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आध्यात्म

महाअष्टमी को इस मुहूर्त में करें कन्या पूजन, इन बातों का रखें ख्याल; रहेगी महागौरी की कृपा

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नई दिल्ली। नवरात्रि में अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है। अष्टमी को माता महागौरी का पूजन किया जाता है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं। शारदीय नवरात्रि में इसबार अष्टमी तिथि पर सर्वार्थ सिद्धी योग बन रहा है। ऐसे में शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करना अति उत्तम रहेगा।

नवरात्रि में व्रत रखने वाले अष्टमी तिथि के दिन कन्याओं को भोजन कराने के बाद व्रत खोलते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कन्याओं को भोजन कराने से घर परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है। साथ ही व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी रहती है। बता दें कि अष्टमी के दिन महागौरी का पूजन किया जाता है।

महाअष्टमी तिथि और कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। अष्टमी तिथि का आरंभ आज 21 अक्टूबर की रात 9 बजकर 54 मिनट पर होगा। 22 तारीख को उदया तिथि में अष्टमी तिथि रहने से इस दिन ही महाअष्टमी का पूजन किया जाएगा।

कन्या पूजन शुभ मुहूर्त

22 अक्टूबर को सुबह 7 बजकर 51 मिनट से 9 बजकर 16 मिनट तक का समय कन्या पूजन के लिए उत्तम रहेगा। इसके बाद 9 बजकर 16 मिनट से लेकर 10 बजकर 41 मिनट तक। साथ ही अमृतकाल में 10 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 1 मिनट तक कन्या पूजन करना शुभ रहेगा।

कन्या पूजन विधि

नवरात्रि की अष्टमी के दिन कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें।

इसके बाद कन्याओं का पूरे परिवार के साथ चावल और फूल के साथ स्वागत करें।

नवदुर्गा के सभी नामों के जयकारे लगाएं। फिर कन्याओं को आरामदायक और साफ जगह पर बैठा दें।

सभी कन्याओं के पैर धोकर अच्छे से साफ करें। फिर सभी का कुमकुम का टिका लगाएं।

इन सभी कन्याओं को मां भगवती का स्वरुप समझकर उन्हें भोजन कराएं।

अंत में उन्हें दक्षिणा और कुछ उपहार देकर ही घर से विदा करें।

कन्या पूजन में इन बातों का रखें खास ख्याल

ध्यान रखें की कन्या पूजन में 9 कन्याओं के साथ 1 बालक को जरूर बैठाएं। बालक को भैरव का रूप माना जाता है।

कन्याओं के तुरंत बाद लाकर उनके हाथ पैर जरुर धुलवाए और उनका आशीर्वाद लें।

कुमकुम का तिलक लगाने के बाद सभी कन्याओं को कलावा भी जरुर बांधे।

कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें विदा करते हुए उनसे क्षमा जरुर मांगे।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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