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मुख्य समाचार

व्यापमं घोटाले में हो रही मौतों से उपजे सवाल

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भोपाल| मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले के आरोपियों की हो रही संदिग्ध मौतों ने उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में हो रही मौतों की याद ताजा कर दी है। दोनों ही घोटालों के तार सत्ताधारियों, राजनेताओं और नौकरशाहों से जुड़े रहे हैं, इसलिए मौतों को लेकर सवाल उठना लाजिमी भी है।

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकार के दौरान 10 हजार करोड़ का एनआरएचएम घोटाले का खुलासा हुआ था। खुलासा भी उसी कार्यकाल में हो गया था, जिसमें तत्कालीन महिला कल्याण मंत्री बाबूसिंह कुश्वाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा को पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस दौरान तमाम अधिकारियों पर उंगली उठी थी, कुशवाहा तो अब तक जेल में हैं, इस मामले के छह आरोपियों की अब तक मौत भी हो चुकी है। इस मामले का खुलासा दो स्वास्थ्य अधिकारियों डा. विनोद आर्य और डा. बी. पी. सिंह की हत्या के बाद हुआ था।

बीते पांच वर्षो में उप्र के एनआरएचएम घोटाले में जिन छह अधिकारियों की मौत हुई है, उनमें तीन मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी, एक उप मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी, एक परियोजना अधिकारी और एक लिपिक हैं। इनमें से दो की हत्या, एक की जेल में मौत, एक की पुलिस हिरासत में मौत हुई, जबकि एक हादसे का शिकार हुआ और अन्य मृत अवस्था में मिला। फिलहाल पूरा मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास है।

इसी तरह मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले में शामिल लोगों की भी संदिग्ध हालात में मौतों का सिलसिला बना हुआ है। कोई जेल में बीमार होकर मर रहा है, तो कोई हादसे का शिकार हो रहा है तो कोई आत्महत्या करने जैसा कदम उठा रहा है। मौतों की संख्या को लेकर सरकार, सत्ताधारी दल और विपक्ष की राय अलग-अलग है, लेकिन सभी यही मानते हैं कि व्यापमं घोटाले के आरोपियों की मौत हुई है।

विपक्ष और मीडिया इस मामले में मारे गए लोगों की संख्या 42 बताती है, जबकि सरकार व्यापमं घोटाले का प्रकरण दर्ज होने के बाद 14 और कुल 25 मौतें (11 मौतें प्रकरण दर्ज होने की तारीख सात जुलाई 2013 से पहले) ही मानती है।

व्यापमं घोटाले की जांच उच्च न्यायालय के निर्देश पर विशेष जांच दल (एसआईटी) की देखरेख में विशेष कार्य बल (एसटीएफ) कर रहा है। इस मामले में पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा से लेकर नौकरशाह, राजनैतिक दलों से जुड़े लोग जेल में हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोगों तक पर उंगली उठ चुकी है।

कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह इस मामले की सीबीआई से जांच कराने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। इसके अलावा उन्होंने एसआईटी और एसटीएफ की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।

वहीं मुख्यमंत्री चौहान लगातार यही कहते आ रहे हैं कि उच्च न्यायालय की निगरानी में जांच चल रही है। सीबीआई जांच को न्यायालय भी नकार चुका है। वह अपनी सरकार का बचाव करते हुए कहते हैं कि उनके कार्यकाल में ही व्यापमं घोटाले का खुलासा हुआ और आरोपी जेल में हैं। इसके साथ ही व्यापमं घोटाले में हो रही मौतों के मामले में पार्टी भी चौहान के बचाव में आई है, वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने एसआईटी को ज्ञापन सौंपकर मौतों की जांच की मांग कर डाली है। उनका कहना है कि कांग्रेस जनता के बीच भ्रम फैला रही है, लिहाजा मौता की संख्या की जांच होनी चाहिए।

विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है कि वर्तमान सरकार से जुड़े कई लोग इस घोटाले में लिप्त हैं, सरकार उन्हें बचाना चाहती है। सिंह को व्यापमं घोटाले से जुड़े लोगों की रहस्यमय मौतों के पीछे साजिश की बू आती है। उनका कहना है कि यही कारण है कि उन कड़ियों को तोड़ा जा रहा है, जो रसूखदारों तक पहुंचने में मददगार हो सकते हैं। वे सवाल करते हैं कि जब केंद्र में संप्रग सरकार थी तब हर मामले की सीबीआई से जांच की मांग करने वाली भाजपा आखिर इस महाघोटाले की सीबीआई से जांच कराने से क्यों कतरा रही है।

जनता दल (यूनाइटेड) के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद यादव ने कहा कि व्यापमं घोटाले को सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए, क्योंकि इस मामले के आरोपी अंतर्राज्यीय हैं। इस स्थिति में राज्य की एसटीएफ दूसरे राज्यों में जाकर न तो कोई कार्रवाई कर पा रही है और न ही बड़े आरोपियों तक वह पहुंच पा रही है।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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