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आध्यात्म

इस दिन खाटू श्याम जी के दर्शन करने से जल्दी पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं

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Khatu Shyam Ji

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सीकरी। राजस्थान के सीकरी में स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर में कई लोग अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं। बाबा खाटू श्याम को हारे का सहारा, तीन बाण धारी और शीश के दानी आदि कई नामों से जाना जाता है।

जिस प्रकार हिंदू धर्म में प्रत्येक देवी-देवता के लिए एक खास दिन समर्पित माना जाता है, ठीक उसी प्रकार बाबा खाटू के लिए भी एक विशेष दिन समर्पित माना गया है। आइए जानते हैं कि वह कौन-सा दिन है, जब खाटू श्याम जी के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं।

इस दिन करें दर्शन

वैसे तो खाटू श्याम जी के दर्शन कभी भी किया जा सकते हैं। लेकिन जिस फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर खाटू श्याम जी के दर्शन करना विशेष फलदायी माना जाता है। माना जाता है कि इस समय में बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन करने से वह अपने भक्तों की पुकार जल्दी सुनते हैं और उन्हें पूरा करते हैं।

कौन हैं खाटू श्याम जी

खाटू श्याम जी असल में पांडवों में से भीम के पोते अर्थात घटोत्कच के बेटे हैं। जिनका असली नाम बर्बरीक है। खाटू नरेश जी की प्रसिद्धि का कारण महाभारत के युद्ध से ही जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने के लिए बर्बरीक ने अपनी माता से आज्ञा मांगी। तब उनकी मां ने यह कहते हुए उन्हें युद्ध में जाने की आज्ञा दी कि तुम युद्ध में हारे का सहारा बनना। तभी से खाटू श्याम हारे का सहारा कहलाने लगे।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता की हमारी गारंटी नहीं है।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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