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क्या आप भी झेल रहे है बवासीर की मार, पढ़ें ये खबर
बवासीर या पाइल्स को मेडिकल भाषा में हेमरॉइड्स के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें गुदा (ऐनस) के अंदरूनी और बाहरी क्षेत्र और मलाशय (रेक्टम) के निचले हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है।
लक्षण- पाइल्स वैसे तो बहुत अधिक गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन अगर वक्त पर इसका इलाज न किया जाए तो इसे नासूर बनने में अधिक दिन नहीं लगते। ये कुक लक्षण है जिनसे आप पाइल्स होने न होने का अंदाजा लगा सकते है।
– ऐनस के इर्द-गिर्द एक कठोर गांठ जैसी महसूस हो सकती है। इसमें ब्लड हो सकता है, जिसकी वजह से इनमें काफी दर्द होता है।
– टॉयलेट के बाद भी ऐसा महसूस होना कि पेट साफ नहीं हुआ है।
– मल त्याग के वक्त लाल चमकदार रक्त का आना।
-मल त्याग के वक्त म्यूकस का आना और दर्द का अहसास होना।
-ऐनस के आसपास खुजली होना और उस क्षेत्र का लाल और सूजन आ जाना।
रखें इसका भी ध्यान –
-कब्ज पाइल्स की सबसे प्रमुख वजह है। इससे बचने के लिए भरपूर हरी और रेशेदार सब्जियां खाएं, ताजे फल खाएं और खूब पानी पिएं। इससे मल सॉफ्ट होगा जिससे जोर नहीं लगाना पड़गा।
-सॉफ्ट और नमी वाले टॉयलेट पेपर का प्रयोग करें और पोंछने की बजाय पेपर से थपथपाएं।
-ढीले अंडरवेयर पहनें। टाइट अंडरवेयर की वजह से पाइल्स पर रगड़ आ सकती है, जिससे दिक्कत होगी।
-पाइल्स के मरीज को मल त्याग के बाद भी ऐसा लगता रहता है जैसे अभी और मल आना बाकी है। इसके लिए वे जोर लगाते हैं, जो नुकसानदायक हो सकता है। मल और आने की सेंसेशन उन्हें पाइल्स की वजह से ही होती है, जबकि असल में पेट साफ हो चुका होता है। जोर लगाने से बचें।
-कोशिश करें, टॉयलेट में एक से डेढ़ मिनट के भीतर फारिग होकर आ जाएं।
-टॉयलेट में बैठकर पेपर या कोई किताब न पढ़ें।
इलाज के तरीके-
ऐलोपैथी।
ऐलोपैथी में इलाज के मोटे तौर पर तीन तरीके हैं-
1. दवाओं से।
अगर पाइल्स ग्रेड 1 या ग्रेड 2 के हैं यानी आकार में छोटे हैं तो दवाओं से उन्हें ठीक किया जा सकता है। खाने और लगाने दोनों की ही दवाएं दी जाती हैं। पाइल्स की शुरुआती स्टेज में इसी तरीके से इलाज हो जाता है।
एनोवेट (Anovate), प्रॉक्टोसिडिल (Proctosedyl), फकटू (Faktu) पाइल्स पर लगाने की दवाएं हैं। इनमें से किसी एक दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। दवा को दिन में तीन बार लगाएं। अगर अंदरूनी पाइल्स है तो ट्यूब के साथ दिए गए ऐप्लिकेटर या उंगली की मदद से दवा लगाएं और हर बार दवा लगाने के बाद ऐप्लिकेटर को धो लें। इन दवाओं का लम्बे समय तक इस्तेमाल न करें। कोई भी दवा डॉक्टर से सलाह के बाद ही यूज करें।
इसमें खुजली होती है। खुजाने से मर्ज बढ़ जाता है। ऐसे में ऊपर बताई गई किसी एक क्रीम का इस्तेमाल करें।
2. अस्पताल में भर्ती हुए बिना इलाज।
अगर दवाओं से पाइल्स ठीक नहीं हो रहे हैं तो यह तरीके अपनाए जाते हैं। इसमें दो तकनीक चलन में हैं।
एंडोस्कोपिक स्केलरोथेरपी या इंजेक्शन थेरपी। इसमें मरीज को एक इंजेक्शन दिया जाता है। इससे मस्से सिकुड़ जाते हैं और ठीक हो जाते हैं। यह डे केयर प्रोसेस है। अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती।
एक बार इंजेक्शन देने से कुछ मस्से ठीक हो जाते हैं। महीने भर के बाद मरीज को दोबारा बुलाया जा सकता है और फिर उसे इंजेक्शन दिया जाता है। कितनी बार बुलाकर इंजेक्शन दिया जाएगा, यह पूरी तरह मरीज की दशा पर निर्भर करेगा।
यह तरीका भी ग्रेड 1 या ग्रेड 2 के पाइल्स में ही अपनाया जाता है।
खर्च। एक बार इंजेक्शन देने के प्रोसेस का खर्च करीब तीन हजार रुपये आता है।
रबर बैंड लीगेशन। इस प्रक्रिया में पाइल्स की जड़ों में बैंड लगाया जाता है। यह बैंड खून के संचरण को रोक देता है और मस्से सूख जाते हैं। कोई एनस्थीजिया नहीं दिया जाता। डे केयर प्रोसेस है। एक बार बैंडिंग करने से कुछ पाइल्स ठीक हो जाते हैं। अगर ठीक नहीं होते तो मरीज को दोबारा बुलाया जा सकता है। मरीज की कंडिशन के आधार पर उसे दो बार से ज्यादा भी इस प्रक्रिया को कराना पड़ सकता है।
खर्च: इसमें भी एक बार का खर्च तीन हजार रुपये के करीब ही बैठता है।
3. सर्जरी
सर्जरी में भी आजकल दो तरीके अपनाए जा रहे हैं।
हेमरॉयडेक्टमी। मस्से बहुत बड़े आकार के हैं और इलाज के दूसरे तरीके फेल हो चुके हैं तो परंपरागत तरीके से ओपन सर्जरी की जाती है, जिसमें अंदरूनी या बाहरी मस्सों को सर्जरी के जरिए काटकर निकालना पड़ता है। इस प्रक्रिया को हेमरॉयडेक्टमी कहते हैं। जनरल एनैस्थीजिया देकर सर्जरी की जाती है। सर्जरी के बाद इसमें मरीज को काफी दर्द का अनुभव होता है और रिकवर होने में भी थोड़ा ज्यादा वक्त लग जाता है।
एमआईपीएच। इस तरीके में मरीज को दर्द कम होता है, खून कम होता है और उसकी रिकवरी जल्दी हो जाती है। इसके अलावा इंफेक्शन के चांस भी कम होते हैं। इसे करने में 30 से 40 मिनट का वक्त लगता है। एनैस्थीजिया दिया जाता है। यह लोकल, रीजनल या जनरल भी हो सकता है। इस तरीके को स्टेपलर हेमरॉयडेक्टमी या स्टेपलर पाइल्स सर्जरी भी कहते हैं। इस में भी एक से दो दिन रुकना पड़ता है।
होम्योपैथी
होम्योपैथी में पाइल्स का बहुत अच्छा इलाज है और मरीज अगर दो से तीन महीने लगातार इलाज करा ले तो इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। होम्योपैथी में माना जाता है कि पाइल्स के सिर्फ 10 फीसदी मामलों में ही सर्जरी की जरूरत होती है। बाकी स्थितियों को दवा से ठीक किया जा सकता है। स्थिति के अनुसार नीचे दी गई दवाओं को अपने डॉक्टर की सलाह से लिया जा सकता है:-
आयुर्वेद
आयुर्वेद में मोटे तौर पर दो तरह से इलाज किया जाता है।
दवाओं से इलाज
अगर स्टेज 1 के पाइल्स हैं तो मरीज को पेट साफ करने की और मस्सों पर लगाने की दवाएं दी जाती हैं, सिकाई बताई जाती है और खानपान ठीक करने को कहा जाता है। इसी से यह समस्या ठीक हो जाती है। नीचे दी गई दवाओं में से कोई एक ली जा सकती है।
– पंचसकार चूर्ण या सुश्रुत चूर्ण एक चम्मच रात को गर्म दूध या गर्म पानी से रोजाना लें।
– अशोर्घिनी वटी की दो गोली सुबह-शाम खाने के बाद पानी से लें।
– खाने के बाद अभयारिष्ट या कुमारी आसव चार-चार चम्मच आधा कप पानी में मिलाकर लें।
– मस्सों पर लगाने के लिए सुश्रुत तेल आता है। इसका प्रयोग कर सकते हैं।
– प्रोटोस्कोप के जरिये डॉक्टर क्षार का एक लेप लगाते हैं, जिससे मस्से सूख जाते हैं।
– त्रिफला, इसबगोल भी सोते वक्त लिए जा सकते हैं।
– दर्द बढ़ जाए तो एक टब गर्म पानी में एक चुटकी पौटेशियम परमैंग्नेट डालकर सिकाई करें। यह सिकाई हर मल त्याग के बाद करें। पाइल्स कैसे भी हों, अगर सूजन और दर्द है तो गर्म पानी की सिकाई करनी चाहिए।
मुख्य समाचार
ब्यूटी प्रोडक्ट ही नहीं, ये 6 फूड्स भी गर्मी में टैनिंग से कर सकते हैं बचाव
गर्मी के मौसम में बाहर निकलना किसी चैलेंज से कम नहीं होता है। ऐसे में धूप के कारण त्वचा पर टैनिंग हो जाती है जिससे स्किन ड्राइ होने के साथ-साथ त्वचा की रंगत भी ख़राब होने लगती है। वहीं ज्यादातर लोग टैनिंग दूर करने के लिए एसपीएफ, सनस्क्रीन, स्क्रब जैसे कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स की मदद लेते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि डाइट में कुछ चीजों को शामिल करके भी टैनिंग को दूर रखा जा सकता है? अगर नहीं, तो बता दें कि कई चीजें ऐसी हैं, जिनका गर्मियों में सेवन करने से आपकी त्वचा को नेचुरल रूप से सूरज की किरणों से सुरक्षा मिलती है। आइए जानते हैं किन 6 चीजों को डाइट में शामिल करके आप टैनिंग से आसानी से बच सकते हैं।
तरबूज का करें सेवन:
गर्मी के मौसम में तरबूज का सेवन शरीर में पानी की कमी पूरी करके बॉडी को हाइड्रेट रखने में मदद करता है। साथ ही इसमें मौजूद लाइकोपीन नामक तत्व सनब्लॉक करके सूरज की किरणों से त्वचा को प्रोटेक्ट करने में कारगर होता है। वहीं तरबूज में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट गुण त्वचा को सूरज की यूवीए और यूवीबी किरणों से बचाने का काम करते हैं।
ब्लूबेरी की लें मदद:
ब्लूबेरी को विटामिन सी का अच्छा सोर्स माना जाता है। जो कि त्वचा की झुर्रियों को कम करके ग्लो लाने में सहायक होती है। साथ ही ब्लूबेरी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व डेड स्किन सेल्स को रिमूव करके नए सेल्स का निर्माण करते हैं, जिससे त्वचा पर टैनिंग नहीं हो पाती है।
गाजर और हरी सब्जी खाएं:
गाजर का सेवन करने से इसमें मौजूद बीटा कैरोटीन नामक पदार्थ शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है। जिससे त्वचा पर धूप का असर नहीं हो पाता है। वहीं हरी पत्तेदार सब्जियां भी विटामिन ए और एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती हैं।
सीड्स का करें सेवन:
त्वचा को टैनिंग से बचाने के लिए आप कुछ सीड्स का भी सेवन कर सकते हैं। बता दें कि, अखरोट, अलसी और चिया सीड्स ओमेगा 3 एसिड से भरपूर होते हैं। जो धूप से स्किन सेल्स को डैमेज होने से बचाते हैं और त्वचा पर टैनिंग नहीं होती है।
ग्रीन टी पीएं:
नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करके भी टैनिंग से बचा जा सकता है। ग्रीन टी बॉडी को डिटॉक्स करने के साथ-साथ स्किन की इलास्टिसिटी भी मेंटेन करने का काम करती है, जिससे त्वचा टैनिंग से दूर रहती है।
फूलगोभी को बनाएं डाइट का हिस्सा:
फूलगोभी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट गुण त्वचा के फ्री रेडिक्लस रिमूव करने का काम करते है। वहीं फूलगोभी अल्फा अमिनो एसिड और यूरोकैनिक एसिड से भरपूर होती है। जो त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों से प्रोटेक्ट करके टैनिंग होने से रोकने में मदद करते हैं।
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