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लखनऊ पुलिस का नया कारनामा, हत्या को बता दिया एक्सीडेंट
लखनऊ। उप्र सरकार के मुखिया अखिलेश यादव लाख दावा करते रहे कि उनकी सरकार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से चाक चौबंद है लेकिन राजधानी लखनऊ की पुलिस उनके इस दावे को तार-तार करने में जुटी है। शर्मनाक तो यह है कि हर मामले में खुद को दस में से दस नंबर देने वाली लखनऊ पुलिस हत्या जैसे जघन्य अपराध को एक्सीडेंट का मामला बताकर राजधानी में होने वाले लगातार अपराधों पर पर्दा डालने का प्रयत्न रही है।
बात हो रही है पंच सितारा होटल में एक्जीक्यूटिव पद पर काम करने वाले नमन वर्मा की दो दिन पहले हुई मौत की। विभूतिखंड थाने के एसओ ओमप्रकाश तिवारी ने जहां इस हत्या को पुल पर से कूदकर आत्महत्या का मामला बताया तो मौके पर पहुंचे दरोगा सुजीत उपाध्याय ने हत्या को एक्सीडेंट बता डाला मगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस के कार्यशैली की पूरी पोल खोल कर रख दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर में दो गोलियां लगने की बात कही गई। अब लखनऊ पुलिस को इस बात का जवाब नहीं सूझ रहा है कि यदि नमन वर्मा का एक्सीडेंट हुआ या उसने आत्महत्या की तो उसके शरीर से दो गोलियां कैसे बरामद हो गईं वो भी गर्दन और कांख के नीचे।
पुलिस की कार्यशैली से उठते सवाल
सवाल नं.-1: जिस जगह से नमन वर्मा का मृत शरीर मिला वहां वह पहुंचा कैसे जबकि कार्यस्थल से वह अपनी बाइक पल्सर पर बैठकर निकला था।
सवाल नं.-2: अगर नमन अपनी पल्सर बाइक से वहाँ पहुंचा तो उसकी बाइक कहाँ गयी?
सवाल नं.-3: नमन के खून के निशान पुल के ऊपर मिले और बॉडी पुल के नीचे, कैसे?
सवाल नं.-4: जब पुलिस पहुंची तो उसने पूरी तरह से मौका-ए-वारदात की जांच क्यों नहीं की?
सवाल नं.-5पुलिस ने हादसा बताकर आनन- फानन में डेड बॉडी का पंचनामा क्यों कर दिया? जबकि नियम है की पुलिस को डेड बॉडी की पूरी तरह से जांच करनी चाहिए।
सवाल नं.-6: अगर पुलिस ने डेड बॉडी की पूरी तरह से जांच की थी तो उन्हें गोली के निशान क्यों नहीं दिखे?
सवाल नं.-7: मौका-ए-वारदात से यूपी 41 नंबर की इनोवा गाड़ी होने के मामले की जांच पुलिस ने क्यों नहीं की?
सवाल नं.-8: जिस लड़की माही से आखिरी बार नमन ने मोबाइल पर बात की थी उसकी पूरी पड़ताल पुलिस ने क्यों नहीं की?
सवाल नं.-9: सुमित नामके लड़के के बयान पर पुलिस क्यों नहीं संजीदा है?
क्या कहना है नमन के परिजनों का
मृतक नमन वर्मा के परिजनों ने मधुरिमा रेस्टोरेंट से लेकर होटल रेनेसां जहां नमन काम करता था, वहां तक के सीसीटीवी फुटेज निकालकर हत्यारों तक पहुंचने की मांग की है, परिजनों का कहना है कि पुलिस कुछ नहीं कर रही है। दीपावली के दिन होटल में कुछ लोगों से व्यवस्था को लेकर कहासुनी हो गई थी, पुलिस को इस पहलू पर भी जांच करनी चाहिए।
उपरोक्त सारे सवालों को लेकर जब पुलिस उपाधीक्षक गोमती नगर से बात की गयी तो उन्होंने वही पुलिस का स्टैंडर्ड जवाब मामले की जांच की जा रही है, जल्द ही नतीजा सामने आएगा, कहकर किनारा कस लिया। वैस पुलिस लाख कहे कि टीम बनाकर जांच की जा रही है या मामले के हर पहलू पर पुलिस की निगाह है लेकिन जिस तरह से पिछले दो दिनों से राजधानी की तथाकथित काबिल पुलिस का रवैया देखने को मिल रहा है उससे साफ जाहिर है कि राजधानी में आए दिन होने वाली तमाम आपराधिक व जघन्य घटनाओं का जो हश्र होता आया है वही हश्र इस मामले में भी देखने को मिलेगा।
नेशनल
कोर्ट ने बृजभूषण से पूछा- आप गलती मानते हैं, बोले- सवाल ही उठता, मेरे पास बेगुनाही के सारे सबूत
नई दिल्ली। महिला पहलवानों से यौन शोषण मामले में भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह मंगलवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने उन्हें उनके खिलाफ तय किए आरोप पढ़कर सुनाए। इसके बाद कोर्ट ने बृजभूषण से पूछा कि आप अपने ऊपर लगाए गए आरोप स्वीकार करते हैं? इस पर बृजभूषण ने कहा कि गलती की ही नहीं मानने का सवाल ही नहीं उठता। इस दौरान कुश्ती संघ के पूर्व सहायक सचिव विनोद तोमर ने भी स्वयं को बेकसूर बताया। तोमर ने कहा कि हमनें कभी भी किसी पहलवान को घर पर बुलाकर न तो डांटा है और न ही धमकाया है। सभी आरोप झूठे हैं।
मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या आरोपों के कारण उन्हें चुनावी टिकट की कीमत चुकानी पड़ी, इस पर बृजभूषण सिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मेरे बेटे को टिकट मिला है।” बता दें कि उत्तर प्रदेश से छह बार सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। पार्टी उनकी बजाय, उनके बेटे करण भूषण सिंह को कैसरगंज सीट से टिकट दिया है, जिसका बृजभूषण तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
बृजभूषण सिंह ने सीसीटीवी रिकाॅर्ड और दस्तावेजों से जुड़े अन्य विवरण मांगने के लिए बृजभूषण सिंह ने आवेदन दायर किया है। उनके वकील ने कहा कि उनके दौरे आधिकारिक थे। मैं विदेश में उसी होटल में कभी नहीं ठहरा जहां खिलाड़ी स्टे करते थे। वहीं दिल्ली कार्यालय की घटनाओं के दौरान भी मैं दिल्ली में नहीं था। बता दें कि कोर्ट इस मामले में जल्द ही अपना फैसला सुना सकता है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एमपी-एमएलए मामलों में लंबी तारीखें नहीं दी जाएं। हम 10 दिन से अधिक की तारीख नहीं दे सकते।
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