आध्यात्म
महिला नागा साधू अपने साथ वो करती हैं, जो मरने के बाद किसी के साथ किया जाता है
नई दिल्ली। जब आप भारतीय परंपरा से रूबरू होते हैं तो कभी-कभी ये परम्पराएँ आपको लुभाती हैं तो कभी-कभी चौंकाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा से आज हम आपको रूबरू कराने जा रहें हैं। ये परंपरा है महिलाओं के नागा साधू बनने की। कई लोगों ने इस बारे में गलत सुन रखा होगा तो वही कुछ लोगों का तो इस बारे में मानना है कि महिला नागा साधू जैसा कुछ नहीं होता। लेकिन इस विचित्र परंपरा के कुछ सच आज हम आपको बताएंगे।
एक महिला को नागा साधू बनने से पहले उसे 6 से 12 साल के कठिन ब्रम्हचर्य का पालन करना पड़ता है। जिस महिला को साधू बनना हो, उसे अपने गुरु को विश्वास दिलाना होता है कि वह महिला ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है। तभी उसे गुरु महिला नागा की दीक्षा देता है। सबसे आश्चर्य की बात ये है कि हिन्दू परंपरा में किसी इंसान के मरने के बाद उसका पिंड दान किया जाता है लेकिन नागा साधू बनने से पहले महिला को अपना पिंड दान स्वयं करना पड़ता है। महिला को नागा बनते ही अपने सिर का मुंडन करवाना पड़ता है। मुंडन के बाद नदी में स्नान कराया जाता है। इन सब के बाद सबसे कठिन कार्य महिला को अपने परिवार का मोह भंग करना पड़ता है।
आम तौर पर पुरुष नागा हमेशा निवस्त्र रहता है लेकिन महिला नागा हमेशा ही एक पीला वस्त्र पहनती है। नागा बनते ही महिला को सभी लोग ‘माता’ कह कर पुकारते है। साधू बनने के लिए इन प्रक्रियाओं से सबको गुज़रना पड़ता है, चाहे वो महिला नागा साधू हो या पुरुष नागा साधू।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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