आध्यात्म
अयोध्या: सामने आई रामलला के अचल विग्रह की तस्वीर, भक्तों का मन मोह लेगा प्रभु का बालरूप
अयोध्या। अयोध्या के भव्य राम मंदिर के गर्भगृह से रामलला की नई तस्वीर सामने आई है। इस तस्वीर में उनके पूरे स्वरूप को देखा जा सकता है। तस्वीर में रामलला माथे पर तिलक लगाए बेहद सौम्य मुद्रा में दिख रहे हैं। तस्वीर में उनके चेहरे पर भक्तों का मन मोह लेने वाली मुस्कान देखी जा सकती है।
रामलला की यह मूर्ति कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज की बनाई हुई है। इस मूर्ति में बाल सुलभ कोमलता झलक रही है। इसमें रामलला की भुजाएं घुटनों तक हैं। रामलला की मूर्ति श्याम शिला से बनी है। इसकी आयु हजारों साल होती है, यह जलरोधी है।
पैर की अंगुली से ललाट तक मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच है। मूर्ति का वजन 150 से 200 किलो है, मूर्ति के ऊपर मुकुट व आभामंडल बना हुआ है। सामने आई तस्वीर में रामलला की आंखें बड़ी और ललाट भव्य है।
प्रतिमा के पार्श्व भाग में उकेरी गई है कुछ और प्रतिमाएं
- रामलला की मूर्ति के पार्श्व भाग में शिला पर आकृतियां उकेरी गई हैं। महामंडलेश्वर संत श्री सतुआजी महाराज बताते हैं कि प्रतिमा के पार्श्व भाग को ‘प्रभा’ कहते हैं।
- सामने से मूर्ति को देखें तो बाईं तरफ ओम की आकृति उकेरी नजर आती है।
- वहीं, दाईं तरफ स्वास्तिक, शंख और चक्र बने नजर आते हैं।
- शिला का पार्श्व भाग दोनों तरफ से जहां से शुरू होता हैं, वहां कुछ और प्रतिमाएं उकेरी हुई दिखती हैं।
- माना जा रहा है कि शिला के पार्श्व भाग में नीचे की ओर एक तरफ हनुमान जी और दूसरी तरफ गरूड़ भगवान की प्रतिमा बनाई गई है।
चौथे दिन का अनुष्ठान
इससे पहले रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के चौथे दिन शुक्रवार को सुबह नौ बजे अरणी मंथन से अग्नि प्रकट की गई। अग्नि प्रकट के साथ चौथे दिन का अनुष्ठान शुरू हो गया है। शुक्रवार से यज्ञ मंडप में हवन की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। वेद मित्रों से आहुतियां डाली जाएगी।
इसके पहले गणपति आदि स्थापित देवताओं का पूजन किया गया। पूजन के क्रम में ही द्वारपालों द्वारा सभी शाखाओं का वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुण्डपूजन, पञ्चभूसंस्कार होगा।
दो और तस्वीरें भी जारी की गईं
इससे पहले रामलला के अचल विग्रह की दो तस्वीरें सामने आईं थीं। पहली तस्वीर में रामलला को ढक कर रखा गया था। इसकी तस्वीर कल ही सामने आई थी। आज शुक्रवार को रामलला का पूरा आवरण सामने आया है।
इससे पहले गुरुवार को ढकी मूर्ति का ही पूजन किया गया था। रामलला के अचल विग्रह, गर्भगृह स्थल और यज्ञमंडप का पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किया गया। पूजन के क्रम में ही राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला का जलाधिवास व गंधाधिवास हुआ।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
रामलला के नवनिर्मित मंदिर में अचल विग्रह की स्थापना के साथ विराजमान रामलला को भी पूजित-प्रतिष्ठित किया जाएगा। राममंदिर के गर्भगृह में सोने के सिंहासन पर रामलला की इस 51 इंच की अचल मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। उनके सिंहासन के ठीक आगे विराजमान रामलला स्थापित होंगे। वे मंदिर में चल मूर्ति यानी उत्सव मूर्ति के रूप में पूजित होंगे।
वेदों का पारायण 21 को
मंडपपूजा के क्रम में मंदिर के तोरण, द्वार, ध्वज, आयुध, पताका, दिक्पाल, द्वारपाल की पूजा की गई। वहीं, पांच वैदिक आचार्यों ने अनुष्ठान की कड़ी में ही चारों वेदों का पारायण भी शुरू कर दिया है, जिनका पारायण 21 जनवरी को होगा।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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