Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

नेशनल

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा दे चुके हैं कई बड़े फैसले

Published

on

Loading

नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)| देश के प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ लेने वाले न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा कई महत्वपूर्ण फैसले देने वाले न्यायाधीश के रूप में जाने जाते हैं। 63 वर्षीय न्यायमूर्ति मिश्रा 13 महीने, छह दिन तक प्रधान न्यायाधीश पद पर रहेंगे और अक्टूबर 2018 में सेवानिवृत्त होंगे।

न्यायमूर्ति मिश्रा बेहद शिक्षित व्यक्ति माने जाते हैं, खासकर प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों व साहित्य के विद्वान माने जाते हैं।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने ओडिशा उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस के साथ शुरुआत की थी। उन्हें 17 जनवरी, 1996 को ओडिशा उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

उन्हें तीन मार्च, 1997 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया। वह 19 दिसंबर, 1997 को स्थायी तौर पर न्यायाधीश बना दिए गए।

उन्हें 23 दिसंबर, 2009 को पटना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद 24 मई, 2010 को उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय बतौर मुख्य न्यायाधीश स्थानांतरित कर दिया गया।

न्यायाधीश मिश्रा को 10 अक्टूबर, 2010 को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया।

प्रधान न्यायाधीश मिश्रा देश के उन न्यायाधीशों में गिने जाते हैं, जिन्हें कानून की बेहद बारीक जानकारियां हैं।

अपने एक ऐतिहासिक फैसले में न्यायमूर्ति मिश्रा ने एक दुष्कर्म के आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते के तौर पर विवाह की बात नकार दी थी।

दिल्ली के बेहद दर्दनाक निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में चार दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखने का फैसला भी न्यायमूर्ति मिश्रा ने ही दिया था। उन्होंने अपने फैसले में कहा था, अगर कोई मामला फांसी की मांग करता है तो तो वह यही मामला है।

सिने कॉस्टूयम एंड मेकअप आर्टिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा किसी महिला मेकअप आर्टिस्ट या हेयर ड्रेसर को सदस्य बनाए जाने पर लगाए गए प्रतिबंध को खत्म करने का फैसला देने वाली पीठ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मिश्रा ही थे।

न्यायमूर्ति मिश्रा सर्वोच्च न्यायालय की उस संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने फैसला सुनाया था कि आपराधिक मानहानि असंवैधानिक नहीं है।

न्यायमूर्ति मिश्रा को जिस फैसले ने आम लोगों में मशहूर किया, वह था सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य किए जाने का फैसला।

इसके अलावा वह उत्तराखंड में हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केंद्र सरकार के आदेश को खारिज करने वाली पीठ के भी अध्यक्ष रहे।

न्यायमूर्ति मिश्रा को न्यायमूर्ति पी. सी. पंत और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय के साथ बंबई श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट मामले में अपराधी याकूब मेमन की मृत्युदंड के खिलाफ आखिरी मिनट में दायर की गई याचिका पर आधी रात को सुनवाई करने के लिए भी याद किया जाएगा।

न्यायमूर्ति मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ही भारतीय क्रिकेट में सुधारों को लेकर क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के ढांचे व कार्यप्रणाली में बदलाव के मामले की सुनवाई कर रही है।

Continue Reading

नेशनल

कोर्ट ने बृजभूषण से पूछा- आप गलती मानते हैं, बोले- सवाल ही उठता, मेरे पास बेगुनाही के सारे सबूत

Published

on

Loading

नई दिल्ली। महिला पहलवानों से यौन शोषण मामले में भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह मंगलवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने उन्हें उनके खिलाफ तय किए आरोप पढ़कर सुनाए। इसके बाद कोर्ट ने बृजभूषण से पूछा कि आप अपने ऊपर लगाए गए आरोप स्वीकार करते हैं? इस पर बृजभूषण ने कहा कि गलती की ही नहीं मानने का सवाल ही नहीं उठता। इस दौरान कुश्ती संघ के पूर्व सहायक सचिव विनोद तोमर ने भी स्वयं को बेकसूर बताया। तोमर ने कहा कि हमनें कभी भी किसी पहलवान को घर पर बुलाकर न तो डांटा है और न ही धमकाया है। सभी आरोप झूठे हैं।

मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या आरोपों के कारण उन्हें चुनावी टिकट की कीमत चुकानी पड़ी, इस पर बृजभूषण सिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मेरे बेटे को टिकट मिला है।” बता दें कि उत्तर प्रदेश से छह बार सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। पार्टी उनकी बजाय, उनके बेटे करण भूषण सिंह को कैसरगंज सीट से टिकट दिया है, जिसका बृजभूषण तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

बृजभूषण सिंह ने सीसीटीवी रिकाॅर्ड और दस्तावेजों से जुड़े अन्य विवरण मांगने के लिए बृजभूषण सिंह ने आवेदन दायर किया है। उनके वकील ने कहा कि उनके दौरे आधिकारिक थे। मैं विदेश में उसी होटल में कभी नहीं ठहरा जहां खिलाड़ी स्टे करते थे। वहीं दिल्ली कार्यालय की घटनाओं के दौरान भी मैं दिल्ली में नहीं था। बता दें कि कोर्ट इस मामले में जल्द ही अपना फैसला सुना सकता है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एमपी-एमएलए मामलों में लंबी तारीखें नहीं दी जाएं। हम 10 दिन से अधिक की तारीख नहीं दे सकते।

Continue Reading

Trending