिए पहुंच चुके हैं। उत्तराखंड सरकार ने यात्रा के लिए 25 अप्रैल से चारधामों के लिए पंजीकरण शुरू किया और गुरुवार तक 27 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के पंजीकरण हो गए।
मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने पत्र जारी कर 31 मई तक वीआईपी दर्शन पर रोक लगा दी है। यह भी कहा है कि धामों में सुगम दर्शन के लिए सरकार ने श्रद्धालुओं का पंजीकरण अनिवार्य किया है। अब दर्शन उसी दिन होंगे जिस तिथि का पंजीकरण किया गया है। इससे पहले 30 अप्रैल को राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर 25 मई तक वीआईपी दर्शन की व्यवस्था पर रोके जाने का आदेश दिया था।
50 मीटर में रील्स बनाने पर प्रतिबंध
उत्तराखंड सरकार ने भीड़ प्रबंधन की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। इसमें 50 मीटर के दायरे में चारों धामों के मंदिर के परिसर में रील्स बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही सोशल मीडिया लाइव आदि पर भी रोक लगा दी गई है। सरकार ने कहा है कि कुछ यात्रियों द्वारा मंदिर परिसर में वीडियो एवं रील बनायी जाती है और उन्हें देखने के लिए एक स्थान पर भीड़ एकत्रित हो जाती है जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन करने में असुविधा होती है ।
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