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आध्यात्म

जगद्गुरु कृपालु परिषत् ने किया विधवा भोज का आयोजन

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वृन्दावन (उप्र)। वर्तमान समय में जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा निःस्वार्थ भाव से निरन्तर किये जा रहे समाज सेवा के अभूतपूर्व कार्यों से सम्पूर्ण विश्व आश्चर्यचकित है। जगद्गुरु कृपालु परिषत् की इस सेवा भावना के एकमात्र प्रेरक हैं-भक्तियोग रसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज, जिनके समक्ष काशी के 500 मूर्धन्य विद्वान नतमस्तक हो गये और यह स्वीकार किया कि “शास्त्रार्थ तो किसी मनुष्य से किया जाता है, ये मनुष्य तो हैं नहीं, इनसे हम क्या शास्त्रार्थ कर सकते हैं?”

अतः 14 जनवरी सन् 1957 को समस्त विद्वानों की सर्वसम्मति से पद्यप्रसूनोपहार द्वारा श्री महाराज जी को ‘जगद्गुरूत्तम‘ की पदवी से विभूषित किया गया। श्री महाराज जी ने न केवल दिव्य भगवदीय ज्ञान से सम्पूर्ण भूमण्डल को आलोकित किया, साथ ही अपने अकारण करुणा के स्वभाववश समाज के निर्धन एवं अभावग्रस्त जनों की सेवा कर परोपकार शब्द को एक ऐसी परिभाषा प्रदान की है, जिसे संसार युगों-युगों तक याद रखेगा।

श्री महाराज जी द्वारा श्रीधाम वृन्दावन को उपहार स्वरूप प्रदान किये गये प्रेम मंदिर प्रांगण में जगद्गुरु कृपालु परिषत्-श्यामा श्याम धाम द्वारा विशाल विधवा भोज आयोजित किया गया, जिसमें 4000 विधवायें सम्मिलित हुयीं। कार्यक्रम में पधारी विधवाओं का आदर भाव से स्वागत किया गया एवं उनके चरण-प्रक्षालन के उपरान्त उन्हें भोजन स्थल तक ले जाया गया।SONY DSC

जो विधवायें चलने में असमर्थ थीं, उन्हें व्हील चेयर पर बिठाकर भोजन स्थल तक लाने एवं ले जाने की व्यवस्था की गई। विधवाओं को सम्मानपूर्वक भोजन करवाया गया एवं नगद धनराशि दक्षिणा स्वरूप प्रदान की गई । विधवाओं को दैनिक उपयोग में आने वाली अनेकानेक वस्तुयें दान में दी गयीं। सम्पूर्ण कार्यक्रम जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षाओं सुश्री डा. विशाखा त्रिपाठी, सुश्री डा. श्यामा त्रिपाठी एवं सुश्री डा. कृष्णा त्रिपाठी के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ।

जगद्गुरु कृपालु परिषत् के बरसाना स्थित केन्द्र रँगीली महल में 15 नवम्बर को साधु भोज एवं 16 नवम्बर को विधवा भोज का आयोजन किया जायेगा।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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