मुख्य समाचार
मुद्दों की तलाश में भटकती कांग्रेस
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के ग्रामीण इलाकों में एक कहावत प्रचलित है, सूप बोले तो बोले, चलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद। आईपीएल के पूर्व व दागी कमिश्नर ललित मोदी की कथित सहायता को लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का इस्तीफा मांगने वाली कांग्रेस पर उक्त कहावत सटीक बैठती है। दुनिया जानती है इसलिए मैं उस बात को दोहराना नहीं चाहता कि ललित मोदी की मदद सुषमा स्वराज ने नियमों के दायरे में रहकर मानवीय आधार पर की थी। सवाल यह उठता है कि सुषमा स्वराज को बिना किसी ठोस वजह के दोषी ठहराने वाले इतना क्यों गिर गए कि ललित मोदी की तुलना दाउद इब्राहिम से कर डाली?
आरोप का जवाब आरोप नहीं होता फिर भी सवाल समीचीन है कि क्या ललित मोदी हजारों लोगों की मौत व लाखों लोगों पर दुष्प्रभाव छोड़ने वाले भोपाल गैस कांड के दोषी वारेन एंडरसन से भी ज्यादा बड़े दोषी हैं जिसको 1984 की तत्कालीन अर्जुन सिंह की कांग्रेसी राज्य सरकार एवं राजीव गांधी की केंद्रीय कांग्रेसी सरकार ने आसानी ने निकल जाने दिया साथ ही उसे मरते दम तक भारत वापस नहीं ला सके?
दूसरा सवाल, क्या ललित मोदी पूरे देश की राजनीतिक धारा को मोड़ने वाले बोफोर्स कांड के दोषी ओटावियो क्वात्रोची से भी बड़े दोषी हैं जिसे केंद्र की कांग्रेसी नरसिंहराव सरकार के रहते देश से भागने का मौका दिया गया? क्या ललित मोदी पुरूलिया कांड के दोषी किम डेवी से भी बड़े दोषी है जिसे भी कांग्रेस की सरकार रहते ही देश छोड़ने का मौका दिया गया? एक सवाल और कि यूपीए सरकार में केरल के दो मछुआरों की हत्या के दोषी इटली की नौसेना के दो अधिकारियों को छुट्टी मनाने के लिए स्वदेश क्यों जाने दिया गया था?
इसके अलावा भी सवाल ढेरों हैं और कांग्रेस के पास जवाब नहीं मिलेगा लेकिन पहले भी कह चुका हूं कि आरोप का जवाब आरोप नहीं होता। ललित मोदी इस देश के गुनाहगार हैं तो उन्हें देश की सक्षम एजेंसियों के सामने खड़ा किया जाना चाहिए, सुषमा स्वराज ने यदि देश की एकता, अखंडता व संप्रभुता को खतरे में डालकर कोई नियम विरूद्ध कार्य किया है तो जरूर उनके विरूद्ध कार्यवाही करनी चाहिए लेकिन सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना कहां तक जायज है?
इस देश में मुद्दों की कमी नहीं है, कांग्रेस को वास्तविक मुद्दों की तलाश कर सरकार को घेरने व सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। सबसे ज्यादा तरस तो भारत की मीडिया पर आता है, टीआरपी बढ़ाने की होड़ में वे इस कदर गिर गए हैं कि उन्हें भारत की जनता की अन्य परेशानियां ही नहीं दिखाई दे रही हैं। मीडिया को यह समझना होगा कि हर सनसनीखेज जानकारी खबर नहीं होती और न ही ऐसी खबरों से उनकी टीआरपी बढ़ेगी।
हालांकि इस मुद्दे पर कांग्रेस को संपूर्ण विपक्ष का साथ नहीं मिला, सपा का समर्थन स्वागतयोग्य है। मुद्दों व राजनीतिक मित्रों की तलाश में भटकती कांग्रेस को सही व सटीक मुद्दों को खोजकर सरकार पर हमलावर होना चाहिए इस तरह के बच्चों जैसे बर्ताव से न तो वह अपनी पार्टी का भला कर सकती है और न ही इस देश का।
नेशनल
दिल्ली के स्कूलों की जांच में कुछ नहीं मिला, पुलिस बोली- ई-मेल्स और कॉल्स फर्जी
नई दिल्ली। दिल्ली के स्कूलों में बम होने के धमकी भरे ईमेल के बाद जांच की गई तो वहां कुछ नहीं मिला। पुलिस अधिकारियों ने भी इसे होक्स ईमेल बताया है, लेकिन उन्होंने कहा कि चेकिंग जारी रहेगी। गृह मंत्रालय ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह फर्जी कॉल है। दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां प्रोटोकॉल के मुताबिक जरूरी कदम उठा रही हैं।
वहीं दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली के कुछ स्कूलों को बम की धमकी वाले ई-मेल मिले। दिल्ली पुलिस ने प्रोटोकॉल के तहत ऐसे सभी स्कूलों की गहन जांच की। कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिल। ऐसा प्रतीत होता है कि ये कॉल्स फर्जी हैं। हम जनता से अनुरोध करते हैं कि वे घबराएं नहीं और शांति बनाए रखें।
स्कूल में आए इस धमकी भरे ईमेल के बाद कई स्कूलों ने बच्चों की जल्द छुट्टी का मैसेज पेरेंट्स को भेज दिया, तो कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल जाकर पहले ही ले आए। इसके अलावा कई स्कूल के प्रिंसिपल ने पेरेंट्स को मैसेज भेज कर कहा कि घबराने की बात नहीं है।
नोएडा में इंद्रप्रस्थ ग्लोबल स्कूल (आईपीजीएस) की प्रिंसिपल निकिता तोमर मान ने बताया, “मैं लोगों से आग्रह करूंगी कि वे अनावश्यक घबराहट पैदा न करें और इस स्थिति को एक परिपक्व वयस्क के रूप में लें। दिल्ली-एनसीआर के जिन स्कूलों को धमकियां मिलीं, उन्हें खाली करा लिया गया है और हमारे सहित बाकी स्कूल सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। कोई धमकी भरा संदेश प्राप्त नहीं हुआ है।”
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