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यूपी ने मुझे गोद लिया, मैं मां-बाप को छोडऩे वाला बेटा नहीं : पीएम मोदी

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हरदोई/बाराबंकी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण के मतदान से पहले राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को बाराबंकी में विजय शंखनाद रैली के दौरान कहा कि यूपी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में तेज आंधी चल रही है। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ने थानों को सपा का कार्यालय बना दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने बाराबंकी सदर के पल्हरी क्षेत्र में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने सपा पर हमला करते हुए कहा कि अखिलेश पांच साल पहले यूपी की जनता ने पलक पावड़े बिछाकर आपका स्वागत किया था। आपकी उम्र कम थी और यहां के नौजवानों को उम्मीद थी कि आप उनकी भलाई के लिए काम करेंगे।

उन्होंने कहा कि 11 मार्च के बाद जनता जब आपको घर भेज देगी तो बैठकर हिसाब लगाइएगा कि पांच साल में आपने इन लोगों की भलाई के लिए क्या काम किए। हाल यह है कि शिक्षकों के 50 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। ऐसे में गरीबों के बच्चे पढऩे के लिए कहां जाएं।

इससे पहले हरदोई में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी के निशाने पर सिर्फ सपा और अखिलेश ही रहे। सीएसएन डिग्री कॉलेज के ग्राउंड में युवाओं की भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “जिस यूपी ने मुझे गोद लिया है, जो मेरा माई बाप है, मैं वादा करता हूं कि सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग में किसानों के कर्ज के माफी का फैसला होगा।”

प्रधानमंत्री ने मेहनतकश किसानों और हुनरमंद कालीन कारीगरों को सलाम किया। यूपी में गंगा-जमुना की धरती, उपजाऊ भूमि और सामथ्र्य है, फिर भी गरीबी जाने का नाम नहीं ले रही। न तो यहां के लोगों में कमी है, न पैसों का संकट है, न संसाधन कम हैं। सामथ्र्य और संकल्प भी है। कमी है तो यहां की सरकारों के इरादों में।

मोदी ने कहा, “यूपी ने मुझे इतनी ताकत दी कि देश में स्थिर सरकार मिली। एक गरीब मां का बेटा देश का पीएम बन सका।”

उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण यूपी की धरती में पैदा हुए और गुजरात में कर्मभूमि बनाई। मैंने गुजरात में जन्म दिया और मुझे यूपी ने गोद लिया है। यह मेरी कर्मभूमि है, मेरा माई-बाप है। मैं ऐसा बेटा नहीं हूं, जो यूपी छोड़ दूं। गोद लिया बेटा भी माई-बाप की चिंता करेगा और यहां की स्थिति बदलने का कर्तव्य निभाएगा।

उन्होंने जनता से कहा, “मैं विश्वास दिलाता हूं कि पांच साल के भीतर जिन समस्याओं से आप जूझ रहे हैं उसके रास्ते खोजकर दे दूंगा।”

प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए प्रधानमंत्री ने सपा के नारे ‘काम बोलता है’ पर तंज कसते हुए कहा, यूपी में कट्टा राज चलता है। प्रदेश में अगर शांति व्यवस्था कायम रखनी है तो कानून व्यवस्था का जिम्मेदारी से पालन होना चाहिए। इसमें राजनित नहीं होनी चाहिए। देश में सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याएं यूपी में होती हैं। अब ये उनका काम बोलता है या कारनामा।

उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा गैंगरेप की घटनाएं यूपी में होती हैं। यूपी की सरकार बताए, आप तो परिवार वाले हैं, परिवारवाद वाले हैं। परिवार का हर व्यक्ति फले-फूले इसके लिए हमेशा लगे रहते हैं। फिर इन्हें यूपी अपना परिवार क्यों नहीं लगता।

मोदी ने कहा कि अपराध के बाद ऐसी बयानबाजी होती है कि हर आंख से पानी निकाल आए। यूपी में गैर कानूनी हथियारों की फायरिंग से तीन हजार हत्याएं होती हैं। आखिर यह कट्टा कौन बनाता है, कारोबारी और इन्हें बारूद बेचने वाला कौन है? पुलिस भी कुछ नहीं करती और सरकार भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है।

नेशनल

लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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