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शमीम बांदवी : मुशायरे से राजनीति तक का सफर

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मुलायम सिंह

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मुलायम सिंहसिर पर काली टोपी, गर्दन में साफा और आंखों पर चश्मा लगाए शमीम को देखकर कहना मुश्किल है कि वह शायर हैं या राजनेता। उनका अंदाज जरूर शायराना है। शमीम जी बांदा में अपने छोटे-से कार्यालय से शायरी और राजनीति- दोनों के इबारत लिख रहे हैं। क्या खता है मेरी, पता दीजिए

फिर जो चाहे वो, मुझको सजा दीजिए। राजनीति में आने के बाद व्यस्तता बढ़ गई है, दिन भर कई सारे लोग मिलने आते हैं, लेकिन शायरी के लिए वह समय निकाल ही लेते हैं।

शमीम कहते हैं कि उनका रिश्ता बांदा से 1964 से है, जब उनके पिताजी यहां आ गए थे। उसके बाद उनका पूरा परिवार बांदा आ गया। उनकी पूरी पढ़ाई बांदा से ही हुई है। उन्हें शायरी का शौक 1980 में लगा, जिसका एक कारण उनकी अच्छी आवाज थी, जो लोगों को बचपन से ही पसंद थी। आवाज की तारीफ सुनकर शमीम का रुझान शायरी की ओर बढ़ा।

शमीम अपनी शायरी का श्रेय ईश्वर और अपने गुरु प्रसिद्ध शायर हजरत कतील बांदवी को देते हैं। वह कहते हैं, “गुरुजी ने मुझे शायरी, गीत लिखना और कहना सिखाया। उन्होंने ही मुझे धार्मिक नाज शरीफ लिखना सिखाया।” इसके बाद उनके आसपास के मोहल्लों में उर्दू अदब की छोटी-छोटी नस्सितें हुआ करती थीं।

शमीम कहते हैं कि जब पहली बार उन्होंने नस्सितों में हिस्सा लिया तो लोगों को उनकी शायरी बहुत पसंद आई, जिसके बाद वह मोहल्लों के इन नस्सितों में भाग लेने लगे, और बाद में वह शमीम अहमद शमीम से शमीम बांदवी बन गए। धीरे-धीरे वह बड़े-बड़े मुशायरों के लिए इलाहाबाद, जौनपुर, लखनऊ, इंदौर, भोपाल और झांसी जाने लगे। इन मुशायरों ने उन्हें बहुत कामयाबी दिलाई।

शमीम बताते हैं कि 1991 में मुलायम सिंह अतर्रा आए थे, तो उनके लिए उन्होंने एक गीत लिखा और उसे पेश किया।  इंसाफ है तेरा मिस्ल जहांगीर मुलायम,  बदलेगा तू ही देश की तकदीर मुलायम। मुलायम को यह पंक्ति इतनी पसंद आई कि उन्होंने शमीम को सपा का जिला अध्यक्ष बना दिया।

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गुजरात बोर्ड परीक्षा में टॉपर रही छात्रा की ब्रेन हैमरेज से मौत, आए थे 99.70 फीसदी अंक

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अहमदाबाद। गुजरात बोर्ड की टॉपर हीर घेटिया की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई है। 11 मई को गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (GSEB) के नतीजे आए थे। हीर इसके टॉपर्स में से एक थी। उसके 99.70 फीसदी अंक आये थे। मैथ्स में उसके 100 में से 100 नंबर थे। उसे ब्रेन हैमरेज हुआ था। बीते महीने राजकोट के प्राइवेट अस्पताल में उसका ऑपरेशन हुआ था। ऑपरेशन के बाद उसे छुट्टी दे दी गई। वो घर चली गई, लेकिन क़रीब एक हफ़्ते पहले उसे सांस लेने में फिर दिक़्क़त होने लगी और दिल में भी हल्का दर्द होने लगा।

इसके बाद उसे अस्पताल में ICU में भर्ती कराया गया था। हाॅस्पिटल में एमआरआई कराने पर सामने आया कि हीर के दिमाग का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा काम नहीं कर रहा था। इसके बाद हीर को सीसीयू में भर्ती कराया गया। हालांकि डाॅक्टरों की लाख कोशिशों के बाद ही उसे बचाया नहीं जा सका और 15 मई को हीर ने दम तोड़ दिया। हीर की मौत के बाद परिवार ने मिसाल पेश करते हुए उसकी आंखों और शरीर को डोनेट करने का फैसला किया।

हीर के पिता ने कहा, “हीर एक डॉक्टर बनना चाहती थी। हमने उसका शरीर दान कर दिया ताकि भले ही वह डॉक्टर न बन सके लेकिन दूसरों की जान बचाने में मदद कर सकेगी।

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