आध्यात्म
भूलकर भी घर ना ले जाएं इस मंदिर का प्रसाद, वरना रास्ते में…
भारत देश में कई अनोखे मंदिर हैं, जिन्हें उनके होने वाले चमत्कारों के लिए जाना जाता है। उनमे से एक मंदिर है मेहंदीपुर बालाजी। जी हां, ये वही मंदिर है जहां लोग बहुत, पिशाच से छुटकारा पाने के लिए आते है।
गौरतलब है कि ये मंदिर राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है। मंदिर में स्थापित बालाजी की बायीं छाती में एक छोटा सा छेद है, जिससे लगातार जल निकलता है। लोगों कि मानें तो यह बालाजी का पसीना है। इस मंदिर में बालाजी के साथ-साथ प्रेतराज और भैरों महाराज भी विराजमान है। भैरों जी को कप्तान कहा जाता है।
इस मंदिर में प्रांगण में पहुंचते ही व्यक्ति के अंदर की बुरी शक्तियां जैसे भूत, प्रेत, पिशाच कांपने लगते हैं। मंदिर का नज़ारा पहली बार जाने वाले व्यक्ति के लिए बहुत ही भयानक होता है।
बालाजी मंदिर की खासियत है कि यहां बालाजी को लड्डू, प्रेतराज को चावल और भैरों को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कहते हैं कि बालाजी के प्रसाद के दो लड्डू खाते ही पीड़ित व्यक्ति के अंदर मौजूद भूत प्रेत छटपटाने लगता है और अजब-गजब हरकतें करने लगता है।
आपको बता दें, यहां पर चढ़ने वाले प्रसाद को दर्खावस्त और अर्जी कहते हैं। मंदिर में दर्खावस्त का प्रसाद लगने के बाद वहां से तुरंत निकलना होता है। जबकि अर्जी का प्रसाद लेते समय उसे पीछे की ओर फेंकना होता है।
इस प्रक्रिया में प्रसाद फेंकते समय पीछे की ओर नहीं देखना चाहिए। आमतौर पर मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद लोग प्रसाद लेकर घर आते हैं लेकिन मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में चढ़ाया गया प्रसाद को घर पर ले जाने का निषेध है। खासतौर पर प्रेतबाधा से जो लोग से परेशान हैं, उन्हें और उनके परिजनों को कोई भी मीठी चीज और प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार सुगंधित वस्तुएं और मिठाई आदि नकारात्मक शक्तियों को अधिक आकर्षित करती हैं। इसलिए इनके संबंध में स्थान और समय आदि का निर्देश दिया गया है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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