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मंहगाई, सब्सिडी और सांसदों की थाली

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क्या अनाज-अनाज में फर्क होता है? शायद नहीं, लेकिन अनाज से बने खाने और उसके दाम में फर्क होता है, बहुत होता है.. 75 प्रतिशत तक होता है। जनता को बाजार दाम पर महंगी थाली का इंतजाम करना पड़ता है, वहीं उसके द्वारा लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर में भेजे गए माननीयों को लजीज थाली पर इतनी सब्सिडी मिलती है कि सुनकर पेट भर जाता है। यदि आरटीआई से मामला नहीं खुलता तो न जाने कब तक डकार भी नहीं लेते। आश्चर्य है कि मंहगाई और सब्सिडी पर मंथन करने वाली संसद के सदस्य ही अपने और लोक के बीच निवालों में ऐसा फर्क करते हैं। ऐसे में उनसे इंसाफ की उम्मीद कैसे की जा सकती है।

यकीनन जो सच सामने आया है, वह बेहद कड़वा है। जहां आम आदमी महंगी दाल खाने को मजबूर है, वहीं सांसदों को माली मदद कहें या सरकारी इमदाद कि 13 रुपये 11 पैसे लागत वाली फ्राइड दाल केवल 4 रुपये में मिलती है। सब्जियां महज 5 रुपये में। मसाला डोसा 6 रुपये में। फ्राइड फिश और चिप्स 25 रुपये में। मटन कटलेट 18 रुपये में। मटन करी 20 रुपये में और 99.04 रुपये की नॉनवेज थाली सिर्फ 33 रुपये में।

यदि सांसदों की थाली में सरकारी इमदाद का जोड़-घटाव किया जाए तो मदद का आंकड़ा कम से कम 63 प्रतिशत और अधिक से अधिक 75 प्रतिशत तक जा पहुंचता है।

इस सच का दूसरा पहलू भी है। आम आदमी की जरूरत की गैस अब कोटा सिस्टम में चली गई है। सालभर में केवल 12 सरकारी इमदाद वाले सिलेंडर एक परिवार के लिए हैं। उस पर भी लोकलुभावन विज्ञापन, प्रधानमंत्री के प्रेरक उद्बोधन और सरकारी इमदाद यानी सब्सिडी छोड़ने की गुजारिश।

यकीनन, यही हिन्दुस्तान की खासियत है कि अवाम इतनी भावुक और मेहरबान हुई कि एक झटके में साढ़े 5 लाख लोगों से ज्यादा ने गैस पर सब्सिडी छोड़ दी और इससे सरकार पर 102.3 करोड़ रुपये का बोझ कम हो गया।

सब्सिडी छोड़ने की मुहिम चलनी भी चाहिए। समय के साथ यह अपरिहार्य है और देश के विकास के लिए जरूरी भी। सवाल बस एक ही है कि जब हमारा सबसे बड़ा नुमाइंदा ही 100 रुपये का खाना 25 रुपये में खाने पर शर्मिदा नहीं है, जिसे पगार और दूसरे भत्तों के जरिए हर महीने डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी होती है, तो औसत आय वाले गैस उपभोक्ता, जिनमें दिहाड़ी मजदूर और झोपड़ पट्टों में रहने वाले गरीब भी हैं, सब्सिडी छोड़ने की अपील बेजा नहीं लगती

आरटीआई से खुलासे के बाद जब इस पर बहस चली तो बात माननीयों के ‘पेट पर लात मारने’ जैसी बात तक जा पहुंची। संसद की खाद्य मामलों की समिति के अध्यक्ष जितेंद्र रेड्डी ने सब्सिडी हटाने की संभावना को खारिज कर दिया और कहा, ‘मेरी नानी कहती थी कि किसी के पेट पर लात नहीं मारनी चाहिए।’

ससंदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू को ये अच्छी बहस का विषय लगता है, लेकिन वह कहते हैं कि फैसला दो-चार लोगों के बस का नहीं है, मामला आया तो विचार भी होगा।

कुछ सांसद भलमनसाहत में यह भी कह गए कि हम सब्सिडी छोड़ने को तैयार हैं। यहां यह भी गौर करना होगा कि इसी साल 2 मार्च को पहली बार एक प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने संसद की कैंटीन में केवल 29 रुपये में भोजन किया और विजिटर बुक में ‘अन्नदाता सुखी भव’ लिखा था। हो सकता है, उन्हें खयाल न आया हो, वरना संसद की कैंटीन की सब्सिडी खत्म करने की बेहतर पहल उसी समय शुरू हो सकती थी।

संसद की कैंटीनों को वर्ष 2013-14 में 14 करोड़ 9 लाख रुपये, साल 2009-10 में 10.46 रुपये और 2011-12 में 12.52 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई। इन कैंटीनों में सांसदों के अलावा करीब 4000 कर्मचारी भी खाते हैं, जिनमें 85 से 90 फीसदी आयकर दाता हैं।

सुभाष अग्रवाल के आरटीआई खुलासे के बाद अब यह गरमागरम बहस का मुद्दा जरूर बन गया है। 21 जुलाई से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में माननीयों की थाली जरूर बहस का मुद्दा बनेगी। बहस होनी भी चाहिए। सवाल बस इतना है कि क्या इस पर विचार होगा कि सरकारी इमदाद के लिए बिना भेदभाव नई और स्पष्ट लक्ष्मण रेखा बनाई जाए और देशभर में तमाम महकमों, संस्थाओं और इसके असली हकदार का सार्वजनिक तौर पर खुलासा हो और खजाने पर पड़ने वाले बोझ का फायदा केवल जरूरत मंदों को ही मिले।

कहीं ऐसा न हो कि जनता की गाढ़ी कमाई सरकारी इमदाद के तौर पर माननीयों के लजीज खाने पर गुपचुप तरीके से खर्च हो, वह भी हर साल करोड़ों में। (आईएएनएस)

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नेशनल

जेपी नड्डा का ममता पर हमला, कहा- संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा

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नई दिल्‍ली। भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी पर तगड़ा हमला बोला है। उन्‍होंने कहा कि ममता दीदी ने बंगाल को क्‍या बना दिया है। जेपी नड्डा ने कहा कि संदेशखाली, ममता बनर्जी की निर्ममता और बर्बरता का संदेश चीख-चीख कर दे रहा है। ममता दीदी ने बंगाल को क्या बना दिया है? जहां रवींद्र संगीत गूंजना चाहिए था, वहां बम-पिस्तौल मिल रहे हैं।

संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। इसी से समझ सकते हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने किस तरह अराजकता फैला रखी है। मैं बंगाल के सभी भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता से अपील करता हूं कि आप सभी संदेशखाली पर ममता बनर्जी से जवाब मांगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने संदेशखाली की पीड़िता को पार्टी का टिकट देकर भाजपा महिला सशक्तिकरण के संदेश को मजबूती दी है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने ममता बनर्जी को जवाब दिया है कि ये महिलाएं अकेली नहीं है उनके साथ पूरा समाज, पूरा देश खड़ा है। संदेशखाली में महिलाओं की इज्जत-आबरू और उनकी जमीनें बचाने के लिए वहां गई जांच एजेंसियों के अधिकारियों पर भी घातक हमला किया गया।

जेपी नड्डा ने आगे कहा, “मैं आज समाचार पढ़ रहा था कि संदेशखाली में तलाशी के दौरान सीबीआई ने तीन विदेशी रिवॉल्वर, पुलिस द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक रिवॉल्वर, बंदूकें, कई गोलियां और कारतूस बरामद किए हैं।” इसी से समझा जा सकता है कि ममता सरकार ने राज्य में किस तरह अराजकता फैला रखी है। उन्होंने पूछा कि क्या ममता बनर्जी जनता को डराकर, उनकी जान लेकर चुनाव जीतेंगी। क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरबिंदो जैसे मनीषियों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी।

संदेशखाली में जनता की रक्षा के लिए एनएसजी कमांडो को भी उतरना पड़ा। ममता दीदी, यदि आपको ऐसा लगता है कि आप ऐसा करके चुनाव जीत जाएंगी तो ये आपकी भूल है। जनता आपको इसका करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा कि हमने देखा कि ममता सरकार में तृणमूल कांग्रेस के शाहजहां शेख जैसे असामाजिक तत्व संदेशखाली में महिलाओं के अस्तित्व पर खतरा बने हुए हैं। महिलाओं के साथ जिस तरह का सलूक हो रहा है वह सच में बहुत ही संवेदनशील और कष्टदायी है।

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