आध्यात्म
Sharad Purnima 2018: आज है शरद पूर्णिमा, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि
वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा अनूठी है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। मान्यता है कि यही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा का विधान है। साथ ही खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है। आइए जानते हैं, शरद पूर्णिमा के महत्व और पूजा विधि के बारे में –
शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त –
चंद्रोदय का समय – 23 अक्टूबर 2018 की शाम 05 बजकर 20 मिनट।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 23 अक्टूबर 2018 की रात 10 बजकर 36 मिनट।
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 24 अक्टूबर की रात 10 बजकर 14 मिनट।
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि –
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
घर के मंदिर में घी का दीपक जलाएं।
इसके बाद ईष्ट देवता की पूजा करें।
फिर भगवान इंद्र और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
अब धूप-बत्ती से आरती उतारें।
संध्या के समय लक्ष्मी जी की पूजा करें और आरती उतारें।
अब चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद चढ़ाएं और आारती करें।
अब उपवास खोल लें।
रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें।
चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें –
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं
शरद पूर्णिमा का महत्व –
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं। शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मानसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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