आध्यात्म
शांतिकुंज में श्रद्धा के साथ मना गुरु पूर्णिमा पर्व
हरिद्वार| गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज में यहां गुरु पूर्णिमा पर्व शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर देश-विदेश से आए हजारों गायत्री साधकों ने आराध्य गुरुसत्ता को आदरांजलि अर्पित की। गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं शैल दीदी ने इस अवसर पर उपस्थित गायत्री साधकों को पर्व सन्देश सुनाए।
पण्ड्या ने कहा, “आज मैं जो कुछ भी हूं, पूज्य गुरुदेव के कारण ही हूं। मुझे मेरे गुरुदेव ने ही गढ़ा है।”उन्होंने गुरु-शिष्य सम्बन्ध को सार्थक बनाने वाले चार जोड़े गुरु-शिष्यों का उदाहरण दिया : रामकृष्ण-विवेकानन्द, द्रोणाचार्य-अर्जुन, हिमालयवासी सर्वेश्वरानन्द-श्रीराम शर्मा, आचार्य श्रीराम शर्मा एवं माता भगवती देवी शर्मा।
पण्ड्या ने कहा कि जिस दिन आप अपने गुरु के चरणों में समर्पित हो जाएंगे, उसी दिन से आपकी प्रगति उन्नति शुरू हो जाएगी। उन्होंने हृदय की दुर्बलता त्यागने और अन्दर के शत्रुओं यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सरादि से लड़कर उन्हें परास्त-निरस्त कर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
इस मौके पर शैल दीदी ने कहा, “संवेदना ही मनुष्य के अन्दर की मनुष्यता को जागती है और उसे महानता की ओर ले जाती है। हमें अपने अन्दर की संवेदना जगानी चाहिए।”उन्होंने गुरु को भाव संवेदना की मूर्ति बताया और कहा कि गुरु वह कुम्भार है जो शिष्य के व्यक्तित्व को निखारता है और उसे सुगढ़ बनाता है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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