मुख्य समाचार
बिहार विधानसभा में जीएसटी विधेयक पारित
पटना| बिहार विधानसभा की विशेष बैठक में मंगलवार को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को पारित कर दिया गया। बिहार विधानसभा की विशेष बैठक में जीएसटी विधेयक पर चर्चा के बाद सर्वसम्मति से विधेयक पारित कर दिया गया।
विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने के बाद अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने विधानसभा में संसद से पारित 122वें संविधान संशोधन की जानकारी दी।
बिहार के वित्तमंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने सदन में राज्य सरकार की ओर से जीएसटी विधेयक का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि राष्ट्रहित में पहली बार राज्य और केंद्र सरकार दोनों साथ मिलकर किसी प्रस्ताव पर सहमति देने जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक कदम है। वित्तमंत्री ने इस विधेयक पर सर्वसम्मति से अनुमोदन का आग्रह किया।
देश में असम के बाद बिहार दूसरा ऐसा राज्य है, जिसने जीएसटी विधेयक पारित कर दिया।
विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में घोषणा की, “संविधान के 122वें संशोधन का बिहार विधानसभा समर्थन करती है।”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि बिहार जीएसटी विधेयक पर अनुमोदन का संकल्प ले रहा है। इससे केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को फायदा होगा।
उन्होंने कहा, “इस विधेयक के पारित होने के बाद सारे राज्य एक तंत्र में जुड़ जाएंगे। इससे बाजार का विस्तार होगा, कालाबाजारी समाप्त होगी और कालाधन पर भी अंकुश लगेगा। अब कर में केंद्र का 33 फीसदी और बाकी का हिस्सा राज्यों में बंट जाएगा।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार 10 वर्षो से जीएसटी का समर्थन कर रहा है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि सैद्घांतिक तौर पर तो विधेयक पास हो गया और नई कर प्रणाली की बुनियाद रखी गई, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार ने कहा, “जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो उसी दौरान एक समान कर पर बात चल रही थी, लेकिन बात नहीं बनी। अब उनके बाद की पिछली सरकारों ने जो नहीं किया, वह वर्तमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने कर दिखाया है।”
कांग्रेस के विधायक सदानंद सिंह ने जीएसटी विधेयक के संशोधन प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि इसका प्रस्ताव संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय में ही लाया गया था, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तब पीछे हट गई थी। उन्होंने ही तब इसका समर्थन नहीं किया था। सिंह ने कहा कि जीएसटी से देश की आर्थिक स्थिति सुधरेगी।
उन्होंने कहा कि गैर राजग शासित राज्यों में बिहार पहला राज्य है, जो इस विधेयक के साथ है, जिस राज्य ने सबसे पहले इसका समर्थन किया।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी जीएसटी विधेयक पर अपनी सहमति जताई।
विधानसभा में भाकपा (माले) विधायक महबूब आलम ने जीएसटी विधेयक का विरोध किया और वह सदन से बहिर्गमन कर गए।
उल्लेखनीय है कि जीएसटी विधेयक पिछले दिनों राज्यसभा और लोकसभा में पारित हुआ था। इस विधेयक को 15 राज्यों में पारित करने के बाद राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
नेशनल
लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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