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मां बनने के लिए पुरुषों की जरूरत नहीं !

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आने वाले समय में बहुत मुमकिन है कि बच्चे पैदा करने के लिए पुरुषों की जरूरत ही न रहे। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने ऐसा तरीका खोज निकाला है जिनकी मदद से महिलाएं बिना पुरुषों की मदद के मां बन सकेंगी। इसके लिए वैज्ञानिक कुछ ऐसे रसायनों की मदद ले रहे हैं जो बनावटी शुक्राणु की तरह बर्ताव करें और महिला के शरीर में मौजूद अंडाणु को भ्रूण के रूप में विकसित करने के लिए उत्तेजित कर सकें।

इन प्रजातियों में भी नहीं होते नर जीव

                                                       मेंढ़क, छिपकली, चींटियों, मधुमक्खियों और कुछ पेड़-पौधों में नर प्रजाति होती ही नहीं सिर्फ मादाएं होती हैं

आप को हैरानी होगी कि मेंढ़क, छिपकली, चींटियों, मधुमक्खियों और कुछ पेड़-पौधों में नर प्रजाति होती ही नहीं सिर्फ मादाएं होती हैं और असेक्सुअल रिप्रोडक्शन या पार्थेनोजिनेसिस के जरिए संतान पैदा कर सकती हैं। इंसानों और उच्च जीवों में यह क्रिया नहीं होती लेकिन अब वैज्ञानिक इसे इंसानों पर भी आजमाना चाह रहे हैं।

क्यों है जरूरत

इंस्टिट्यूट फॉर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन एंड जेनेटिक्स, लॉस ऐंजल्स (अमेरिका) के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक की मदद से ऐसी महिलाएं भी मां बन पाएंगी जिनके पति किन्हीं वजहों से पिता बनने में सक्षम नहीं हैं। इसके लिए उन्हें किसी स्पर्म डोनर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। इस प्रयोग में डॉ. जैरी हॉल और डॉ. यान लिंग फेंग ने अहम भूमिका निभाई।

इस तकनीक से सिर्फ बेटियां पैदा हो सकेंगी

इस तकनीक की एक और खासियत है कि इससे पैदा होने वाली संतान सिर्फ मादा ही होगी। उसमें हूबहू अपनी मां जैसे गुण होंगे। असल में पुरुष के शुक्राणु में 23 जोड़ी क्रोमोसोम होते हैं उसी तरह महिला के अंडाणु में भी 23 जोड़ी क्रोमोसोम होते हैं। शुक्राणु और अंडाणु के मिलन के बाद 46 जोड़ी क्रोमोसोम वाली कोशिका ही आगे चलकर भ्रूण में विकसित होती है। चूंकि पुरुष लिंग का निर्धारण करने वाला क्रोमोसोम शुक्राणु में ही होता है इसलिए शुक्राणु की गैरमौजूदगी में बनने वाला यह भ्रूण मादा के रूप में ही जन्म लेगा।

कुछ वैज्ञानिकों ने जताया ऐतराज

वैज्ञानिक बिरादरी के बहुत से लोग इस खोज से खुश नहीं हैं उनका कहना है कि इससे बहुत सी कानूनी और नैतिक पेचीदगियां पैदा हो जाएंगी। इसके अलावा बहुत मुमकिन है कि इस तरह पैदा होने वाली संतानों में बीमारियों की आशंका ज्यादा हो और उनकी उम्र भी कम हो।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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