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‘मोदी-ओबामा मुलाकात से भारत में अमेरिकियों की रुचि बढ़ी’

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नई दिल्ली| क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के सितंबर में हुए शिखर सम्मेलन के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है, जिसमें पिछले कई साल से ठहराव देखा जा रहा था? विशेषज्ञों के मुताबिक रिश्ते में आमूलचूल बदलाव तो नहीं आया, लेकिन अमेरिकी कारोबारियों की भारत में रुचि जरूर बढ़ी है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि उन्हें मोदी की अमेरिका यात्रा का कोई स्पष्ट फायदा नजर नहीं आता है।

पूर्व विदेश सचिव ललित मानसिंह ने शिकागो विश्वविद्यालय केंद्र में सोमवार शाम ‘मोदी-ओबामा शिखर सम्मेलन : भारत-अमेरिका संबंध में आमूलचूल परिवर्तन’ विषय पर आयोजित एक पैनल चर्चा में अपने संबोधन में कहा कि मोदी की यात्रा से एक परिपाटी का निर्माण हुआ है और गत चार साल में रिश्तों में आई गिरावट में सुधार हुआ है।

इंडो-अमेरिकन फ्रेंडशिप एसोसिएशन की साझेदारी में हुए इस सम्मेलन में मानसिंह ने कहा, “इस यात्रा से द्विपक्षीय संबंध और भारत के बारे में अमेरिकी कारोबारी माहौल में सरगर्मी आई है।” उन्होंने कहा कि मोदी की यात्रा के बाद करीब 40 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर हुए हैं।

मानसिंह ने कहा कि दोनों देशों के संबंधों का मील का पत्थर था असैन्य परमाणु समझौता। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच जून 2005 में हुआ था।

विदेश मामलों पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष थरूर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि गत छह महीने में ओबामा और मोदी के संबंध से कुछ खास या अभूतपूर्व हासिल हुआ है।

उन्होंने कहा कि अमेरिका मोदी के बड़े-बड़े बयानों से प्रभावित नहीं हुआ है। वह बयान नहीं बल्कि काम चाहता है। यही चीज हम यहां भारत में भी चाहते हैं और इस पर उन्हें कुछ खास दिखाई नहीं पड़ता।

थरूर ने कहा, “जब वह होगा, तभी संबंधों में विशेष बदलाव आएगा।”

वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा सदस्य एच.के. दुआ ने कहा कि अगले वर्ष गणतंत्र दिवस परेड समारोह में हिस्सा लेने के लिए बराक ओबामा को भेजा गया आमंत्रण भले ही एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति भारत से भी कुछ चाहेंगे।

दुआ ने कहा, “ओबामा भारत से जलवायु परिवर्तन, रक्षा क्षेत्र में निवेश के मुद्दे पर दरियादिली दिखाए जाने की उम्मीद करेंगे।”

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अर्थशास्त्री राजीव कुमार ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध तभी सुधरेगा, जब कारोबारी संबंध सुधरेगा। उन्होंने कहा कि भारत को परमाणु दायित्व कानून को अधिक उदार बनाना होगा।

लेखक गुरुचरण दास ने कहा कि भारत को कारोबार करने की सुविधा में अपना स्थान बेहतर करना चाहिए। इससे संबंध अधिक मजबूत होगा।

इस आयोजन का संचालन किया पूर्व राजनयिक सुरेंद्र कुमार ने, जो इंडो-अमेरिकन फ्रेंडशिप एसोसिएशन के सह-संस्थापक हैं।

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जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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