मुख्य समाचार
जेएनयू को बदनाम न करें
रीतू तोमर
देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में देश विरोधी नारेबाजी और छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी से इसकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठने लगे हैं लेकिन इन सबके बीच विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षक संघ ने जेएनयू की प्रतिष्ठा बचाने के लिए मोर्चा संभाल लिया है। इस मामले में जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद वामपंथी संगठनों सहित विपक्षी पार्टियों और भाजपा के बीच बयानबाजी से मामले ने तूल पकड़ लिया है। बुद्धिजीवियों का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू में फसाद उस समय शुरू हुआ, जब नौ फरवरी को संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर अफजल और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के सह संस्थापक मकबूल भट की याद में शाम पांच बजे एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया।
वामपंथी विचारधारा के छात्रों ने ‘द कंट्री ऑफ ए विदाउट पॉस्ट ऑफिस’ नाम से इस कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसे प्रशासन से मंजूरी मिल चुकी थी लेकिन बाद में एबीवीपी की शिकायत के बाद जेएनयू प्रशासन ने इस आयोजन को रद्द कर दिया लेकिन इसके बावजूद यह कार्यक्रम हुआ और इसी बात पर दोनों छात्र गुटों के बीच झड़प हो गई। जेएनयू की छात्रा कंचन देसाई ने बताया, “पिछले दो साल से इस तरह का आयोजन हो रहा है लेकिन कभी फसाद नहीं हुआ। मामले को अलग ही रंग दे दिया गया, जिसे जेएनयू कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।” देश विरोधी नारेबाजी और अफजल गुरु के समर्थन में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी से छात्रों में गुस्सा है। कन्हैया के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। इस बीच जेएनयू का शिक्षक संघ भी कन्हैया के समर्थन में आवाज बुलंद किए हुए है। एक शिक्षक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि कन्हैया की देशभक्ति पर शक नहीं किया जाना चाहिए। उसने देशहित में कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है।
कन्हैया पर देशद्रोह की धारा आईपीसी 124ए और आपराधिक साजिश रचने की धारा 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया। दिल्ली पुलिस ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में जेएनयू के ही छात्र उमर खालिद को इस आयोजन का मास्टरमाइंड बताया है। जेएनयू छात्रों का कहना है कि नौ फरवरी के कार्यक्रम का आयोजन डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) ने किया था, जिसकी अगुवाई उमर खालिद कर रहा था। घटना के वीडियो में जिन लोगों को नारे लगाते देखा जा सकता है, उनमें कुछ छात्र नकाबपोश हैं। जेएनयू की एबीवीपी छात्र शाखा के एक सदस्य नितिन ने बताया, “उमर खालिद फरार क्यों है? वह सामने आए और सच्चाई पर से पर्दा उठाए।” जेएनयू की शोध छात्रा प्रियंका सभरवाल ने कहा कि जुलूस में 70 से 80 लोग शामिल थे, जिनमें से कुछ दर्जनभर लोगों ने नारेबाजी की लेकिन पूरे जेएनयू पर दोष मढ़ा जा रहा है।
एक अन्य छात्र रवि नारायण कहते हैं कि इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन पिछले तीन साल से परिसर में किया जा रहा है लेकिन आज तक कोई हंगामा नहीं हुआ। इस बार ही ऐसा क्यों? एक अन्य छात्र विपिन मेहता इसका जवाब देते हुए कहते हैं, “पिछले चौदह साल में पहली बार छात्रसंघ में एबीवीपी अपनी जगह बनाने में कामयाब रही है। यह मामला कुछ और नहीं बल्कि भाजपा द्वारा अपने हिंदुत्व एजेंडे का प्रसार करने की कोशिश है।” रवि नारायण का कहना है कि इस पूरे मामले को उलझाया जा रहा है। वह किसी भी तरह की देश विरोधी नारेबाजी में शामिल नहीं है और राजनीतिक साजिश केतहत पुलिस की सूची में उसका नाम डाला गया है। जेएनयू में इस सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत नौ फरवरी को शाम पांच बजे साबरमती हॉस्टल से गंगा ढाबे तक पैदल मार्च निकलना था। जेएनयू की पहचान बन चुके गंगा ढाबे पर काम करने वाले विपिन कहते हैं, “आठ फरवरी की शाम को यहीं बैठकर कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जा रही थी। सभी छात्र एकजुटता से चर्चा कर रहे थे। जहां तक मुझे पता है कि देश विरोधी कोई बातें नहीं हुई लेकिन सुनने में आया है कि कुछ लोग इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने कश्मीर से आए थे।”
गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू द्वारा जेएनयू को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का अड्डा बताने वाले बयान पर छात्रों के साथ शिक्षक संघ भी खफा है और विश्वविद्यालय को बदनाम नहीं करने की बात कह रहे हैं। जेएनयू के एक शिक्षक ने बताया कि यह तो बहुत बेतुका बयान है। आप एक घटना के आधार पर पूरे विश्वविद्यालय पर उंगली नहीं उठा सकते। जेएनयू की प्रतिष्ठा किसी से छिपी हुई नहीं है। इस पूरे मामले की सच्चाई सामने आनी चाहिए। इस पूरे प्रकरण में जेएनयू कन्हैया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। छात्र दिल्ली पुलिस और सरकार की तानाशाही के खिलाफ खुलकर बोलने से भी नहीं हिचक रहे। एमफिल छात्रा विभा आनंद ने बताया, “इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस और मीडिया का रवैया लापरवाही से लबरेज रहा है। इस मुद्दे को मीडिया ने काफी हाइप किया है वरना इसे सुलझाया जा सकता था।” जेएनयू के ही पूर्व छात्र मनोहर हांडी ने बताया, “जेएनयू में किस तरह की विचारधारा पनप रही है। इस पर अपनी निजी राय रखने का हक सबको है लेकिन जेएनयू की प्रतिष्ठा पर उंगली उठाने का हक किसी को नहीं है। जेएनयू में ऐसे सभी मुद्दों पर चर्चा होती है जिसका जिक्र करने से भी लोग कतराते हैं।” जानकारों का कहना है कि जेएनयू को आतंकवाद का अड्डा और छात्रों को देशद्रोही कहना बंद करना होगा। विचारधाराओं में बंट चुके देश को एकजुट होकर इस तरह की देश विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देना होगा।
नेशनल
दिल्ली के स्कूलों की जांच में कुछ नहीं मिला, पुलिस बोली- ई-मेल्स और कॉल्स फर्जी
नई दिल्ली। दिल्ली के स्कूलों में बम होने के धमकी भरे ईमेल के बाद जांच की गई तो वहां कुछ नहीं मिला। पुलिस अधिकारियों ने भी इसे होक्स ईमेल बताया है, लेकिन उन्होंने कहा कि चेकिंग जारी रहेगी। गृह मंत्रालय ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह फर्जी कॉल है। दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां प्रोटोकॉल के मुताबिक जरूरी कदम उठा रही हैं।
वहीं दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली के कुछ स्कूलों को बम की धमकी वाले ई-मेल मिले। दिल्ली पुलिस ने प्रोटोकॉल के तहत ऐसे सभी स्कूलों की गहन जांच की। कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिल। ऐसा प्रतीत होता है कि ये कॉल्स फर्जी हैं। हम जनता से अनुरोध करते हैं कि वे घबराएं नहीं और शांति बनाए रखें।
स्कूल में आए इस धमकी भरे ईमेल के बाद कई स्कूलों ने बच्चों की जल्द छुट्टी का मैसेज पेरेंट्स को भेज दिया, तो कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल जाकर पहले ही ले आए। इसके अलावा कई स्कूल के प्रिंसिपल ने पेरेंट्स को मैसेज भेज कर कहा कि घबराने की बात नहीं है।
नोएडा में इंद्रप्रस्थ ग्लोबल स्कूल (आईपीजीएस) की प्रिंसिपल निकिता तोमर मान ने बताया, “मैं लोगों से आग्रह करूंगी कि वे अनावश्यक घबराहट पैदा न करें और इस स्थिति को एक परिपक्व वयस्क के रूप में लें। दिल्ली-एनसीआर के जिन स्कूलों को धमकियां मिलीं, उन्हें खाली करा लिया गया है और हमारे सहित बाकी स्कूल सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। कोई धमकी भरा संदेश प्राप्त नहीं हुआ है।”
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