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शरद, नीतीश के रुख से जद (यू) के ‘युनाइटेड’ रहने पर संशय

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पटना, 12 अगस्त (आईएएनएस)| बिहार में 20 महीनों तक सत्तारूढ़ रहे महागठबंधन के टूटने के बाद गठबंधन में शामिल जनता दल (युनाइटेड) के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव की चुप्पी के बाद यह कयास लगने लगा था कि अब जनता दल (युनाइटेड) ‘युनाइटेड’ नहीं रह पाएगा।

इसके बाद यादव के बिहार में जनसंवाद कार्यक्रम के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार निशाना साधने और बगावती तेवर से जद (यू) में टूट तय माना जा रहा है। जद (यू) ने भी पार्टी विरोधी नेताओं पर कारवाई प्रारंभ कर दी है।

बिहार में जद (यू) के अंदरखाने की राजनीति शरद के बिहार दौरे के बाद सतह पर है। शरद अपने बिहार के तीन दिवसीय तूफानी दौरे के क्रम में जनादेश के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए लगातार पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं।

इधर, जद (यू) के प्रवक्ता और नेता भी शरद के खिलाफ राजनीतिक रूप से हमलावर बने हुए हैं। ऐसे में पार्टी में बने दो धड़ों के बीच बयानबाजी का दौर चल रहा है।

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने भी शरद को जद (यू) का असली संस्थापक बताते हुए इस टूट को हवा दे दिया है।

ऐसे देखा भी जाए तो शरद के जनसंवाद कार्यक्रम में राजद के कार्यकर्ता बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। शरद भी जद (यू) में टूट को इशारों ही इशारों में स्वीकार करते हुए कहते हैं, एक सरकारी जनता दल है, जिसे नीतीश कुमार चला रहा हैं और एक मैं जनता दल (युनाइटेड) में हूं, जिसके साथ बिहार की जनता है।

नीतीश ने भी शुक्रवार को दिल्ली में कहा, पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। पार्टी ने आम सहमति से बिहार में भाजपा के साथ जाने का फैसला किया। वह (शरद यादव) अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।

इन बयानों के बाद स्पष्ट है कि जद (यू) में अब टूट तय है। जद (यू) ने शुक्रवार को राज्यसभा सदस्य अली अनवर को संसददीय दल से निलंबित कर दिया है। पार्टी के वरिष्ठ महासचिव क़े सी़ त्यागी ने कहा, कांग्रेस नीत संप्रग से जद (यू) द्वारा अपने रिश्ते खत्म करने के बावजूद विपक्षी दलों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए अली अनवर को संसदीय दल से निलंबित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि महागठबंधन टूटने के बाद भाजपा के साथ सरकार बनाने का विरोध सबसे पहले अली अनवर ने ही किया था।

जद (यू) ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 19 अगस्त को पटना में बुलाई है। पार्टी के एक नेता ने बताया कि इस बैठक में शरद यादव को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। त्यागी भी कहते हैं, शरद को 19 तारीख तक संयम बरतना चाहिए और मर्यादा में रहना चाहिए। शरद जिस रास्ते पर चले हैं, उस अंधेरी राह में उन्हें लालटेन का साथ मिला हुआ है। त्यागी का इशारा लालू के राजद की ओर था।

जद (यू) प्रवक्ता अजय आलोक कहते हैं कि शरद यादव अपने बेटे को राजनीति में ‘लांच’ करना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद, शरद यादव के पुत्र शांतनु को मधेपुरा से लोकसभा चुनाव में टिकट देंगे। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने की स्थिति में शरद राजद और लालू के पुत्रों के राजनीतिक अभिभावक के रूप में कार्य करेंगे।

इस स्थिति में यह तय माना जा रहा है कि नीतीश और शरद में अब दूरी काफी बढ़ गई है, जो कभी भी पार्टी के टूट के नतीजे के रूप में सामने आ सकती है।

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नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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