आध्यात्म
जेकेपी ने की 5000 ग्रामीण स्कूली बच्चों की मदद, वितरित की पाठ्य सामग्री
वृंदावन। जगद्गुरू कृपालु परिषत् समय-समय पर ग्रामीण बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनमें उपयोगी वस्तुओं का वितरण किया करता है। जेकेपी का उद्देश्य क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों में रह रहे बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ अन्य दैनिक जरूरतें पूरी करना भी हैं, ताकि उनका जीवन सुचारु रूप से चल सके। इसी के तहत जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा एवं कृपालु जी महाराज की ज्येष्ठ पुत्री डॉ विशाखा त्रिपाठी ने अपनी अनुजाओं डॉ श्यामा त्रिपाठी एवं डॉ कृष्णा त्रिपाठी के साथ जगद्गुरु धाम (प्रेम मन्दिर) में श्यामा श्याम धाम समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में 5000 स्कूली छात्र-छात्राओं को पाठ्य सामग्री वितरित की।इस मौके पर डॉ विशाखा त्रिपाठी ने कहा कि जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने बच्चों में भगवान की छवि देखी है। बच्चों की सेवा करने से भगवान खुश होते है। उन्होंने कहा कि वे अपने पिता के बताए मार्ग पर चलकर ब्रजवासियों की सेवा कर रही हैं। ब्रजवासियों की सेवा करने से उनके अन्तःकरण शान्ति मिलती है। बता दें कि जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की सुपुत्रियाँ डॉ विशाखा त्रिपाठी, डॉ श्यामा त्रिपाठी और डॉ कृष्णा त्रिपाठी जेकेपी की अध्यक्ष हैं। ये तीनों बेटियां श्री महाराज जी के दिखाये मार्ग का अनुसरण करते हुए उन्हीं की तरह निरन्तर सामाजिक उत्थान के कार्यों में पूरी तरह से समर्पित हैं।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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