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निशाने पर अल्पसंख्यक, कठघरे में सरकार

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पिछले कुछ समय में पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में ईसाई समुदाय या उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया। इस तरह की घटनाओं की अचानक बाढ़ सी आ गई है। क्या यह केवल एक इत्तेफाक है या सोची समझी साजिश, यह एक विचारयोग्य प्रश्न है। पहले पश्चिम बंगाल में एक 71 वर्षीय नन के साथ गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया गया। फिर हिसार में एक चर्च में तोड़फोड़ कर वहां हिन्दू भगवान हनुमान की प्रतिमा रख दी गई। अब ताजा मामला नवी मुंबई और जबलपुर में हुआ। जबलपुर में चर्च में आयोजित एक धार्मिक जनसभा को निशाना बनाया गया। आरोप है कि इस जनसभा में धर्मांतरण किया जा रहा था और इसी के कारण हिन्दूवादी संगठनों ने यहां हमला किया।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही संसद में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की बात कहते हों लेकिन वर्तमान माहौल इसकी पुष्टि नहीं करता। विरोधी दल इसे लेकर कई बार सरकार पर निशाना भी साधते हैं। इससे कोई इन्कार भी नहीं कर सकता है कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ। लाख चेतावनियों के बावजूद हिन्दूवादी संगठनों के नेताओं का बड़बोलापन थमने का नाम नहीं ले रहा। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि सत्तारूढ़ दल का एक सांसद अपने धर्म के लोगों को संबोधित करते हुए उनसे ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत एक दिन उस सांसद को डपटते हुए ज्ञान देते हैं कि हमारी माताएं-बहनें बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं हैं, लेकिन दूसरे दिन वही मदर टेरेसा को धर्मांतरण कराने वाली ईसाई मिशनरी लॉबी से जोड़ देते हैं। उनका यह कहना कि मदर टेरेसा की सेवाओं का मूल मकसद हिंदुओं को ईसाई बनाना था, मदर टेरेसा के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने वाले हजारों लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाला तो है ही, बहुसंख्यक समुदाय के मन में ईसाई समाजसेवियों के लिए संदेह बढ़ाने वाला भी है। लोगों को एक वर्ग विशेष से ताल्लुक रखने वाले अभिनेताओं की फिल्मों का बहिष्कार करने की नसीहत दी जा रही है। यह बिगड़ते हालात देश को किस तरह ले जाएंगे, कोई नहीं जानता। सबसे खतरनाक बात यह है कि सरकार की ओर से इन कोशिशों पर अंकुश लगाने की कोई पहल नहीं दिख रही। जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा यह कहते हैं कि यदि भारत में आज महात्मा गांधी जीवित होते तो देश की मौजूदा दशा को देखकर चिंता से भर उठते तो यह निश्चित ही देश की छवि पर एक धब्बा है। यह देश के कर्णधारों के लिए नसीहत है कि अगर हम अपना घर ठीक रखेंगे तो बाहरी लोगों का मुंह अपने आप बंद हो जाएगा।

देश के वर्तमान हालात को लेकर ईसाई समुदाय में खौफ का माहौल है। इसे पंजाब के पूर्व डीजीपी जूलियो रिबेरो के लेख में आसानी से समझा जा सकता है। रिबेरो आतंकवाद को काबू करने में अहम रोल निभा चुके हैं। नब्बे के दशक में वह महाराष्ट्र में अंडरवर्ल्ड की कमर तोड़ने में भी कामयाब रहे थे। जूलियो रिबेरो ने एक अखबार में लिखा है- एक वो वक्त था जब 29 साल पहले पंजाब में आतंकवाद से निपटने के लिए एक ईसाई पुलिस अफसर को चुना गया था। पंजाब के उस दौर में हिंदुओं ने मेरा स्वागत किया था। आज मैं 86 साल की उम्र में अपने ही देश में बेगाना, अवांछित और खतरे में पड़ा हुआ महसूस कर रहा हूं…वही लोग जो मुझ पर भरोसा करते थे, आज दूसरे धर्म को मानने की वजह से मुझे निशाना बनाने को तैयार हैं। कम से कम हिंदू राष्ट्र के समर्थकों की नजर में मैं अब एक भारतीय नहीं हूं। पिछले साल मई में नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार बनने के बाद से जिस तरह सिलसिलेवार तरीके से एक छोटे और शांतिप्रिय समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, क्या वो सिर्फ संयोग है या कोई सोची समझी साजिश? ये बेहद दुख की बात है कि नफरत और अविश्वास के माहौल में इन चरमपंथी ताकतों के हौसले हद से ज्यादा बढ़ गए हैं।

वहीं इन घटनाओं को लेकर हिन्दू संगठनों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि आदिवासी और पिछड़े इलाकों में ईसाई मिशनरीज सेवा की आड़ में धर्मांतरण को अंजाम दे रही हैं और ईसाई धर्म को हिन्दू धर्म से श्रेष्ठ बता रही हैं। उनका कहना है कि देश में मंदिरों पर भी हमले की घटनाएं होती हैं लेकिन उनके लिए कभी अल्पसंख्यकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता। मीडिया भी मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर बताता है। ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन घटनाओं के पीछे छिपे सच को उजागर करे। उन लोगों को बेनकाब किया जाए जो इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति न की जाए बल्कि दोषियो को कठोर सजा देकर समाज को एक संदेश दिया जाए।

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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