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मुस्लिम धर्मगुरुओं की बॉम्बे हाईकोर्ट को सलाह, पहले शरिया कानून पढ़े
हाजी अली में प्रवेश पर बॉम्बे हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद बिफरे मुस्लिम धर्मगुरू
नई दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई की हाजी अली दरगाह में महिलाओं के जाने की पाबंदी को गैरकानूनी करार देते हुए हटा दिया है। शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के ऐतिहासिक फैसले के बाद कोर्ट के इस फैसले को भी तमाम महिला संगठनों ने ऐतिहासिक बताया है। दूसरी तरफ कोर्ट के इस फैसले पर दरगाह प्रबंधन और कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। ऑल इंडिया इमाम असोसिएशन (कुल हिन्द इमाम) के प्रेजिडेंट मौलाना साजिद रशीदी ने तो कोर्ट को शरिया कानून पढ़ने तक की सलाह दे डाली है। दरगाह ट्रस्ट इस मामले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट जाने वाला है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाबंदी हटाते हुए दरगाह जाने वाली महिलाओं की सुरक्षा राज्य सरकार को सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने संविधान का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा कि दरगाह में जहां तक पुरुषों को जाने का अधिकार है वहां तक महिलाएं भी जाएंगी। उधर मौलाना रशीदी ने कहा, ये बहुत ही गलत फैसला है ऐसा लगता है कि कोर्ट ने शरिया कानून पढ़े बिना फैसला ले लिया है।
उन्होंने आगे कहा कि शरिया कानून के मुताबिक औरतों के लिए कुछ हदें तय की गई हैं, लोगों को इसमें दखल देने से पहले इसे जन लेना चाहिए। रशीदी ने आगे कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक खेल बना दिया गया है। बता दें कि जस्टिस वीएम कनाडे और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता जाकिया सोमन, नूरजहां सफिया नियाज की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव मोरे ने हाई कोर्ट में पैरवी की। नियाज ने अगस्त 2014 में अदालत में याचिका दायर कर यह मामला उठाया था।
फिलहाल फैसले पर छह हफ्तों की रोक
गौरतलब है कि दरगाह ट्रस्ट हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना तय है। ट्रस्ट ने ऊपरी अदालत में अपील के लिए 8 हफ्ते का समय मांगा था। जिस पर हाई कोर्ट 6 हफ्ते का समय दिया है। इसके साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने छह हफ्ते के लिए अपने आदेश पर भी रोक लगा दी है। यानी फिलहाल छह हफ्ते तक महिलाओं को दरगाह के गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। याचिकाकर्ता के वकील राजू मोरे ने अदालत के फैसले की जानकारी देते हुए कहा, ‘कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटा लिया है। अदालत ने इसे असंवैधानिक माना है। दरगाह ट्रस्ट ने कहा है कि वो हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।’
कई को हुई ख़ुशी कुछ को मिला गम
कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जाकिया सोमन ने खुशी जताते हुए कहा कि यह मुस्लिम महिलाओं को न्याय की ओर एक कदम है, वहीं भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। जबकि एमआईएम के हाजी रफत ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए था, लेकिन अब जब उसने फैसला दिया है तो हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। भूमाता बिग्रेड की नेता तृप्ति देसाई ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोर्ट ने महिलाओं को समानता का अधिकार दिया है।
क्या है ट्रस्ट का कहना
गौरतलब है कि दरगाह के ट्रस्टी ने वर्ष 2011 में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी, जिसके खिलाफ भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन संगठन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर करके महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटाने की मांग की थी, लेकिन ट्रस्टी ने इसे इस्लाम के खिलाफ बताकर महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी कायम रखा।
दरगाह ट्रस्ट का कहना है कि ये प्रतिबंध इस्लाम का अभिन्न अंग है और महिलाओं को पुरुष संतों की कब्रों को छूने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अगर ऐसा होता है और महिलाएं दरगाह के भीतर प्रवेश करती हैं तो यह ‘पाप’ होगा। उधर राज्य सरकार ने कोर्ट से कहा कि महिलाओं को दरगाह के भीतरी गर्भगृह में प्रवेश करने से तभी रोका जाना चाहिए अगर यह कुरान में निहित है।
नेशनल
जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।
इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।
चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।
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